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सोच को सुधारने के लिए थोड़े से ही अभ्यास की ज़रूरत होती है

अपने आप को अनवरत सकारात्मक प्रभावों से घेर लें। क्योंकि हमारा मन जो कुछ ग्रहण करता है, उसका सीधा असर हमारी सोच पर ही पड़ता है।

विकृत विचारों के पैटर्न मन में किसी मालवेयर(हानिकारक सॉफ्टवेयर) की तरह होते हैं। जितना अधिक हम इन्हें पोषित करते हैं, उतना ही ये गहरी जड़ें जमा लेते हैं। किन्तु शुभ समाचार यह है कि मन सजग चिन्तन के माध्यम से अपने मन पर पुन: नियत्रंण प्राप्त कर सकते हैं।

वास्तव में हमारा मन अत्यधिक लचीला और परिवर्तनशील होता है। थोड़ी जागरूकता और अभ्यास से हम विनाशकारी चिन्ता से सशक्त चिन्तन की ओर बढ़ सकते हैं- चिन्ता से बुद्धिमत्ता की ओर।

सजग चिन्तन वह कला है जिसमें हम परिस्थितियों पर सरल स्वचलित रूप से प्रतिक्रिया करने के बजाए अपने विचारों को सचेत रूप से चुनते हैं।

उदाहरण के लिए, ‘यह मेरे साथ क्यों हो रहा है?’ यह पूछने के बजाए, ‘मैं इससे क्या सीख सकता हूँ?’ यह पूछना है।

हम शुरुआत कर सकते हैं अपने विचारों का निरीक्षण करके। क्या वे समाधान उन्मुख हैं या भावनात्मक तौर पर बार-बार दोहरायें जा रहे हैं?

क्या वे उन्नतिशील हैं या भय का रूप हैं? एक बार जब आप इसके प्रति जागरूक हो जाएं तो सचेत रूप से स्वयं को वांछनीय विचारों पर केन्द्रित करके अपने विचारों की प्रकृति को बदलें। निरंतर प्रयास से, आप धीरे-धीरे अनुभव करेंगे कि आपका मन अति सहज, स्फूर्तिवान और अनुशासित हो रहा है।

हमारे शास्त्र भी हमें यही स्मरण कराते हैं: ‘मोह शकल व्याधिन कर मूला’ (रामचरितमानस) अर्थात् ‘हमारे सभी दु:खों और अशान्ति का मूल कारण मोह (अज्ञानता) है।’ परमात्मा कहते हैं कि मोह सभी दु:खों का कारण है जिससे हमें मुक्त होना ही होगा। हमें बार-बार ध्यान से, सजगता से उन्मुख विचारों से मन को पोषित करते रहना होगा।

इसलिए अपने मन को कल्याणकारी ज्ञान से पोषित करें, विषाक्त सामग्रियों से दूरी बनाएं और अपने आपको सकारात्मक प्रभावों से घेरें। क्योंकि हमारा मन जो ग्रहण करता है, उसका सीधा असर हमारी सोच पर पड़ता है। इसके अतिरिक्त प्रतिदिन आध्यात्मिक ज्ञान का मनन, ध्यान और शारीरिक व्यायाम करने से ही अत्यधिक सोचने की प्रवृत्ति को शान्त किया जा सकता है।

जब मन अनुशासित हो जाता है तो वह हमारी सबसे बड़ी सम्पत्ति बन जाता है।

महान आत्माओं ने भी चिंतन को नियंत्रित करके महान आध्यात्मिक ऊंचाइयों को प्राप्त किया। उन्होंने अपने विचारों को विघटनकारी विषयों से बचाकर परमात्मा में पूर्ण रूप से लवलीन किया और मानव चेतना के उत्थान में अपार योगदान दिया। वास्तव में, हमारा उद्धार भी हमारे विचारों की दिशा को नियंत्रित करने और उन्हें उच्चतम स्तर पर ले जाने में ही निहित है।

जीवन को सार्थक बनाने के लिए सकारात्मक चिंतन चुनने का संकल्प लें। दिशाहीन विचारों के भंवर में न फंस जाएं।

अंतत: आपके विचार ही आपके लिए बंधन बन सकते या फिर मुक्ति। जीवन में लम्बी दूरी तय करने के लिए सकारात्मक विचारों का पाथेय अपने पास रखें!

सजगतापूर्ण सोच का अभ्यास करने पर ही अपना सुधार कर सकते हैं। ऐसे करने पर आप अपने जीवन को सार्थक करते हुए महानता की ओर ले जा सकते हैं।

ऐसे विचारों के लिए अपने मन को कुछ नये-नये ज्ञान की ग्रहता के लिए तैयार करना होगा। उसका सबसे अच्छा सोर्स है आध्यात्मिक किताबों को पढऩा व सत्संग में रमण करना। योग व मेडिटेशन के अभ्यास को भी अपने जीवन का हिस्सा बनाने से आपको मदद मिलेगी। और विधिपूर्वक व नियमित रूप से अभ्यास को दोहराते रहने से मन में रूचि व उत्साह बना रहेगा।

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