जब जान लिया और पहचान लिया, मान लिया कि सभी सम्बन्ध एक साथ हैं, दूसरा ना कोई, तो उसमें चलने में क्या मुश्किल है? साथ क्यों छोड़ते हो? सीता का साथ क्यों छूटा? कारण – लकीर का उल्लंघन किया। यह चन्द्रवंशी सीता का काम है, लक्ष्मी का नहीं। तो मर्यादा के लकीर के बाहर बुद्धि ज़रा भी ना जाए। नहीं तो चन्द्रवंशी बनेंगे। बुद्धि रूपी पांव मर्यादा की लकीर से संकल्प व स्वप्न में भी बाहर निकलता है तो अपने को चन्द्रवंशी सीता समझना चाहिए, सूर्यवंशी लक्ष्मी नहीं। सूर्यवंशी अर्थात् शूरवीर। जो शूरवीर होता है वह कब कोई के वश नहीं होता है। तो सदा साथ रखने के लिए अपने को मर्यादा की लकीर के अन्दर रखो,लकीर के बाहर न निकलो। बाहर निकलते हो तो फकीर बन जाते हो। फिर मांगते रहते हो- यह मदद मिले, यह सैलवेशन मिले तो यह हो सकता है। मंगता हुआ ना! फकीर बनने का अर्थ ही है -हेल्थ, वेल्टा गंवा देते हो, इसलिए फकीर बन जाते हो। तो ना लकीर को पार करो ना फकीर बनो। लकीर के अन्दर रहने से मायाजीत बन सकते हो। लकीर को पार करने से माया से हार खा लेते हो। इसलिए सदा हेल्दी, वेल्दी, हैप्पी और होली बनो? चेक करो कि इन चारों में से आज किसी बात की कमी रही, आज हेल्थ ठीक है, वेल्थ है, हैप्पी है, होली है, न है तो क्यों? उस रोग को जानकर फौरन ही उसकी दवाई करो और तो सभी प्रकार की दवाई मिल चुकी हैं। सभी प्राप्तियां हैं। तो सभी प्राप्ति होते भी समय पर क्यों नहीं कर पाते हो? समय के बाद स्मृति में क्यों आते हो? यह कमज़ोरी है जो समय पर काम नहीं करते। समय के बाद भी करते हो तो समय तो बीत जाता है ना। समय पर सभी स्मृति रहे, उसके लिए अपनी बुद्धि इतनी विशाल व नॉलेजफुल नहीं बनी है। तो फिर कोई सहारा चाहता है, वह सहारा सदा साथ रखो तो कब हार नहीं होगी।
तो कब भी अपने को रोगी ना बनाना ज़रा भी किसी प्रकार का रोग प्रवेश हो गया तो एक व्याधि फिर अनेक व्याधियों को लाती है। एक को ही खत्म कर दिया तो अनेक आयेंगी ही नहीं। एक में अलबेले रहते हो, हल्की बात समझते हो, लेकिन वर्तमान समय के प्रमाण हल्दी व्याधि भी बड़ी व्याधि है। इसलिए हल्के को ही बड़ा समझ वहाँ ही खत्म कर दो तो आत्मा कब निर्बल नहीं होगी, हेल्दी रहेगी।




