मन की बातें

प्रश्न : आध्यात्मिकता से कैसे विभिन्न धर्मों में एकता लाई जा सकती है?

उत्तर : इस बात का यहाँ एक प्रैक्टिकल सबूत है कि यहाँ सभी धर्मों के लोग, सभी जातियों के लोग आते हैं। सच तो ये है कि हमें पता भी नहीं चलता कि कौन कैसा है, जब तक उसने मुस्लिम टोपी न लगाई हो। बिना उसके आते हैं लोग तो बाद में हमें पता चलता है कि बहुत सारे मुस्लिम सभा में बैठे थे। भारत हिन्दू धर्म की भिन्न-भिन्न जाति व सम्प्रदायों के लोग जो कभी आपस में टकराते थे कि मैं बड़ा, मेरा गुरू बड़ा तेरा छोटा। वो सब आते हैं एकसाथ रहते हैं, एकसाथ भोजन करते हैं। कोई वैमनस्य उनमें नहीं रह जाता। इनका कारण है क्योंकि उनको ये भाव दिया जाता है कि तुम सब रूहें हो, आत्माएं हो। ये धर्म तो फिजि़कल धर्म हैं। इनको देह के धर्म कहा गया है। गीता में भी आई है ये बात कि हे अर्जुन! देह के धर्मों को त्याग कर तुम स्वधर्म में स्थित हो जाओ। स्वधर्म माना, आत्मा का धर्म, रूह का धर्म, सोल का धर्म। तो सोल सभी एक जैसी ही हैं। सोल्स में ये अन्तर नहीं होता धर्मों का। शरीर के अनुसार ही ये अन्तर होता है। स्पिरिचुअलिटी ही ये सिखाती है, हम सभी को सिखाते हैं कि आप सभी सोल हो। सब रूहें हो और एक भगवान के बच्चे हो सभी। चाहे उसे आप कुछ भी नाम दें अपनी भाषा में। तो नाम से कुछ नहीं होता, सभी आत्माएं हैं और सुप्रीम बीइंग की सन्तान हैं। उसे कोई अल्लाह कहे, खुदा कहे, गॉड कहे, भगवान कहे, ईश्वर कहे, ये रूहानियत है। ये जब हम अपने अन्दर बढ़ा लेते हैं तो नफरत और वैर भाव समाप्त हो जाता है। और साथ में फिर धर्मों का सार भी, धर्मों का सार होता है जीवन को स्वच्छ करना, निर्मल करना, मन के विचारों को सद्भावनाओं से भरना, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार से स्वयं को मुक्त करना, हर धर्म के ग्रन्थ में ये बातें हैं। अहंकार छोड़ो, क्रोध छोड़ो, अगर धर्म-ग्रन्थों पर मनुष्य चलने लगे तो कहाँ लड़ाई-झगड़े की मार्जिन है! सब खत्म हो जायेगी। केवल पढ़ते हैं, तर्क करते हैं, टकराते हैं, चलते नहीं हैं। चलकर देखो सब एकसाथ चलने लगेेंगे।

प्रश्न : ये आत्मिक अनुभूति और परमात्म अनुभूति हो कैसे? हमने जान तो लिया लेकिन अनुभव की गहराई नहीं आ पाती।

उत्तर : अच्छी बात है ये क्वेश्चन तो उठने ही चाहिए क्योंकि मनुष्य जब लेसन लेता है तो ये क्वेश्चन उठते ही हैं क्योंकि अनुभूति के बिना कोई भी ज्ञान इनकम्पलीट माना जाएगा। वो बुद्धि के लेवल तक रहता है, दिल तक नहीं पहुंचता है। और बुद्धि में भी उसकी अनुभूति न होने से वो बुद्धि के लिए भी एक ड्राई फिलॉसफी होती है। हमारी फिलॉसफी ड्राई हो गई थी ना क्योंकि वो अनुभूतियों में नहीं आई। तो मैं आत्मा हूँ आप अपने स्वरूप को विज़ुअलाइज़ करेंगे। अपने को टाइम देंगे। थोड़ा जल्दी उठेंगे, जब प्रकृति शांत है जल्दी उठकर चिंतन करें, मैं आत्मा हूँ यहाँ भृकुटि में देखें कि मेरे चारों ओर एनर्जी फैल रही है। आई एम पीसफुल, एक्सेप्ट करें इसको। मैं शांत हूँ। इसमें भले ही आधा मिनट लगा दें। मैं शांत हूँ। मैं शांत हूँ, मुझसे शंति के वायब्रेशन्स फैल रहे हैं। मैं शांत हूँ, फिर दूसरा थॉट ले लें मैं आत्मा पवित्र हूँ, मूल रूप से ओरिज़नली आई एम प्युअर, मेरा चित्त पूरी तरह से अन्दर से शुद्ध है। ये मनोविकार तो बाद में आये हैं। ये मेरे नहीं हैं। मैं प्युअर हूँ। मुझसे प्युअर वायब्रेशन्स फैल रहे हैं। मैं बहुत शक्तिशाली हूँ, ये अभ्यास करते चलेंगे और परमात्म अनुभूति के लिए पहली चीज़ कि वो मेरा परमपिता है, वो मेरा है। डिपली चलें इस गहराई में। भगवान जो है, जो खुदा है, जो अल्लाह है उसके आगे केवल हाथ नहीं जोडऩा, शीश नहीं झुकाना, वो तो मेरा है। तो वो हमें बहुत प्यार करता है। हम उससे बहुत प्यार करते हैं। सब धर्मों में क्या हो गया है सिर्फ मांग रह गई है कि हे प्रभु, हे खुदा, अपनी-अपनी भाषाओं में। वो मेरा है तो उसका सबकुछ मेरा है। यहाँ से शुरू करें। फिर उसके स्वरूप को विज़ुअलाइज़ करें। फील करें उसकी एनर्जी मुझ पर आ रही है। ये काम दस-दस सेकण्ड करें। आत्मा की प्रैक्टिस, सुप्रीम बीइंग की एनर्जी मुझे आ रही है। जैसे एक फाउंटेन मुझ पर पड़ रहा है। एक पिक्चर बना लें कभी शांति की किरणें आ रही हैं, कभी शक्तियों की, कभी प्युरिटी की, बहुत सुख मिल रहा है। थोड़ी-थोड़ी देर करें, आप लम्बा-लम्बा समय न बैठें। दस-दस, पंद्रह-पंद्रह मिनट बैठेंगे धीरे-धीरे प्रैक्टिस होगी तो अच्छी प्रैक्टिस आपको डीप रियलाइज़ेशन देगी। गहन अनुभव करायेगी, शांति का भी और एनर्जेटिक होने का भी।

प्रश्न : मेरे सिनियर का व्यवहार मेरे प्रति ठीक नहीं है। और घर में पत्नी के संस्कार मेरे से नहीं मिलते। इन कारणों से मेरे मन में मानसिक तनाव रहता है, इसे कैसे ठीक करूँ?

उत्तर : सिनियर्स का तो व्यवहार अच्छा नहीं है या पत्नी के या किसी और के संस्कार नहीं मिलते तो इसमें हमें एक ही चीज़ याद रखनी है। अपने को बदलो। संस्कार उसके नहीं मिलते वो सोचती होगी कि इनके नहीं मिलते मेरे से। आप अपने को उनके अनुसार ढाल लो थोड़ा-सा, कइयों की आदत होती है दूसरों पर राज़ करने की। आप पॉवरफुल भी बनें, कुछ उनकी बात मानें, कुछ अपनी बात मनवायें, बहुत हल्के हो जायें, उन्हें स्नेह भी दें। अपनी इगो को छोड़ देंगे तो संस्कार मिलन हो जाता है। मैं ये बात दोनों को कह रहा हूँ। क्योंकि ये नाता जीवन साथी का नाता भी है। ये केवल और चीज़ों के लिए ही नहीं है। गुड साथी, एक-दूसरे के अच्छे दोस्त इसलिए बहुत प्यार से, बहुत अपनेपन से, बहुत मिलन के साथ चलना चाहिए। झुककर चलना चाहिए। जो समझदार है उसको पहले झुकना चाहिए। मैं बहनों-माताओं को कहता हूँ आप बहनें-माताएं सहनशील हैं, आप झुककर चलें। आपका इगो दूसरे को अधिक कष्ट देता है। दूसरा, सीनियर का व्यवहार अच्छा नहीं है तो आप स्वीट हो जाएं। और जब आपने रूहानियत का ज्ञान लिया है, स्पिरिचुअलिटी से आप जुड़े हैं तो आप ये मेडिटेशन प्रैक्टिस करना, आपके वायब्रेशन्स बहुत अच्छे फैलेंगे और रोज़ सवेरे उठकर अमृतवेले सबकॉन्शियस लेवल का प्रयोग करना, आपका जो सीनियर है या ऑफिसर है उसको आत्मा देखना। और संकल्प देना कि वह एक अच्छी आत्मा है। मैं इनका बहुत सम्मान करता हूँ। मैं बहुत प्यार करता हूँ, वो मुझे बहुत प्यार करते हैं। वह मेरे गुड फ्रेंड हैं। थोड़े दिन में सब बदल जायेगा।

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