श्रावण मास शुरू होते ही मन में अनेक भावनायें शिव परमात्मा के प्रति उभरने लगते हैं। लोगों के मन में रहता है कि शिव परमात्मा की उपासना से हमारी मनोकामना पूर्ण होगी। हर सोमवार को जल, फल, दूध शिवलिंग पर अर्पण कर अपने आपको पूण्यात्मा महसूस करते हैं। उसमें से एक भावना यह भी होती है कि कुछ भी हो जाए मुझे शुद्ध अन्न ही स्विकार करना है। इस श्रावण मास में 40 दिन तक लोग व्रत रखते है। भक्त लोग ओम नम: शिवाय का जाप करते है यही उनकी आराधना है। शिव स्तुति श्रावण मास में मनोकामना पुर्ण करती है ऐसी मान्यता है। स्तुति करना अच्छी बात है लेकिन परमात्मा को यथार्थ रूप से जानकर उसे मानकर उपासना करना अलग बात है। कोई कांवर में गंगाजल भरकर पदयात्रा करते है, ऐसा करने से पुण्य प्राप्ति का कारक माना जाता है।
परमपिता परमातमा शिव सभी मनुष्य आत्माओं का पिता हैं। इसलिए शिव परमात्मा की शिवलिंग के रूप में पूजा की जाती है। सभी देवों का देव महादेव भी कहते हैं। परमात्मा शिव ज्ञान का सागर, पवित्रता का सागर, आनंद का सागर, प्रेम का सागर सुखदाता, मुक्ति-जीवनमुक्तिदाता शिव भोला भंडारी है। परमात्मा शिव कल्याणकरी है। ऐसे परमशिक्षक परमात्मा शिव को कौन नहीं चाहेगा! किसी एक मुनष्य में एक अच्छा गुण होता है तो उसके प्रति आकर्षण हो जाता है। परमात्मा स्वयं ही इन सभी गुणों वा शक्तियों के भंडार हैं, तेजस्वी-ओजस्वी हैं, कल्याणकारी हैं। उनका आकर्षण सर्वोच्च हैं।

जब हमें परमात्मा की महिमा का यथार्थ ज्ञान वा सज्ञान प्राप्त हो जाता है तब हम सभी भक्त वा उनके बच्चे शालिग्रामों को अपने कत्र्तव्यों का आभास होता है। वर्तमान परिवेश में दुनियाँ में अशुद्धता चारों तरफ है। चाहे वह बिमारियों के रूप में है या मन के विकारों के रूप में है। ऐसे समय मेेंं अपने मन का व्रत, अपने भोजन का व्रत, शिव सानिध्य, शिव सामिप्य का व्रत और विकारों तथा अशुद्धता को त्यागना अर्थात् दूरी बनाकर रखने का व्रत कितना आवश्यकत हो गया है। इन सब व्रतों को धारण करने के लिए प्रथम मन में शुद्ध संकल्पों का व्रत लेना बहुत जरूरी है। जब मन में शुद्ध संकल्पों का व्रत होगा तो सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण होगा और चहुँ दिशा में सकारात्मकता की सुगन्ध होगी। एक अगरबत्ति वातावरण को कितना शांत, सुगंधित कर देती है। इसी तरह हमारे मन में भी अपार शक्तियों व गुणों के सगन्ध का समावेश है। अगर वह शुद्ध संकल्पों को प्रवाहित करें तो संसार रचने वाले शिव भोला से मन ही मन से सम्पर्क बना सकता है। परमात्मा की असीम शक्ति व गुणों को अपने मन के प्रवाह में जोड़ सकता है। ऐसा करने से स्वयं तथा संसार की विकृतियाँ समाप्त होने लगती है। इसलिए सबसे पहले भक्तों जनो को दृढ़ संकल्पों का व्रत लेना चाहिए कि मुझे इस श्रावण मास में सभी मनुष्यात्माओं के प्रति रहम की भावनाओं से, कल्याणकारी संकल्पों से, प्रेम के तरंगों से, आनंदमय , शक्तिशाली तथा भ्रातृभाव से व्यवहार करना है। यह व्रत मनुष्य आत्माओं में जागृतता निर्माण करती है कि शिव अर्थात् कल्याणकारी। यह भावना मनुष्यों के मन में विश्वास पैदा करती है कि हम सभी शिव परमात्मा की सन्तान आपस में भाई-भाई है।
संसार के जितने भी झगड़े है सब अज्ञानता के वश, ग़लतफ़हमी या भ्रम के वश पैदा होती है। इसलिए मन को शिव से जोड़ देने से अज्ञानता व ग़लतफ़हमी तथा भ्रम समाप्त हो जाता है। इसलिए इस बार श्रावण मास में परमात्मा की स्तुति का श्रवण करें और उसे आत्मसात भी करें। शिव परमात्मा को धतूरा के फूल अर्पण करते है। लेकिन उसके साथ-साथ अपने अशुद्ध संस्कारों को भी शिव पर अर्पण करें। शिव परमात्मा को भोला भंडारी भी कहा जाता है अर्थात् भंडारा भरपूर करने वाला। हम सभी की आराधना, उपासना स्व-कल्याण के साथ-साथ विश्व का कल्याण कर सकती है। भोला भंडारी से अपनी मन की तार को जोडक़र मन को शक्तिशाली बनाकर समस्त संसार में शक्तिशाली तरंगे फैलाना है। संसार के सभी मनुष्यों को वर्तमान शोक से मुक्त करने का मन बनाना ही सच्चे अर्थ में श्रावण मास का उचित लाभ उठाना ज़रूरी है। जो भी इस शुद्ध संकल्पों का व्रत लेगा वह सच में शिव के प्यारे साधक हो जायेगे और संसार के लिए देवात्मा के रूप में उभर के सामने आयेंगे। जिनके संकल्प श्रेष्ठ है वह देवात्मा है। शिव की आराधना, उपासना से देवों का निर्माण होता हैं। शिव की याद से अमृत निकलता है जिससे विश्व का कल्याण होता है। इसलिए इस श्रावण मास में शुद्ध संकल्पों का व्रत लें जिससे अपने आप अन्न शुद्ध, प्रकृति शुद्ध, संसार शुद्ध होने लगेगा। ऐसा पुण्य कमाने से मन की सन्तुष्टता, प्रसन्नता प्राप्त होगी।




