मुख पृष्ठदादी जीदादी प्रकाशमणि जीनव निर्माण में नवीनता के साथ नम्र बनो

नव निर्माण में नवीनता के साथ नम्र बनो

आप बहुत लक्की हो। हों भी क्यों ना! स्वयं भगवान ने आपको सेलेक्ट कर विश्व परिवर्तन के कार्य हेतु अपनी भुजा बनाई। इस दुनिया में छोटा-सा स्टेटस पाने के लिए कितनी मेहनत करते, पर यहाँ स्वयं भगवान ने हमारे में वो खूबी देखी जो पूरे विश्व में सुख-शांति के साम्राज्य की स्थापना के लिए चुना। हमने छोड़ा ही क्या! पाया बहुत। जिसकी जीवन नैया का खिवैया स्वयं भगवान हो, उसको छोडऩे का क्या गम! छूटी भी तो बुराइयां, कमज़ोरियां, जो हमें जन्म-जन्म से तंग कर रही थी। तो ये हमारा सबसे बड़ा भाग्य है ना! तो बस, इस अवसर को नम्र बनकर निर्माण के कार्य में लगाएं।

अपने को सदैव वेरी-वेरी लक्की समझो। वेरी लक्की समझने से विघ्न सहज ही विनाश कर सकेंगे। पता नहीं मेरी तकदीर में क्या है! ऐसा संकल्प उठाना माना संशय। मालूम नहीं – चल सकूंगा या नहीं, जाता हूँ ब्राह्मण परिवार में तो यह टक्कर आता, दुनिया में जाता तो यह विघ्न आते। आखिर क्या करूं! यह संकल्प भी संशय की निशानी है। मैं वेरी लक्की हूँ, लक्की उसको माना जाता जिसे दुनिया की अनेक ठोकरे आवें। पत्थर भी पूजनीय तभी बनता जब पानी की अनके चोटें खाता। इसलिए कभी किन्हीं बातों से थको नहीं। मैं हमेशा समझती कि पेपर आना माना मुझे लक्की बनाना। विघ्न आना माना भाग्यवान बनाना। अगर पेपर ही नहीं दिया तो मुझे विजयी कौन मानेगा! हज़ार पेपर आयें तो भी मैं सौ प्रतिशत पास रहूँ। हरेक अपना-अपना पेपर लें। पढ़ाई ही मेरा पेपर है। सारा ब्राह्मण कुल मेरा मास्टर है। कोई भी मेरे सामने आता तो बुद्धि में यही रहता कि ये मेरे से कितनी रूहानियत भरकर जायेगा। जितना उसको आत्मिक शक्ति मिलेगी, बल मिलेगा, उतना ही मुझे माक्र्स मिलेंगी। हमें रूहानियत की आत्मिक शक्ति का दान देना है। जितना दाता बनो उतना पुण्यात्मा बनेंगे। मुझे नयनों से भी पुण्य करना है। अपनी रूहानियत की शक्ति का भी पुण्य देना है। मुझे देना सीखना है, मैं यह न सोचूँ कि यह मुझे दे। मैं दाता हूँ। जितना मैं दूंगी उतना मेरा महत्व है। एक-एक को रूहानियत देना, शीतलता देना, यह देना ही मेरी महानता है। ऐसे नहीं मैं इसे स्नेह देती फिर भी यह मेरी ग्लानि करता। मुझे कोशिश करनी है एक भी काँटा न बने, अपना काम है सबको आत्मिक दान देना। दान देने में विघ्न तो अनेक आयेंगे क्योंकि दान लेने वाला कोई कैसा है, कोई कैसा। मैं हमेशा समझती- हर एक मेरे मास्टर हैं, मैं हर एक से सीखती हूँ।

नफरत ही है सभी झगड़ों का मूल – कभी भी अपने दिल में किसी के प्रति नफरत नहीं उठाओ। झगड़े का कारण है एक-दो से नफरत। जड़ होती नफरत, बन जाता परचिन्तन, हो जाता दुश्मन। पहले होगी ईष्र्या, वह पैदा करेगी नफरत, फिर परचिन्तन चलेगा, जिसका परचिन्तन करते वह दुश्मन बन जाता। एक बोल जीवन भर के लिए दुश्मन बना देता। एक ऐसा शब्द भी बोला जो किसी के हार्ट पर लग गया तो वह जि़न्दगी भर दुश्मन बना देता। मैं ऐसा क्यों करूं!

जि़द्द का संस्कार धोखे में डालता – ब्राह्मणों में सबसे बड़े से बड़ा नुकसान कारक अवगुण है- ‘जि़द्द का स्वभाव’, जिसमें जि़द्द है उस पर मुझे बड़ा रहम आता। वह बड़ा धोखा खाते। सबसे ज्य़ादा नुकसान इस जि़द्द से होता है। जि़द्द मनुष्य को रसातल पहुँचा देता। इसलिए कभी किसी बात का जि़द्द नहीं करना। कोई रॉन्ग है तो राइटियस बुद्धि से निर्णय करना है। जि़द्द के स्वभाव से अपने को धोखा न दो। निर्णय करो। एक-दो को सहयोग दो, राय दो, अगर कोई जि़द्द पकड़ता है तो आप हल्के हो जाओ, लाइट हो जाओ। स्वयं को लाइट और माइट की मस्ती में रखो तो कभी जोश नहीं आयेगा।

निर्मान बनना माना समा लेना – नव निर्माण के कार्य के लिए नम्र बनो। पुरूषार्थ से डरो नहीं। जब कोई फोर्स से कुछ कहता है तो उस समय उसकी मान लो। आप शीतल बन जाओ। अगर उस बात को लेकर दुश्मनी हो जाती तो नुकसान होता है। इसलिए बाद में आपस में मिलकर मीठी धारणा की रूह-रिहान करो, डिबेट नहीं करो। आपकी नम्रता का प्रभाव दूसरे पर ज़रूर पड़ेगा। एक की चर्चा दूसरे से नहीं करो। निर्मान बनना माना समा लेना। जब कोई बात आपस में नहीं बनती तो उसको छोड़कर स्व-चिन्तन में रहो। झगड़े में पड़कर ज्ञान को नहीं छोड़ो।

मर्यादा में हल्के तो निंदा के पात्र – हमारे ईश्वरीय विश्व विद्यालय का फाउण्डेशन है ईश्वरीय मर्यादा। दुनिया में मर्यादा नहीं, हमारी है टॉप मर्यादा। अगर हम किसी पर फेथ रखते हैं, तो फेथ पर भी माया पानी डाल देती है। ऐसे अनेक अनुभव देखते हैं। इसलिए हम कन्ट्रोल करते… कुमार-कुमारियाँ मर्यादा में रहो। एक की गलती से सारे ब्राह्मणों को चोट लग जाती है। एक के कारण हमें सबको बांधना पड़ता है। सेन्टर पर कुमारियाँ अकेली रहती, आप उनसे बैठकर बातें करो- यह मर्यादा नहीं है। मैं कहती इस बात में समझो हम सन्यासी हैं। कुमार-कुमारी माना सन्यासी। सन्यासी माना हँसना, बोलना, वृत्ति-दृष्टि सबका सन्यास। जितना यह पाठ पक्का रखेंगे उतना अच्छा। अगर मर्यादा में हल्के रहेंगे तो टीका होगी। किसी के कैरेक्टर पर दाग लगे, यह मेरे से सुना नहीं जाता, शॉक लगाता। कोई मेरे कैरेक्टर पर आँच डाले यह मेरे जीवन के लिए बहुत बड़ा दाग है। परन्तु किसी का क्वेश्चन क्यों उठा- क्योंकि हल्के होकर चले।

ईश्वरीय मर्यादा इस जीवन का आदेश – ईश्वरीय मर्यादा हमारे जीवन का ऑर्डर है। बाकी कोई ऑर्डर नहीं। इसमें जितना अपनी रूहानियत में मस्त रहो, मेरा एक बाबा उसी मस्ती में रहो, यह कंगन बहुत स्ट्रिक्ट बंधा हुआ चाहिए। मैं जब यह बात बोलती तो समझते यह मार्ग तो बड़ा कठिन है। फिर बुद्धि जाती गन्धर्वी विवाह में। लेकिन जिन्होंने किया वह अभी आँसू बहा रहे हैं, रो रहे हैं। इसलिए कभी भी यह संकल्प नहीं आवे। ऐसे नहीं कम्पेनियन चाहिए। मरना तो पूरा मरना। जीने का नहीं सोचो। हमें बाबा की गोदी में जीना है। दुनिया से हम मर गये। खाने का, पहनने का, नींद का सब ऐश चला गया। हम सब त्याग चुके। त्याग माना त्याग। जिसने नींद का त्याग किया उसने सब त्यागा। 3:30 बजे मीठी नींद आती। बाबा कहता उठ। वह भी बाबा ने छीन लिया, बाकी क्या चाहिए? इसलिए हमेशा बाबा कहता बेहद के वैरागी बनो। जितना वैरागी उतना योगी रहते।

सब सेवा में सफल करो, कल किसने देखा – सेवा तो आप लोग कर ही रहे हो, जो कुछ भी है उसे सफल करते चलो। कल का क्या पता। जितना बुद्धि में सेवा है, उतना ही महान भाग्य है। परन्तु सेवा के जोश के साथ-साथ होश भी चाहिए। लौकिक को भी थोड़ा चलाना करना ठीक रहता। नहीं तो सर्विस में डिस-सर्विस हो जाती। जितना सर्विस में बुद्धि लगी रहे उतना अच्छा है, आर्टिकल लिखो, डायलॉग लिखो, अनुभव लिखो, आर्टिस्ट बनो। किसी न किसी कार्य में बुद्धि लगी रहे। सब आर्ट सीखो, वक्त पर सब काम आता है।

RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Most Popular

Recent Comments