जहाँ हमें मांगने के बजाए महान बनने की शिक्षा मिली। कमज़ोर बनने के बजाय कमाल करने की बात समझ में आई। हम कहीं खो गए थे, अपने आप से और परमात्मा से बिछुड़ गए थे, पर सुबह का खोया, रात को घर आ जाये, उसको खोया नहीं कहते। ये बात हमें परमात्मा ने बहुत ही अच्छी तरह से समझाई और हमने समझी भी। बस इसी की कमाल से जीवन धन्य बन गया। न सिर्फ धन्य, बल्कि दूसरों को भी महान बनाने के काबिल हो गए। यही तो कमाल है हमारे प्राण प्यारे बाबा की। हम न सिर्फ धरती के सितारे बने, बल्कि दूसरों के सहारे भी बने।
हमें संसार में सबसे बड़ी लॉटरी मिली है, वो अवसर हमारे पास आया है जो हमें मन-इच्छित फल देने वाला है। हम तो बिछुड़ गये थे, कहीं अंधकार में भटक रहे थे, पर हमें तो घर बैठे वो मिला जो संकल्प में भी, सोच में भी नहीं था। कहते हैं, दिन का खोया रात को वापस आ जाये तो उसको खोया हुआ नहीं कहेंगे। यह कहावत हमारी ही है ना! हम परमात्म बाप को भूले तो आधा कल्प खो गये। खो भी वहाँ गये जहाँ माया ने अपनी गोद में बिठा लिया। और सिर्फ गोदी में ही नहीं, हमें गले तक पकड़ कर रखा है। जैसे कहते हैं सोने में खाद पड़ती, वैसे ही मुझ सोने में तमोप्रधानता की खाद पड़ गई थी। बाबा(परमात्मा) ने आकर के हमें फिर से ज्ञान-योग की भट्टी में डाला है और खाद निकाल सच्चा सोना बनाया है। हम तो माया के पास खो गये थे, बाबा ने अब इस संगम पर हम खोये हुए बच्चों को फिर से गोदी में बिठाया है और वापस अपने घर ले चल रहा है। इसलिए बाबा हमें रोज़ मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चे कहकर सम्बोधित करता है।
हम तो बाबा के बहुत प्यारे बच्चे हैं, जिन्हें स्वयं बाप ने पाला है। वैसे भी कोई गुणवान आत्मा होती है तो सभी को प्यारी होती है। उसके लिए कहते हैं इसे तो स्वयं भगवान ने फुर्सत से बैठकर बनाया है। गुणों की सुंदरता को देख कहते हैं कि इसे तो भगवान ने खास बनाया है। बनाया सबको है, लेकिन अगर गुणों को देखते हैं तो कहेंगे कि भगवान ने खास बनाया है। हम खास हैं, तभी तो भगवान ने भी खास बनाया है। कैसे बनाया? हमारा भाग्य विधाता हमारे भाग्य के तकदीर की लकीर खींच रहा है। इसलिए हमें अपने भाग्य का गुणगान करना है। भाग्य विधाता की महिमा निरंतर करनी है। स्वयं भगवान ने स्पेशल हमारे ललाट पर भाग्य की लकीरें खींची हैं। तब तो हम कहते हैं कि स्वयं भाग्य विधाता हमारे तकदीर की लकीर खींच रहा है। इसलिए हमें अपने भाग्य का गुणगान करना है। भाग्य विधाता की महिमा गानी है। भाग्यविधाता ने घृत डाल हमारा दीया जगाया है। इसलिए सब कोई पूछते, क्या तुम्हें निश्चय है कि तुम्हें भगवान बढ़ाते हैं? तो हम कहते कि क्या इसमें भी कोई संशय की बात है! अगर कोई पूछते हैं, तो माना संशय है। उनकी तकदीर की लकीरें अभी तक खींची हुई नहीं हैं।
मांगकर दूध को… पानी न बनायें – हम तकदीर जगाकर आये हैं। जगाने की मेहनत नहीं करते। हमारी तकदीर जगी हुई है। हम विश्व की सेवा पर उपस्थित हैं। एक तरफ भक्त कहेंगे, हे भगवान! मेरी तकदीर अच्छी करना। हम कहते हैं, अच्छी से अच्छी, महान से महान, सृष्टि को रोशन करने वाली तकदीर बाबा ने हमारी जगा दी है। ब्राह्मण अगर कहे कि बाबा हमारी तकदीर जगा कर रखना, तो उसको क्या कहेंगे? ये संशय है ना! बाबा हमें मदद करते रहना, क्या बाबा हमें मदद देता नहीं जो मैं मांगती हूँ! कहावत भी है, सहज मिले सो दूध बराबर…, बाबा ने हमारी दूध बराबर तकदीर बनाई है। हम मांगकर उस दूध को पानी क्यों बनाते हैं! ढृढ़ निश्चय वाले कभी भी कुछ मांग नहीं सकते। वह तो ओहो! बाबा… वाह बाबा… के गीत गायेंगे।
इतनी दूरी न बना लें… – बाबा कहते, मैं रोज़ बच्चों के नाज़ों का खेल देखता हूँ, क्योंकि बच्चे अभी तक बहुत नाज़-नखरे करते हैं। स्वयं को नीचे बिठाते और बाबा को बहुत ऊँचाई पर देखते हैं, तभी दूरी का अनुभव होता है। मैं तो बाबा को अपने साथ बिठाती, मैं बाबा के समान बनकर साथ में बैठ जाती। ऐसे नहीं, बाबा आप तो अर्श पर हैं, मैं तो फर्श पर हूँ। यह इतनी दूरी भी क्यों! दूर रहेंगे तो धरनी की धूल आकर्षित करेगी। जब बाबा ने हमें पवन पुत्र बनाकर उडऩा सिखाया, फिर हम धूल में क्यों खेलते! इतनी दूरी क्यों! समान बनकर बाबा के साथ क्यों नहीं बैठ जाते!
हम कौन हैं, इस स्वमान में रहें – हम हैं बाबा की सच्ची-सच्ची परियां। हमारी बुद्धि धरनी पर क्यों! हम तो धरनी के सितारे हैं। हम जग को रोशन करने वाले हैं। ऐसे रोज़ अमृतवेले अपनी मस्ती की छाप लगाओ। फिर कभी नहीं कहना पड़ेगा कि बाबा हमारी तकदीर जगा दो। बाबा ने हमें चोटी से पकड़कर निकाला और अपने साथ गद्दी पर बिठाया है। हम कोटों में कोई, सेलेक्टेड डायमण्ड हैं। फिर हम डायमण्ड कहें, अभी मेरे में दाग लगा हुआ है, तो अपनी वैल्यू को हम खुद ही कम क्यों करते! बाबा ने हमें सेलेक्ट कर लिया ना! हम बाबा के पास पहुँच गये। दुनिया देख-देख चिढ़ती रहे, हम तो बाबा के बन गये, बाबा हमारा बन गया।
हम कमज़ोर नहीं, कमाल करने वाले – तो हे बाबा के अनन्य सिकीलधे बच्चे! तुम ऐसे भी नहीं कहो, क्या करूँ माया आ जाती है। वह आती नहीं, तुम्हें छूती भी नहीं। आप छुट्टी देते हो तो नज़दीक आ जाती है। कहते हैं, मन्सा में आकर्षण होती है, लेकिन माया खाती तो नहीं है उनको खाने नहीं देना, बस इतना करना, आए…, आकर चली जाए। आप उनका स्वागत नहीं करना। उनकी पालना नहीं करना। माया आए, माया खाए नहीं, उसकी सम्भाल रखना। गेट पर चौकीदार होशियार रखना जो वो अंदर आकर नुकसान न करे। गेट के अंदर आने ही नहीं देना। बाहर से आए, नमस्कार करके चली जाए। हमारा उसमें क्या जाता है! ऐसे नहीं कहो, माया आती है। वह आती नहीं है, पेपर लेती है आप सभी की कमियों का, बुराइयों का। बुराइयों को दूर करने के लिए ही बाबा ने इसका नाम रखा है राजस्व अश्वमेध अविनाशी रूद्र गीता ज्ञान यज्ञ। किसी के ऊपर कोई ग्रह हो तो उसे इस यज्ञ में स्वाहा कर देना। क्रोध का, काम का, जो भी ग्रह हो, तो शिव बाबा के मंत्र से, उसे प्यार के बल से निकाल कर स्वाहा कर देना। फिर माया मासी कभी नहीं आयेगी।
पावन बनकर पावन दुनिया बनायेंगे – जब तक तन में प्राण है, तब तक मेरा प्रण है, क्रएक बाबा दूसरा न कोईञ्ज। हमारा प्रण है हम आपके सपूत बच्चे बनकर आपका नाम बाला करेंगे। हम पवित्र बनकर पवित्र दुनिया बनायेंगे। हम नई दुनिया स्वर्ग के लायक बनकर सृष्टि पर स्वर्ग ज़रूर लायेंगे। ये सब हमारे प्रण हैं। प्रण यानी प्रतिज्ञा। जब तक प्राण है, तब तक यह प्रतिज्ञा पक्की है। जबसे बीके बने, तब से यह प्रण अथवा वायदा किया है ना! यही वायदा पक्का निभाते रहना। ब्रह्माकुमार माना शिव बाबा हमारा आपसे वायदा है कि मरेंगे, जियेंगे, प्राण तजेंगे, लेकिन प्रण कभी नहीं छोड़ेंगे। हम देवता बनेंगे, एक धर्म-एक राज्य लायेंगे, पावन बनकर पावन दुनिया बनायेंगे।



