भारत में प्रतिवर्ष रक्षाबन्धन का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। इतना ही नहीं आज हम देख रहे है कि यह त्योहार सिर्फ देश तक सीमित नहीं है। विदेशों में भी रक्षाबन्धन का त्योहार मनाने लगे है जबकि उनकी मान्यताएं और कल्चर अलग है। इस त्योहार के अन्यान्य नामों से ही मेल खाता है जैसे कि ‘विष तोडक़ पर्व’, ‘पुण्य प्रदायक पर्व’ इत्यादि जो इसके अन्य नाम भी है। इससे सिद्ध है कि यह त्योहार पवित्रता की रक्षा करने, पुण्य करने और विषय-विकारों की आदत को तोडऩे की प्रेरणा देता है। यदि हम ऐसा बन्धन बाँधे तो निश्चय ही जैसे कि इन्द्र ने अपना राज्य-भाग्य गँवा दिया था तो इंद्र ने भी इन्द्राणि से यह रक्षाबंधन बँधवाया था और इसके फलस्वरूप अपना खोया हुआ स्वराज्य पुन: प्राप्त कर लिया था। इसी प्रकार दूसरी तरफ यह भी वर्णन मिलता है कि यम ने भी अपनी बहन यमुना से रक्षाबंधन बँधवाया था और उसने कहा था, इस बन्धन को बाँधने वाले मनुष्य यमदुतों से छूट जायेंगे। प्रश्न उठता है कि इस त्योहार से इतनी बड़ी प्राप्ति कैसे होती है?
वास्तव में उपर्युक्त सभी बातों का आध्यात्मिक अर्थ है। यह अर्थ सारे सृष्टि कल्प की कहानी जानने से समझ में आता है। सतयुग और त्रेतायुग में तो सभी मनुष्यात्माएं पूर्ण पवित्र, निर्विकारी थीं, इसलिए उन्हें स्वर्ग का सुख और स्वराज्य प्राप्त था। श्रेष्ठाचार के कारण वे देवी-देवता कहलाती थीं। द्वापार युग से वही देवी-देवता वाम मार्ग में चले गए इसलिए अपना राज्य-भाग्य गँवा दिया था। अब पुन: सृष्टि कल्प के इस पुरुषोत्तम संगमयुग में परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा के मुख द्वारा सहज ज्ञान और राजयोग की शिक्षा देकर मनुष्यों को शूद्र से सच्चे-सच्चे ब्राह्मण बना रहे है। अत: जो भी मनुष्यात्माएं पवित्रता का बन्धन बाँधेंगे वे पुन: देवपद प्राप्त करेंगी अर्थात् अपना खोया हुआ स्वराज्य ‘राज्य-भाग्य’ प्राप्त करेंगी और यम के दण्ड से भी छूट जायेंगी और मुक्ति भी प्राप्त करेंगी। इसलिए रक्षा सिर्फ भाई और बहन के बीच का सम्बंध नहीं है कि बहन भाई को रक्षासूत्र बांधे और भाई उनकी रक्षा करे। पर रक्षाबंधन का व्यापक और सूक्ष्म सम्बंध पवित्रता के साथ है। पवित्रता तन की, मन की, संकल्पों की, व्यवहार की, वाणी की हो तो व्यक्ति कुछ हद तक इस बंधन के साथ बंधा हुआ है और सुरक्षित है।
रक्षाबन्धन का सम्बंध आध्यात्मिकता से ही है कि परमपिता परमात्मा के पवित्रता के सम्बंध को एक रिश्ते के साथ जोड़ा जाता है, वो है भाई और बहन का रिश्ता, जो रक्तसम्बंधी हैं, और एक माता-पिता के संतान हैं। इसलिए ये रिश्ता अति पवित्र है क्योंकि इसमें दृष्टि-वृत्ति एक जैसी होती है। लेकिन आज की दयनीय स्थिति क्या कहीं ये बयां करती है? आज इतनी विकृति है इस दुनिया में कि किसी की भी वृत्ति किसी के लिए भी खराब हो जाती है। ऐसे में कौन किसपर विश्वास करे, कौन किसकी रक्षा करे! सब भक्षक हो गये, कोई रक्षक नहीं रहा। आज कोई बहन अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है, तब भला हमें सुरक्षा कौन दे? तो ऐसे में एक परमपिता ही है जो परम रक्षक है, परम पवित्र है और वो हमारी रक्षा भी पवित्रता का कंगन बांध के करता है। अर्थात् जब हम पवित्र सोच के साथ, पवित्र दृष्टि-वृत्ति के साथ आगे बढ़ते हैं तो स्वयं ही हम अपनी रक्षा कर लेते हैं। ये है इस त्योहार का परमात्मा के साथ गहरा सम्बंध। इसलिए एकमात्र सहारा है परमात्मा, जो हर विपत्तियों से, बुराइयों से, विकारों से, पवित्रता के आधार से हमारी रक्षा करता और करवा सकता है।
चलो, हम इस त्योहार को स्व-रक्षा, नारी रक्षा, देश रक्षा के लिए पाँच संकल्पों के साथ मनायें…
1. तन से अर्थात् कर्म से : कर्म करते हुए इस बात का ज़रूर ध्यान रखना है कि हर कर्म की प्रतिक्रिया ज़रूर होती है। जो किया है वही लौट कर आयेगा और निश्चित रूप से आयेगा। इसलिए श्रेष्ठ कर्म ही करेंगे।
2. मन से अर्थात् संकल्पों से : रक्षाबंधन में सबसे पहला काम कि हमें अपने मन को श्रेष्ठ बनाना है। सिर्फ और सिर्फ एक दूसरे को हम अच्छी दृष्टि से मतलब आत्मिक भाव से देखेंगे ।
3. वाणी से अर्थात् संयमित बोल से : दुनिया में लोग कहते हैं कि हमारा मन नहीं था, हमारा भाव नहीं था, हमने ऐसे ही बोल दिया। हमारे बोल में शक्ति है, किसी के सम्बंध को जोड़ भी सकती है तो तोड़ भी सकती है। इसलिए तोल के बोलो, कम बोलो, धीरे बोलो, मीठा बोलो और संयमित बोलो।
4. वृत्ति से अर्थात् नज़रियाँ से : किसी भी संकल्प को बार-बार दोहराने से वृत्ति का निर्माण होता है। । इसलिए वृत्ति में यही डालो कि यह देह नहीं, सुंदर सी चैतन्य शक्ति श्रेष्ठ आत्मा है। इससे हमारा वातावरण शक्तिशाली बन जायेगा। शुद्ध वृत्ति।
5. निमित्तपन का अभ्यास से : निमित्तपन का भाव पवित्रता के आधार से आता है। जहाँ निमित्तपन का भाव होता है वहा सहज ही स्व कल्याण, राष्ट्र कल्याण की भावना होती है। इसलिए निमित्तपन के भाव से आप बंधनमुक्त रहते हैं, शक्तिशाली रहते हैं। तेरा-मेरा नहीं परन्तु विशाल बुद्धि बन जाती है।
इसलिए हर कर्म के महत्व और मर्म को जानकर, श्रेष्ठ संकल्पों से, मीठे बोल से, नजरियाँ में शुद्ध आत्मा और निमित्तपन के आसान पर बैठकर, विशेष ध्यान देकर संकल्प परिवर्तन की धारणा से रक्षाबंधन को यादगार बनायें।




