इस सृष्टिरूपी रंगमंच पर हर कोई अपनी भूमिका को बहुत ही अच्छा, प्रेरणादायी, प्रभावशाली, शक्तिशाली बनाना चाहते हैं। लेकिन पहले हमें अपनी मन की शक्ति को बहुत अच्छी, प्रभावशाली व शक्तिशाली बनाने की आवश्यकता है। प्राय: लोग गाते है कि इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमज़ोर हो ना…. । कुछ लोग यह भी कहते हैं कि मन जीते तो जगत जीते। आदिशंकराचार्य जी ने भी यही कहा है कि मन की जीत मनुष्य की सबसे बड़ी जीत है। सही मायने में अगर कोई भी व्यक्ति विश्व की या समाज की सेवा करना ही चाहता है तो इसके लिए मन की शक्ति बड़ी प्रबल चाहिए।
मन की शक्ति का पहला प्रयोग स्वयं पर करना ज़रूरी है:- जब तक स्वयं पर इसका गहरा प्रभाव नहीं पड़ता तब तक हम समाज तथा विश्व को बंधुत्व की भावनाओं में, विश्व शांति के विकास में सफल नहीं हो सकते। इसलिए स्व परिवर्तन के लिए मन की शक्ति का प्रयोग की पहल होनी चाहिए। जब तक स्वयं सर्वश्रेष्ठ मन की शक्ति न प्राप्त कर ले तब तक प्रयास जारी रखकर हर कार्य को सही दिशा में अंजाम देना चाहिए। जब यह शक्ति सही दिशा में चल पड़ेगी तब कुछ भी असंभव नहीं होगा, सबकुछ अपने बस में होगा। मन की शक्ति के द्वारा चाहे कोई भी आत्मा सम्मुख हो,समीप हो या कितना भी दूर हो कुछ ही पल में उस आत्मा को प्राप्ति की अनुभूति करा सकते है।
लक्ष्य और लक्षण को समान करना है:- मन की शक्ति की महिमा युगों से चलती आ रही है। इस मन्सा शक्ति से किसी भी आत्मा की मानसिक हलचल की स्थिति को अचल बना सकती है। हम सभी ने कहीं ना कहीं किताबों में पढ़ा हैं या तो प्रैक्टिकल जीवन में भी कभी-कभी मन की एकाग्रता को देखा है तथा उसका अनुभव भी किया है, इसको नकारा नहीं जा सकता है। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में कुछ ना कुछ ऐसे पल आते है कि उसमें सहन शक्ति नहीं है परंतु वह सहन कर लेता है। कुछ ऐसी बात होती है जिसमें वह उस बात को कर ही नहीं सकता परंतु कर लेता है, यह भी मन की शक्ति का ही परिणाम है। यह शक्ति सूक्ष्म है इसे समझना बहुत ज़रूरी है। मन की शक्ति हर क्षेत्र में कामयाबी के शिखर पर पहुंचाती है। अगर किसी खिलाड़ी, या किसी उच्च शिखर पर सफलता प्राप्त किए हुए व्यक्ति को पूछते है, तो वह भी यही कहता है कि – मैंने अपनी एकाग्रता द्वारा मन शक्ति को समझा और उसे कार्य में लगाया तब मैं इस मुकाम तक पहुंच पाया हूँ। कुछ लोग कहते है हमने कड़ी मेहनत की, बार-बार उसी को ध्यान दिया और मंजिल तक पहुंच गये। कहने का भावार्थ यही है कि लक्ष्य और लक्षण को समान करके एकाग्र कर दिया जाए तो सफलता मिलती है। परंतु इसके लिए हमारी मन की शक्ति की बहुत ज़रूरी होती है। अगर मन की इच्छाशक्ति प्रबल नहीं है, तो भी मंजिल को देखते हुए भी सफलता को नहीं पा सकते है। इसलिए हमारे विचारों में शुद्धता भी ज़रूरी है तब ही मन की शक्ति को प्रभावशाली वा शक्तिशाली बना सकते है। खामोशी से मन की शक्ति को उजागर कर बढ़ा सकते है। हलचल,आवाज में आने से मन की शक्ति बढ़ नहीं सकती। हमारे श्रेष्ठ भाव,भावनाओं में परिवर्तन हो जाते है। इसे निरंतर श्रेष्ठ रखने से वह शक्तिशाली बन जाते है।
हमारी श्रेष्ठ भावना किसी भी दूर बैठी आत्मा के भाग्य की रेखा बदल सकती :– अब बड़े सरल शब्द में मन की शक्ति है क्या? इसे समझने की ज़रूरत है। मन की शक्ति अपने आपमें विशेष अदृष्य शक्ति है जो असंभव को भी संभव बना सकती हैं। मन की शक्ति अर्थात् शुभ-भावना, श्रेष्ठ भावना व कामना। इस श्रेष्ठ भावना द्वारा स्वयं तथा किसी आत्मा को संशय बुद्धि को श्रेष्ठ भावनात्मक बुद्धि बना सकते हैं। इस श्रेष्ठ भावना से स्वयं तथा किसी भी आत्मा का व्यर्थ भाव, नकारात्मक भाव परिवर्तन कर समर्थ भाव बना सकते हैं। इस श्रेष्ठ भावना से किसी आत्मा के स्वभाव को बदल सकते हैं। श्रेष्ठ भावना की शक्ति द्वारा किसी आत्मा की भावना के फल की अनुभूति कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि लोग भगवान को समझते हैं लेकिन उसे प्राप्त नहीं कर सकते, परंतु श्रेष्ठ भावना द्वारा भगवान के समीप जा सकते हैं। हमारी श्रेष्ठ भावना किसी भी दूर बैठी आत्मा के भाग्य की रेखा बदल सकती है। हमारी श्रेष्ठ भावना हिम्मतहीन आत्मा को हिम्मतवान बना देती है। यही है मन की शक्ति, जिससे सदा श्रेष्ठ भाव और भावना हमारे मन में उत्पन्न होते है।
दूसरों पर नज़र रखने क बजाए अपने संकल्पों पर नज़र रखो:- वर्तमान समय की भी मांग है कि शांत रहकर यह सबकुछ करो,जो ईश्वर सदा ही करता आया है। क्योंकि समस्या यह है कि अगर आप अच्छा कुछ बोलते भी है तो लोगों में समझने की शक्ति की कमी है। इसलिए अन्तर्मुखी होकर मन की शक्ति का प्रयोग करते चले, यह मन की शक्ति का अन्तर्मुखीयान है जो कुछ ही पल में कहीं भी श्रेष्ठ परिणाम ला सकता है। यह युग हलचल का है इसमें हर समय कुछ ना कुछ हलचल, मन को कमजोर करने वाली बातें होती रहती है। परिस्थिति हलचल की है लेकिन मन की शक्ति जिसके पास है वह अचल-अडोल,स्थिर रहता है। जितना इस हलचल से उपर, पृथ्वी के लगाव से परे, स्थूल आकर्षणों से परे होते जायेंगे उतना ही हल्के, लाइट बनते जाते हैं। लाइट ही माइट बनाती है, इसलिए मन में किसी भी प्रकार का बोझ नहीं होना चाहिए। कमजोर मन के इंसान को इस संसार में सर्वत्र समस्या ही दिखाई पड़ेगी। समस्या कमजोर मन की रचना है। हमारे हर नकारात्मक विचार से निगेटिव एनर्जी निकलके हमारा ही नुकसान करती है। और हर सकारात्मक विचार से पॉजिटिव एनर्जी निकलके हमारा श्रेष्ठ भाग्य निर्माण करती है। इसलिए दूसरों पर नज़र रखने क बजाए अपने संकल्पों पर नज़र रखो। अपने संकल्पों को पवित्र,श्रेष्ठ, शुद्ध, सकारात्मक बनायें और अपनी मन की शक्ति को बढ़ायेें।
साइलेंस में बैठकर परमपिता परमात्मा से कनेक्ट होकर, अपने आपको चार्ज करें:- लोगों के पास ज्ञान है कि शराब नहीं पीना चाहिए, गुटखा नहीं खाना चाहिए, किसी का नुकसान नहीं करना चाहिए फिर भी स्वयं को तथा दुसरों को नुकसान देने वाली क्रियाकलाप करते हैं। क्योंकि कमज़ोर मन है, मन को शक्तिशाली करने की ज़रूरत है। मन की शक्ति बढ़ाने के लिए स्वयं को चार्ज करना चाहिए। रोज सुबह आधा घंटा अन्तर्मुख होकर, साइलेंस में बैठकर परमपिता परमात्मा से कनेक्ट होकर, अपने आपको चार्ज करें। दिन में भी बीच-बीच में कुछ मिनट साइलेंस में रहकर इस तरह का अभ्यास करें। जिससे आत्मा की बैटरी चार्ज रहेगी और सकारात्मक विचारों से मन की शक्ति निरंतर बढ़ती रहेगी। ऐसे शक्तिशाली मन के लोग स्वयं खुशहाल रहते हैं, अपने कर्मेंन्द्रियों को काबू में रखते हैं । दूसरों को भी अपने इस तरंगों से लाभान्वित कराते हैं,आस-पास का वातावरण को भी असीम शांति से भर देते हैं। माहौल खुशी वा आनंद के प्रकम्पनों से भरपूर हो जाता है। इसलिए बढ़ायें मन की शक्ति और कीजिए कमज़ोरयों का विसर्जन। स्वयं के कमजोरियों के विसर्जन से जनता जनार्धन का भी मनोबल बढ़ेगा । इससे ही प्राचिन भारतीय आध्यात्म संस्कृति का परचम सारे विश्व में पुन: स्थापित होगा।

बी.के. दिलीप राजकुले, ओमशांति मीडिया शांतिवन ।




