ज्ञान की सबसे बड़ी नींव है- ‘परमपिता परमात्मा शिवबाबा पर अटूट निश्चय।’ जब यह निश्चय दृढ़ रहता है तो साधक हर स्थिति में स्थिर, शक्तिशाली और आनन्दमय रहता है। लेकिन क ई बार साधक के मन में संशय आ जाता है। यह क्यों होता है, आइए इसके कारणों और समाधान पर विचार करें।
1. आत्मा की पुरानी वृत्तियाँ और संस्कार – अनेक जन्मों से मनुष्य ने देह-अभिमान, भक्ति-भावना और मायावी आर्कषण में अपना जीवन बिताया है। जब आत्मा ज्ञान मार्ग पर आती है, तो नया संस्कार डालने में समय लगता है। पुराने संस्कार बीच-बीच में उभरकर निश्चय को डगमगा देते हैं। ऐसे समय में हिम्मत व दृढ़ता का हाथ नहीं छोडऩा है।
2. संग का प्रभाव – यदि साधक का संग ऐसी आत्माओं से हो जाए जो संदेह या आलोचना करती हैं, तो मन प्रभावित हो जाता है। संग की शक्ति इतनी प्रबल है कि वह पक्के विश्वास व निश्चय को भी आसानी से डगमगा सकती है। इसलिए बाबा बार-बार ‘संग और वातावरण’ की सावधानी रखने की समझानी व इशारा देते हैं।
3. स्व-अध्ययन और मनन की कमी – यदि रोज़ाना मुरली का गहन अध्ययन, मनन-चिंतन और अमल नहीं किया जाता, तो धीरे-धीरे आत्मा की शक्ति घटने लगती है। शक्ति घटने पर माया को अवसर मिल जाता है संशय डालने का।
4. परिणाम की जल्दी – कई साधक चाहते हैं कि बाबा की याद में तुरंत ही गहरी अनुभूति हो या जीवन में तुरंत ही परिवर्तन आ जाए। जब अपेक्षा पूरी नहीं होती तो मन संदेह करने लगता है- ‘क्या सचमुच बाबा है? क्या ये मार्ग सही है?’ यह अधीरता भी संशय का कारण है।
5. परीक्षा की घडिय़ां – बाबा बार-बार कहते हैं- ‘निश्चय बुद्धि विजयी।’ लेकिन माया की अंतिम परीक्षाएँ बहुत सूक्ष्म रूप में आती हैं। जब विपरीत परिस्थितियाँ या कष्ट आते हैं, तो कमज़ोर आत्मा सोचती है कि यदि बाबा है तो मुझे दु:ख क्यों मिला? यही सोच निश्चय को कमज़ोर कर देती है। इस प्रकार यदि साधक निरंतर अभ्यास, संग और मनन में दृढ़ रहता है तो कोई भी संशय टिक नहीं सकता। निश्चय ही विजय की कुंजी है और बाबा पर अडिग निश्चय रखने वाला साधक हर परिस्थिति में विजयी बन जाता है।
समाधान क्या है?
- रोज़ाना मुरली का अध्ययन और गहन मनन-चिंतन करना।
- बाबा की याद का अभ्यास बढ़ाना और अनुभव लिखना।
- सकारात्मक व निश्चयी आत्माओं का संग करना।
- परिस्थितियों को परीक्षा समझ पार करना, न कि संदेह करना।
- धैर्य और श्रद्धा को जीवन का आधार बनाना।




