क्या है अटैचमेंट और डिटैचमेंट

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हम सभी अटैचमेंट को नॉर्मल कहते हैं लेकिन अटैचमेंट दर्द देती है। सिर्फ हमें ही नहीं देती सामने वाले को भी देती है। बहुत दर्द देती है। हमें लगा कि अटैचमेंट मिन्स लव। जहाँ बहुत प्यार है वहाँ हम कहते हैं कि हम एक-दूसरे से बहुत अटैच हैं। ये शब्द बोलना भी हमारे लिए अच्छा नहीं है और उनके लिए भी अच्छा नहीं है। क्योंकि अटैचमेंट मतलब क्या? अटैचमेंट मतलब मेरा मन उनके मन पर डिपेंडेंट(आधारित) हो गया है। जब भी हम किसी चीज़ पर डिपेंड होते जायेंगे, डिपेंडेंसी एक विकनेस(कमज़ोरी) है। अगर हमारे मन की स्थिति किसी के मन की स्थिति पर, व्यवहार पर डिपेंडेंट हो गई तो हर्ट होना नैचुरल है। तो वो हमारे अनुसार हमेशा परफेक्ट हो,ये नहीं हो सकता है। वो परफेक्ट हो सकते हैं लेकिन हमारे अनुसार नहीं।
अगर हमारे परिवार में किसी के जीवन में कोई बात आती है तो हम परेशान हो जाते हैं। कोई सही व्यवहार नहीं करता हम दु:खी हो जाते हैं। और फिर हम उनको क्या कहते हैं कि मैं आपसे अटैच हूँ ना तो बुरा तो लगेगा ही! ये लाइन को चेंज करना है क्योंकि जैसे ही मुझे बुरा लगा मैंने अपने रिश्ते पर घाव डाली है। क्योंकि मुझे बुरा लगा माना मैंने बुरी एनर्जी क्रियेट कर दी, क्योंकि मैं अटैच हूँ। अटैचमेंट नॉर्मल कैसे हो सकती है! डिपेंडेंसी नॉर्मल कैसे हो सकती है! एडिक्शन(लत) नॉर्मल कैसे हो सकती है! इन सब चीज़ों को हम हेल्दी कैसे कह सकते हैं!
डिटैचमेंट नॉर्मल है। अब हम डिटैचमेंट से डर जाते हैं, हमें डिटैचमेंट का मिनिंग समझना है। फिर पता चल जायेगा हमें कि नॉर्मल क्या है, जब हम उसे फील करेंगे। रिश्ते कब नॉर्मल होते हैं अटैचमेंट में या डिटैचमेंट में! डिटैचमेंट फिजि़कल नहीं है। डिटैचमेंट का मतलब ये नहीं है कि हम दूर-दूर हो जाते हैं एक-दूसरे से। हमें एक-दूसरे की परवाह नहीं रहती, ये डिटैचमेंट नहीं है। इनको कुछ फर्क ही नहीं पड़ता। हम कहते हैं ना कि इनको तो कुछ फर्क ही नहीं पड़ता। इसको तो कोई अपनी जि़म्मेवारी ही नहीं है। ये केयरलेस(लापरवाह) है। हम कभी-कभी गलत शब्द यूज़ करते हैं। हम कहते हैं कि ये डिटैच हो गये। ये डिटैच नहीं हुए ये सिर्फ दूर हो गये हैं। दूर होना डिटैचमेंट नहीं है।
अटैचमेंट क्या है? जब हमारे मन की स्थिति दूसरों पर डिपेंडेंट हो जाती है, ये अटैचमेंट है। हम दूसरे देश में दूर रहकर भी अटैच हो सकते हैं। हम साथ-साथ बैठकर भी डिटैच हो सकते हैं। क्योंकि अटैचमेंट और डिटैचमेंट हमारे मन में है, आत्मा में है। तो अटैचमेंट मतलब मेरे मन की स्थिति उन पर निर्भर है। उधर अगर कुछ भी बदलेगा तो मैं यहाँ से(मन से) बदल जाऊंगी, ये अटैचमेंट है। तो जब ये अटैचमेंट होती है तो फिर हर्ट, रिजेक्शन, दु:ख, दर्द क्रियेट होता है। तो वो एनर्जी क्रियेट होती है। बैटरी डिस्चार्ज होती है, वहाँ वायब्रेट होती है। वहाँ भी डिस्चार्ज होता है। रिश्ते में गाँठें बढ़ती जाती हैं। लेकिन डिटैचमेंट, डिटैचमेंट मतलब मेरे मन की स्थिति उनके ऊपर निर्भर नहीं है। इसका मतलब सामने वाला जो व्यवहार करे, जिस तरह से बात करे, न करे, मेरा ध्यान रखे या न रखे वो उनका व्यवहार है। लेकिन उनके व्यवहार में हम राय देंगे, गाइड करेंगे, इंस्ट्रक्ट करेंगे(शिक्षा देना), डिसिप्लिन(अनुशासन) करेंगे। बहुत ज़रूरी है डिसिप्लिन करना लेकिन हम उनके व्यवहार में डिस्टर्ब नहीं होंगे। इसका मतलब हम मन से डिटैच हैं। उनका व्यवहार मुख तक है उनका व्यवहार यहाँ(मन में) नहीं चल रहा है। हम नहीं डिस्टर्ब हो रहे। अगर वो डिस्टर्ब हो रहे हैं, अगर उनकी लाइफ में कोई उतार-चढ़ाव आया है परिवार में होता है ना!
मान लो परिवार में किसी के जीवन में कोई उतार-चढ़ाव आये हैं। जब वो उतार-चढ़ाव आता है तो वो कभी-कभी थोड़ा-सा अपसैट हो जाते हैं। चिंता में हो जाते हैं तो उनको हमसे किस चीज़ की ज़रूरत है? शक्ति की ज़रूरत है, पॉवर की ज़रूरत है, लेकिन अगर हम अटैचड हैं उनसे ज्य़ादा चिंता तो हमें हो जाती है और जब हमें चिंता हो जायेगी तो हम मन में दर्द क्रियेट करेंगे और वो वहाँ वायब्रेट करेगा। तो फिर वो कहेंगे कि आप ना मुझसे थोड़ा दूर रहो। आप मुझे थोड़ा स्पेस दीजिए। मैं इस समय आपके साथ नहीं बैठ सकती। क्यों? हम तो आपके साथ बैठना चाहते हैं। कंफर्टेबल नहीं है हमारे साथ बैठने के लिए। क्योंकि उनको हमसे अच्छे वायब्रेशन नहीं मिल रहे। क्योंकि हमारे वायब्रेशन चिंता के हैं, क्योंकि हमारे वायब्रेशन दर्द के हैंऔर वो वायब्रेशन उनकी भी शक्ति घटा रहेहैं। इसलिए डिटैचमेंट रहने की प्रैक्टिस करना बहुत-बहुत महत्त्वपूर्ण है।
डिटैचमेंट अनकंडीशनल(बिना शर्त) लव और एक्सेप्टेंस है। ये शब्द हमें कितना अच्छा लगता है अनकंडीशनल लव एंड अनकंडीशनल एक्सेप्टेंस(स्वीकार्य)। अच्छा लगता है ना कि मेरे से हर वक्त प्यार की एनर्जी वायब्रेट करती रहे। मेरे अन्दर कोई हर्ट, कोई दर्द नहीं आये क्योंकि मेरे से फिर वो चला जाता है। अनकंडीशनल लव मतलब वो कुछ भी करे बस मेरे से प्यार की एनर्जी रेडिएट करनी चाहिए। हम कहते हैं कि हम उनसे प्यार करते हैं लेकिन हमसे सारा दिन प्यार की एनर्जी रेडिएट नहीं होती है। क्योंकि हमसे वो रेडिएट होगा जो मन में चलेगा। अगर मैं दो मिनट के लिए भी हर्ट हूँ तो दो मिनट के लिए मेरे से हर्ट की एनर्जी रेडिएट हो रही है। तो अनकंडीशनल लव, जब हम यहाँ मन से परफेक्ट होंगे तब अनकंडीशनल लव और अनकंडीशनल एक्सेप्टेंस है। और यहाँ परफेक्ट होने के लिए अनकंडीशनल लव रेडिएट करने के लिए इसको उधर से डिचैटड होना पड़ेगा।

यानी मेरा मन किसी और पर निर्भर नहीं है। आत्म निर्भर मतलब मैं आत्मा किसी पर निर्भर नहीं हूँ इमोशनली(भावुकतापूर्वक)।
इंडिपेंडेंट- इंडिपेंडेंट इज डिटैचमेंट, मन से स्वतंत्र। मन में जो भी चल रहा है वो मेरी च्वाइस से चल रहा है। ऐसे नहीं कि कोई भी आया, किसी ने कुछ कहा तो मैं प्रभावित हो गई। अटैचमेंट हमारी सिर्फ परिवार से नहीं होती है। हमें लगता है कि हम परिवार से बहुत अटैचड हैं, फै्रंड्स से बहुत अटैचड हैं, नहीं। अटैच तो हम बहुत लोगों से हैं, अटैच तो हम बहुत बातों से हैं जिस-जिस चीज़ का प्रभाव मन पर पड़ जाता है हम उस-उस से अटैच हैं। कोई भी सीन से हम डिस्टर्ब होते हैं तो हम उससे अटैचड हैं। आप टै्रफिक में अटक जाते हैं 2 मिनट के लिए, सामने वाला गाड़ी गलत तरह से चला रहा है और हॉर्न बहुत बजा रहा है हम परेशान हो गये, उस क्षण के लिए हम उससे अटैच हो गये क्योंकि उसके बिहेवियर(व्यवहार) ने हमारे मन पर असर डाल दिया। मतलब मेरा मन उसके बिहेवियर से अटैच था उस टाइम। ये अटैचमेंट है। हमें डिटैच होना है वो गलत गाड़ी चला रहे हैं, वो हॉर्न ज्य़ादा बजा रहे हैं हम उसको राय दे सकते हैं अगर दे सकते हैं तो! नहीं हम यहाँ स्थिर हैं ये है डिटैचमेंट। फिर वो चाहे सड़क पर अनजान है या फिर हमारे परिवार का कोई सदस्य है, बच्चा है, क्लीग है, स्पाउस है, क्लाइंट है वो उनका व्यवहार, उनका संस्कार यदि हम स्टेबल हैं, पॉवरफुल हैं, डिटैच हैं, अनकंडीशनली गिविंग हैं तो रिश्ता मन से ब्यूटीफुल(सुन्दर) होगा और जब रिश्ता मन से ब्यूटीफुल होगा तो यहाँ(मन) हमेशा स्ट्रॉन्ग होगा। चाहे कितनी भी बातें बाहर आ जायें, चाहे कितने प्रेशर क्रियेट हो जायें यहाँ(मन की) अगर बैटरी चार्जड है और यहाँ तब होगी जब हम बैटरी को डेली बेसिस(दैनिक आधार) पर चार्ज करेंगे।

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