परमात्म ऊर्जा

स्व-चिंतन और शुभ चिंतक

सफलतामूर्त बनने के लिए मुख्य दो ही विशेषताएं चाहिए- एक प्युरिटी और दूसरी यूनिटी। अगर प्युरिटी की भी कमी है तो यूनिटी में भी कमी है। प्युरिटी सिर्फ ब्रह्मचर्य व्रत को नहीं कहा जाता, संकल्प, स्वभाव, संस्कार में भी प्युरिटी। मानों एक-दूसरे के प्रति ईष्र्या या घृणा का संकल्प है; तो प्युरिटी नहीं, इम्प्युरिटी कहेंगे। प्युरिटी की परिभाषा में सर्व विकारों का अंश-मात्र तक न होना है। संकल्प में भी किसी प्रकार की इम्प्युरिटी न हो। आप बच्चे निमित्त बने हुए हो बहुत ऊंचे कार्य को सम्पन्न करने के लिए। निमित्त तो महारथी रूप से बने हुए हो ना। अगर लिस्ट निकालते हैं तो लिस्ट में भी सर्विसएबुल तथा सर्विस के निमित्त बने ब्रह्मा वत्स ही महारथी की लिस्ट में गिने हुए हैं। महारथी की विशेषता कहाँ तक आयी हुई है- सो तो हर-एक स्वयं जाने। महारथी जो लिस्ट में गिना जाता है वो आगे चल कर महारथी होगा अथवा वर्तमान की लिस्ट में महारथी है। तो इन दोनों बातों के ऊपर अटेन्शन चाहिए।

यूनिटी अर्थात् संस्कार-स्वभाव के मिलन की यूनिटी। कोई का संस्कार और स्वभाव न भी मिले तो भी कोशिश करके मिलाओ, यह है यूनिटी। सिर्फ संगठन को यूनिटी नहीं कहेंगे। सर्विसएबुल निमित्त बनी आत्माएं इन दो बातों के सिवाए बेहद की सर्विस के निमित्त नहीं बन सकती हैं, हद के हो सकते हैं। बेहद की सर्विस के लिए ये दोनों बातें चाहिए। सुनाया था ना- रास में ताल मिलाने पर ही होती है- वाह! वाह! तो यहाँ भी ताल मिलाना अर्थात् रास मिलाना है। इतनी आत्माएं जो नॉलेज वर्णन करती हैं तो सबके मुख से यह निकलता है- ये एक ही बात कहते हैं, इन सब का एक ही टॉपिक, एक ही शब्द है यह सब कहते हैं ना। इसी प्रकार स्वभाव और संस्कार एक-दो में मिलें, तब कहेंगे रास मिलाना।

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