मुख पृष्ठब्र.कु. अनुजसाधक स्वीकार करता है

साधक स्वीकार करता है

हम सभी हमेशा जीवन में सुधार की बात करते हैं। सुधार का मतलब है हमेशा प्रयास की बात करते हैं और प्रयास का मतलब आने वाले समय में, आने वाले कल में हम सुधर जाएंगे, बदल जाएंगे। और जब हम सुधार की तरफ देखते हैं माना भविष्य की ओर देखते हैं, भविष्य का अर्थ है कि हम बदलेंगे ये निश्चित है भी, नहीं भी। अगर थोड़ा बदल गए तो उसका अहंकार है और अगर नहीं बदले तो हम परेशान हैं, ये है आम आदमी का जीवन।

जो साधना करता है, जो साधक है वो जीवन में कुछ अलग करना चाहता है। वो जीवन में हरेक चीज़ को स्वीकार करता है। तो साधारण जीवन सुधार करता है और साधक का जीवन स्वीकार करता है। हम सभी इन दोनों में से क्या हैं इसको देखो। क्योंकि हमको शांति, प्रेम और सौहार्द के साथ जीवन जीने का मन करता है। अगर हम ऐसा जीवन जीना चाहते हैं तो दु:ख, पीड़ा, परिस्थिति, चिंता, भय जो कुछ भी हमारे साथ हो रहा है, जो कुछ भी हमारे जीवन में आता है वो ये झांकने आता है कि क्या ये आपको स्वीकार है? क्योंकि आपके द्वारा ही किया गया कर्म है जो आपके सामने आ रहा है। या आप इसका विरोध कर रहे हैं कि मेरे जीवन में ऐसा क्यों हो रहा है! जब आप इसको स्वीकार करते जा रहे हैं तो शांति बढ़ती चली जाएगी। और जैसे ही आप इसका विरोध करेंगे तो अशांति जीवन में जन्म ले लेगी।

तो हम सभी का जीवन भी इसी तरह से है। हम हर पल, हर क्षण, हरेक चीज़ के विरोध में लगे हुए हैं। विरोध का अर्थ ये नहीं कि बहुत बड़ा विरोध। लेकिन जो हम हैं और जो हम नहीं हैं, उन दोनों के बीच में परस्पर विरोध है। हम हैं कि हमारे साथ जो कुछ हो रहा है, जो स्थिति, परिस्थिति बदल रही है वो हमारी वजह से है इसको न मानने का पूरी तरह से दृढ़ संकल्प बनाया है। दूसरा है कि मान लेना। मैं ऐसा नहीं हूँ जैसा सबको दिखता हूँ। तभी छोटी-छोटी बात को लेकर परेशान होता हूँ।

तो साधना एक दिन का विषय नहीं है, लम्बे काल का विषय है। अभ्यास का विषय है और वो अभ्यास एक दिन में नहीं होता उसके लिए निरंतर प्रयास की ज़रूरत होती है और उस प्रयास के लिए हमको बैठना पड़ेगा अपने साथ। इसलिए मनन-चिंतन शब्द का हम इस्तेमाल करते हैं। मनन है युद्ध के पहले की अवस्था, चिंतन है युद्ध के बाद की स्थिति। इसलिए मनन-चिंतन के आधार से हम सबको इस बात को समझ लेना है। जैसे जो चीज़ अस्थाई है- जैसे पीड़ा है, भय है, दु:ख है, चिंता है, परिस्थिति है वो बदलने आया है। ये बदल जाएगा, ये आपको बदलने नहीं आया है। लेकिन हम सभी क्या करते हैं इसको लेकर बैठ जाते हैं।

इसीलिए जैसे कहा जाता है कि सत्य आसान बहुत है लेकिन कठिनाई तो विरोध में है। जैसे सूरज या हवा हमेशा से है, पहले से ही है केवल हमने खिड़की बंद की हुई है, खोल देंगेे तो रोशनी भी आयेगी और हवा भी आयेगी। इसलिए जहाँ प्रेम होता है वहाँ विरोध होता ही नहीं। वैसे ही स्वीकृति है, बस वैसा ही हमारा जीवन है। इसलिए कहा जाता है कि बिना निर्णय, बिना टिप्पणी, बिना देखा समर्पण। पहली सीढ़ी है स्वीकार करने की। इसलिए कहा जाता है ना जीवन को बिना भय के बहने देना, बिना चिंता के बहने देना। जैसा है वैसे देखना, इसी को कहा जाता है जीवन। जैसे एक ऐसी नदी जो बिना मानचित्र के सागर तक पहुंच जाती है। इसलिए समर्पण का सीधा-सा अर्थ है कि इस दुनिया में मेरा कुछ भी नहीं है। जैसे आप कहते हैं, मैं कहता हूँ जि़म्मेदारी, असफलता, सब तुम्हारे साथ हो जाती है और जैसे कहते सब हो रहा है मैं केवल निमित्त हूँ वहीं से हमारा सारा भार उतर जाता है और हमारी शांति बढ़ जाती है।

तो एक साधक का जीवन हम सभी को अपनाना चाहिए। साधक जैसे हरेक चीज़ को स्वीकार करता चला जाता है, अच्छा या बुरा, उसका विरोध नहीं कर रहा है, उसके जीवन में शांति बढ़ती चली जाएगी और अशांति दूर हो जाएगी। और जैसे ही आप चाहेंगे कि नहीं मैं इसको सुधार सकता हूँ, मैं ऐसा बनके दिखाऊंगा वैसे ही हम असहज हो जाएंगे, अतृप्त रहेंगे। इसीलिए साधक बनना है लेकिन वैसा बनना है जैसा परमात्मा चाहते हैं। केवल देखना है साक्षी होकर, निमित्त होकर, समर्पण भाव से। फिर देखो जीवन कितना सहज और सरल लगता है!

RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Most Popular

Recent Comments