जिन माताओं-कन्याओं द्वारा परमात्मा के ज्ञान को चहुँ ओर फैलाया गया, उसका प्रचार-प्रसार हुआ, उसकी यादगार आज नवरात्रों में कन्याओं को पूजना, उनको भोग खिलाना, उनके पैर आदि धोना है। समाज उन्हीं धारणाओं को याद रखता है जिनको कभी न कभी हमने किया है। जितनी भी अर्चन, पूजन और गायन की विधियां है वो परमात्मा द्वारा किये गये कार्यों की यादगार ही है। सिर्फ बिना अर्थ त्योहार मनाना उस त्योहार के साथ पूर्णत: न्याय न होना है। नवरात्रि का सम्पूर्ण अर्थ इस लेख में उल्लिखित है इसलिए इसे अवश्य पढ़ें। तभी सच्चा अर्थ आपको समझ में आयेगा कि नवरात्रि असल में है क्या!
लोग समझते हैं कि राजा सगर के हज़ारों बच्चे श्राप से मूर्छित हो गये थे और उन्हें फिर से जीवित करने के लिए तथा श्राप-मुक्त करने के लिए भगीरथ ने तपस्या की थी और तब शिवजी की कृपा से आकाश(स्वर्ग) से गंगा उतरी थी जिसके जल से सगर के बच्चे फिर जीवन को प्राप्त करके उठ खड़े हुए थे और यह भारत भूमि भी पवित्र हो गई थी। परन्तु, विवेक द्वारा स्पष्ट है कि किसी भी नदी के जल द्वारा न तो पूर्व काल में मूर्छित अथवा मरे हुए व्यक्ति जीवित हो सकते हैं, न ही उस जल से उनके पाप धुल सकते हैं। पुनश्च(इसके बाद), स्वर्ग से गंगा का इस धरा पर आना, शंकरजी का उसे अपनी जटाओं में धारण करना आदि-आदि बातें भी विवेक के विपरीत हैं। तब प्रश्न उठता है कि वास्तविकता क्या है? परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा के मानवीय तन में प्रवेश करके(अवतरित होकर) ज्ञान गंगा प्रवाहित करते हैं। जैसे ज्ञान के अनेक नाम हैं, वैसे ही प्रजापिता ब्रह्मा के भी अनेक नाम हैं, जिनमें से एक नाम क्रभगीरथञ्ज का अर्थ है वह रथ जो यश वाला अथवा भाग्यशाली है। ब्रह्मा का एक लाक्षणिक नाम क्रभगीरथञ्ज इसलिए प्रसिद्ध होता है कि उसके शरीर रुपी रथ पर भगवान् शिव सवार होते हैं। प्रसिद्ध है कि ब्रह्माजी ने बहुत योग-तपस्या की थी। अत: आजकल क्रभगीरथञ्ज शब्द बहुत परिश्रम करने वाले अथवा तपस्या करने वाले अथवा असम्भव कार्य को सम्भव करने वाले व्यक्ति का भी वाचक है। तो आकाश से भी पार जो परमधाम अथवा परलोक है, वहाँ से ज्ञान सागर परमात्मा शिव ने अवतरित होकर प्रजापिता ब्रह्मा के मुख द्वारा जो ज्ञान गंगा प्रवाहित की, उससे ही पतित आत्माएं पावन हुई और स्वर्ग के सुखों के लिए अधिकारी हुई। इसलिए गंगा भी क्रपतित-पावनीञ्ज के नाम से प्रसिद्ध है और परमपिता परमात्मा भी क्रपतित-पावनञ्ज के नाम से प्रसिद्ध हैं परन्तु पतितों को पावन करने वाली गंगा तो ज्ञान-गंगा है, न कि जल-गंगा।
प्रजापिता ब्रह्मा की जो मानसी पुत्री (ब्रह्माकुमारी) सरस्वती थीं जिन्हों का क्रज्ञान की देवीञ्ज के रुप में गायन-पूजन भी चला आता है, उन्होंने तथा उनकी तरह ब्रह्मा की अन्यान्य(अनेकानेेक) मानसी कन्याओं ने इस ज्ञानामृत को अपने बुद्धि रुपी कलश(कुम्भ) में धारण करके दूसरों को भी इस द्वारा पावन किया। अत: वे भी पतित-पावनी सरस्वती, गंगा इत्यादि नामों से प्रसिद्ध हुई। उन्होंने भारत के अनेकानेक स्थानों पर जाकर ज्ञान-धारा से मनुष्यों को पवित्र किया और हीरे तुल्य बनाया। उन्हीं की पुण्य-स्मृति में भारत की इन नदियों के नाम भी गंगा, यमुना, सरस्वती इत्यादि हैं और चूंकि संगम काल ही में चैतन्य गंगा, सरस्वती इत्यादि कन्याओं-माताओं का परस्पर तथा परमपिता परमात्मा शिव से संगम(मिलन) हुआ था, इसलिए प्रयाग में इन नदियों के संगम-स्थान का भी आज भक्त लोग विशेष महत्त्व मानते हैं।
उपर्युक्त से स्पष्ट है कि जल की ये जो गंगा, यमुना आदि नदियाँ हैं, ये भले ही शरीर को तो पवित्र करती हैं और पर्वतों से अनेक प्रकार की वनस्पतियों, औषधियों, धातु-सत्त्वों इत्यादि को साथ बहा लाने के कारण इनके जल में कुछ शारीरिक रोग खत्म करने की शक्ति भी हो सकती है परन्तु आत्मा के जो काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि रोग हैं अथवा इन विकारों के कारण आत्मा की जो अपवित्रता है, उनको परमपिता परमात्मा शिव ही के ज्ञान द्वारा हरा जा सकता है; इसीलिए ही परमात्मा शिव को क्रहराञ्ज अथवा पतित-पावन कहा जाता है और ज्ञान ही के बारे में गीता में कहा गया है कि— क्रक्रहे वत्स, संसार में पापों को हरने के लिए ज्ञान-जैसी अन्य कोई वस्तु नहीं है।ञ्जञ्ज पुनश्च, जिन सरस्वती, गंगा इत्यादि माताओं-कन्याओं द्वारा उस ज्ञान का प्रचार और प्रसार हुआ, जिनका आज तक भी नवरात्रों में बाल-वृद्ध सभी कुमारिकाओं के रुप में आमन्त्रित करके नमस्कार करते हैं, पतित-पावनी तो वे चैतन्य गंगायें ही थी।
अत: इन रहस्यों को समझकर आज हरेक मनुष्य को निर्णय करना चाहिए कि — क्रक्रपतित-पावन परमात्मा शिव ही हैं या यह जल-गंगा? क्या चैतन्य ज्ञान-गंगायें सरस्वती इत्यादि ही पतित पावनी थीं या यह जल-गंगायें पतित पावनी हैं? क्या कलियुग और सतयुग के आदि का संगम समय, कि परमात्मा का अवतरण होने के कारण सरस्वती आदि का परमात्मा के साथ मिलन(संगम) होता है, शुभकारी है या जल की नदियों का संगम अमर पद को देने वाला हैं? पुनश्च, क्या अमृत कोई पेय तत्व है या ज्ञान ही पावनकारी और अमरपद के योग्य बनाने वाला होने के कारण क्रअमृतञ्ज हैं?ञ्जञ्ज इन बातों का निर्णय करके मनुष्य को वास्तविक कुम्भ मनाना चाहिए क्योंकि अब संगम समय परमपिता परमात्मा शिव अवतरित होकर पुन: ज्ञानामृत का कलश दे रहे हैं और प्रजापिता ब्रह्मा(भगीरथ) के पुरुषार्थ से चैतन्य गंगायें(ब्रह्मा की मानसी पुत्रियाँ) भी जन-जन को ज्ञान द्वारा पावन कर रही हैं।