मुख पृष्ठब्र.कु. शिवानीअब वक्त है नज़रिया बदलने का

अब वक्त है नज़रिया बदलने का

अनिश्चितता, इसके लिए परमात्मा बहुत सुंदर शब्द देते हैं और वो है क्रअचानकञ्ज। अचानक अर्थात् कभी भी, कुछ भी हो सकता है। निश्चितता क्या होती है? क्रहां, पता है, ऐसा होगा, फिर इस एज में ऐसा होगा। फिर इस मौसम में ऐसा होगा।ञ्ज अर्थात् निश्चितता वह है, जब हमें पता हो कि ऐसा होगा। लेकिन जब हम तैयार न हों, और अचानक कुछ हो उसको कहेंगे अनिश्चितता। अभी एक मिनट के लिए चेक करें कि जीवन में कौन-कौन सी बातें अचानक हो सकती हैं। अचानक करियर में या बिजनेस में जो सोचा नहीं था, वैसा जम्प मिल जाना। जिनको हम जानते ही नहीं थे, उनका हमारे जीवन में आकर इतनी बड़ी मदद कर जाना। अचानक धोखा मिलना। अचानक मतलब सिर्फ नकारात्मक चीज़ें ही नहीं होती हैं। दो तरह की दुनिया है एक इनर वल्र्ड और दूसरा आउटर वल्र्ड। परिस्थिति, लोग, शारीरिक स्वास्थ्य… ये सब आउटर वल्र्ड है। हमें देखना है इनर वल्र्ड। आंतरिक दुनिया में क्या आएगा- थॉट्स, फीलिंग्स, इंटेंशन, एक है भाव और दूसरा है भावना। भावना माने फीलिंग, इंटेंशन मतलब भाव क्या था। हम कहते हैं ना आपका भाव क्या था इसके पीछे। इंटेंशन भी आंतरिक जगत की चीज़ है। सामने वाले को हमारी इंटेंशन नहीं पता लगती। लेकिन हमें चेक करना है कि मेरा भाव क्या है।
भाव, भावना, संकल्प, मेमोरिज(यादें)। मन में क्या-क्या पकड़कर रखा है- कुछ अच्छी बातें, कुछ कड़वी बातें। पुरानी तो सबकुछ है। पिछला मिनट भी पुराना हो चुका है। पकड़ी तो सारी पुरानी बातें ही हैं। लेकिन उन पुरानी बातों की क्वालिटी कैसी है। जो बहुत अच्छी पुरानी बातें होती हैं, उनको पकड़कर भी हम उदास होते हैं। ये दो दुनिया को अच्छी तरह से देख लो। बाहर की दुनिया के बारे में हमें सबकुछ पता है। आंतरिक जगत के बारे में कम पता है। क्योंकि हम रोज रूककर उसे चेक नहीं करते। इसीलिए हम मेडिटेशन सीखते हैं। मेडिटेशन से हमारा ध्यान आंतरिक दुनिया की ओर जाता है। अब समीकरण सेट कर लीजिए। बाहर की दुनिया से आंतरिक दुनिया बनती है या आंतरिक दुनिया से बाहर की दुनिया। खुद से पूछें मेरे थॉट्स, फीलिंग्स से मेरी परिस्थितियां बनती हैं, मेरा भाग्य बनता है या मेरी परिस्थिति,भाग्य से थॉट्स बनते हैं। मेरे इनर वल्र्ड से आउटर वल्र्ड बनता है या मेरे आउटर वल्र्ड से मेरा इनर वल्र्ड बनता है?
इन दोनों में से कौन-सी दुनिया हमारे नियंत्रण में है? हमारे हाथ-पांव किसके कंट्रोल में चलते हैं। आँख, मुंह, कान कंट्रोल में होना अर्थात् जो देखना है वही देखना है, जो नहीं देखना है सो नहीं देखना है। देखना अर्थात् जो हमारे फोन पर आ रहा है, टीवी पर आ रहा है, हमारे इंटरनेट पर आ रहा है। देखना अर्थात् किसी से मिलते हैं तो उसके अंदर क्या देखा। किसी परिस्थिति में भी क्या देखा। हर सीन में हम कुछ देख रहे हैं। जो हम देख रहे हैं वो हमारे मन में छपता जाता है। इसलिए आँखों पर संयम ज़रूरी है। अगर किसी के अंदर की कमज़ोरी देखी तो मन-चित्त पर कमज़ोरी छप जायेगी। अगर विशेषता देखी तो विशेषता ही छपेगी। आज से हम अपनी भाषा बदलेंगे। अपनी भाषा को कहेंगे मेरा अपनी कर्मेन्द्रियों पर पूरा नियंत्रण है। क्योंकि मैं आत्मा का राजा हूँ। अभी तक ये मेरे अनुसार नहीं चल रहे थे, क्योंकि मैं भूल गया था कि मैं आत्मा राजा हूँ। अभी तक हम क्या कह रहे थे- उन्होंने किया ही ऐसा तो मुझे वही दिखाई देगा ना। मतलब आउटर वल्र्ड इनर वल्र्ड को बना रहा है। पर अब नज़रिया बदलिए।

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