प्राचीन काल में ही शिक्षा प्रणाली में जीवन की शुरूआत के 25 वर्ष ब्रह्मचर्य श्रम की स्थिति में ही विद्या अध्ययन करते थे, क्योंकि पवित्रता बुद्धि को एकाग्र रखती है।
हम सभी ने जीवन का अध्यात्म मार्ग पसंद किया है बहुत बड़ी बात है। ज़रूर वो संस्कार आत्मा में हैं। आजकल हम देखते हैं कि छोटे बच्चे कथा करते हैं, गाड़ी चलाते हैं, कोई म्यूजि़क बजाते हैं, मास्टर होते हैं। तो कहतेे हैं कि पूर्व जन्म से ये कला लेकर आये हैं। आप सभी ने भी अपने युवा काल में, किशोर आयु में, बचपन में ही ज्ञान को पाकर जीवन में धारण किया। हमें सदा अपने आप में लक्ष्य रखना है कि जो भी मार्ग चुनें उसमें विशेष बनना है, साधारण नहीं। पढऩा है तो फस्र्टक्लास पढऩा है। जो भी हुनर सीखना है वो फस्र्टक्लास सीखना है। बेशक जो च्वाइस आप करते हैं वो अच्छी तरह से आदि-मध्य-अन्त सोच-समझकर करें। थोड़ा टाइम भले लीजिए लेकिन अच्छी तरह विस्तार से बाबा के ज्ञान को, योग को, धारणाओं को, सेवा को, दिनचर्या, नियम, मर्यादा, संगठन, ये सारी चीज़ें अच्छी तरह समझिये। एक बार फाइनल कर लेने के बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए। घड़ी-घड़ी निर्णय बदलने में, लक्ष्य बदलते रहने में काफी टाइम वेस्ट होता है। घड़ी-घड़ी मन बदले नहीं। बाबा का ज्ञान और योग वास्तव में जीवन जीने की कला है। जीवन पद्धति है, लाइफ स्टाइल है। इसमें हमें अपनी पूरी शक्ति लगा देनी चाहिए। न अपने आप को धोखे में रखना है और न ही माँ-बाप को। करेंगे, चलेंगे, देखेंगे, क्योंकि अन्दर खुद का निर्णय नहीं है तो हम टाइम पास करते रहते हैं। बाबा के ज्ञान में कोई अंधश्रद्धा नहीं है, बाबा का ज्ञान सत्य है, विवेकसंगत है। आप खुद अच्छी रीति अध्ययन करें, अभ्यास करें फिर स्वीकारें। फिर पूरा फोकस हो जाइए। फिर ऐसे नहीं कि उसका भी स्वाद ले लें, ये भी रस ले लें, ये भी फायदा ले लें, नहीं। भल आप सेवा करेंगे पर आपका अपना कोई स्वरूप नहीं बनेगा।
बाबा के ज्ञान में शुरू से आप देखिए निश्चयबुद्धि बहुत ज़रूरी है। निश्चयबुद्धि बनने के बाद ही पुरुषार्थ तीव्र बनता है। नहीं तो व्यक्ति सालों आयेगा, जायेगा पर जब तक निश्चय नहीं भगवान पढ़ाते हैं ब्रह्मा मुख से तब तक भगवान की आज्ञा पर चलने की ताकत नहीं आती, भगवान पर कुर्बान नहीं हो सकते। अगर कुछ बनना है तो बाबा का राइट हैंड बनो, माना स्पेशल बनना है। राइट हैंड किसको कहते हैं जो विश्वास के पात्र होते हैं, जि़म्मेवार, एवररेडी, राइटियस जीवन। कोई करे न करे ये मेरा राइट हैंड है ये करेगा। कारण नहीं, बहाने नहीं, कोई करे न करे राइट हैंड माना मैं करूँगा,आप निश्चिंत रहिए। अगर ऐसा बनना है तो बाबा माना बाबा, बस एक पर फोकस। ज्ञान योग माना ज्ञान योग। और इच्छायें नहीं, और शौ$क नहीं, और रस नहीं। बाबा में ही सबकुछ। क्योंकि जितनी और हॉबिज़ हैं उतना आपका व्यक्तित्व विभाजित होता है। इसलिए क्यों प्राचीन काल में ही शिक्षा प्रणाली में जीवन की शुरूआत के 25 वर्ष ब्रह्मचर्य श्रम की स्थिति में ही विद्या अध्ययन करते थे, क्योंकि पवित्रता बुद्धि को एकाग्र रखती है। बात वो नहीं है कि आप घर में रहते हैं या सेंटर में, बात ये है कि आपका पक्का निर्णय हो कि जीना कैसे है। घर में रहें तो भी हम पक्के ब्रह्माकुमार-कुमारी हो। हमारी दिनचर्या वही हो। लाइफ की डिसिप्लिन तो दृढ़ होनी चाहिए ना! घर में रहते भी आप पक्के योगी दिखने चाहिए,सच्चे वैरागी नज़र आने चाहिए। अगर वो नहीं है तो फिर क्या हम ज्ञान में चलते हैं! राइट हैंड माना राइटियस जीवन। जीवन हमारा सही हो। तो अपने आपको चेंज करना है। खुद के पीछे मेहनत करो। तकलीफ तो हमें भी हुई थी शुरू में। 16 साल के बाबा के घर में आये। 3:30 बजे उठने का किसको अभ्यास होगा! तो देखो सच में ज्ञान समझा है, योगी जीवन जीना है, आध्यात्मिक बनना है, लौकिक सांसारिक जीवन नहीं जीना है तो पहला परिवर्तन दिनचर्या में है, क्योंकि दिनचर्या बदलने से योगी जीवन का एहसास होगा।
जीवन क्या है आज और कल। जीवन श्रेष्ठ बनाना है, जीवन सफल करना है तो रोज सफल करना है। तो लगेगा कि हाँ ये ज्ञान में चलते हैं। जिस बात के हैबिचुअल(आदती) हो जाते हैं उसे बदलने में तकलीफ होगी। पर महत्त्व समझेंगे, दृढ़ता रखेंगे और लगे रहेंगे तो परिवर्तन होगा। फिर इज़ी हो जाता है, मुश्किल नहीं लगता। अगर हमें क्वालिटी वाली पक्की ब्रह्माकुमारी लाइफ जीनी है, तो हमें ये करना होगा। अपनी दिनचर्या पर ध्यान देना है। क्योंकि लक्ष्य अगर पक्का है तो परिवर्तन निश्चित है।
दूसरा आहार-विहार में परिवर्तन। क्योंकि ये सारी चीज़ें मन पर परिवर्तन करने वाली हैं। आपका खान पान शुद्ध बनना चाहिए। फिर किसी के भी संग में यहाँ वहाँ कहाँ भी खाते रहो ऐसे तो आपकी एकाग्रता नहीं बनेगी। क्योंकि जो स्वाद को नहीं जीत सकता वो विकार को क्या जीतेंगे! इसलिए आहार शुद्ध खुद सीखो बनाना नहीं आता है तो। क्योंकि अन्न का मन पर असर है। योगी जीवन जीना है तो बाबा ने शुद्ध अन्न खाने के लिए कहा है। फिर ऐसे नहीं हम मशीन मेड ढूंढते रहें। हमें योग मेड खाना है या मशीन मेड? विहार चेंज- विहार माना कहाँ-कहाँ आप घूमते हो। कैसे कैसे स्थानों पर जाते हो वहाँ वायुमण्डल का भी असर होता है। जानते हैं ना दुनिया के लोग कहाँ-कहाँ घूमते हैं। अगर लक्ष्य है भगवान के ज्ञान मे चलना है और फस्र्टक्लास चलना है क्वालिटी बीके जीवन जीनी है तो गंदे बॉडी कॉन्शियस बनाने वाले स्थानों में नहीं जाना चाहिए। थियेअटरों में, क्लबों में, पार्टियों में, आजकल तो क्या क्या व्यसनों में, क्या क्या होटलों में करते हैं। हमें सावधान रहना चाहिए। फ्रैंडशिप का मतलब ये नहीं है कि वो जहाँ लेकर जाये आप वहाँ चले जाओ। वो फ्रैंडशिप वो है जिसमें कल्याण हो मेरा भी और दूसरे का भी।
चौथा पहरवाइश। कैसे हम ड्रेसअप होते हैं। बाबा ने सदा हम बच्चों को सिखाया है कि नाति महंगा, नाति सस्ता बीच का जीवन हो। ये बाबा की व्याख्या है। बहुत हल्का नहीं बहुत महंगा नहीं। बीच का। ज्ञान मार्ग में चलना योगी मार्ग में चलना, पहला ही लक्ष्य आत्मभिमानी बनना है। देह भान भूलना है तो बॉडी कॉन्शियस बनाने वाले ड्रेस नहीं, बॉडी कॉन्शियस बनाने वाले मेकअप नहीं। ऐसे बाल नहीं जो दस बार ठीक करने पड़ें। और दस बार बुद्धि उसमें जाये। ये योगी जीवन की डिसीप्लीन है बहनों। समर्पित होना है या नहीं होना है कोई बात नहीं अगर ज्ञान योग में चलना है तो लाइफ स्टाइल तो यही है न मैं बॉडी कॉन्शियस बनूँ और न दूसरा मुझे देख देह अभिमान में आये। क्योंकि खुद को जो ड्रेसअप करते हैं वो तो आइने में 2 बार, 6 बार जितनी बार देखते हैं उतनी बार ही दिखाई देता है। बाकी तो किसको दिखाने के लिए हमने किया है। लगना चाहिए ये आध्यात्मिक लोग हैं। पढ़ी है ना जीवन कहानी बाबा की। कितना कुछ हुआ, पिकेटिंग हुई, धरना हुआ समाज का। इतने छोटे-छोटे जो आज हमारी दादियां हैं वो भी विचलित नहीं हुए। हम लोग भी अपने 14 वर्ष की आयु में ज्ञान में चले। और वो ही आप सबका चल रहा है। इसलिए बाबा ने हम ज्ञानी आत्माओं के लिए योगी आत्माओं के लिए सादा, सरल, सात्विक जीवन और व्यवहार कहा है। सिम्पल लीविंग, हाई थिंकिंग गांधी जी कहते थे बाबा ने हाई थिंकिंग बना दिया तो पै्रक्टिकल लिविंग सिम्पल होना ही चाहिए। बाबा कई बार कहते थे कि संगमयुग में कन्या बनना भाग्य की निशानी है और उसमें भी काली कन्या बनना सौभाग्य की निशानी है। क्योंकि किसी की बुद्धि देह में नहीं जायेगी। इसलिए काले हैं तो क्या हुआ दिल वाले हैं। दिल सच्ची बाबा से है तो कभी भी अफसोस नहीं करो, सुन्दर हो तो सावधान रहो, शक्तिशाली बनो। कोई हमारे से कमज़ोर, ढ़ीला व्यवहार क्यों करे। क्योंकि ये ड्रेस सेफ्टी है। अगर आप घर में हैं और ड्रेस में हैं तो आपकी आध्यात्मिकता और ज्य़ादा शक्तिशाली चाहिए। समझे बात को। हमारा तो ड्रेस भी एक सेफ्टी है। पर वो ड्रेस आप नहीं पहनते सच में ज्ञान में चलना चाहते हैं और घर में रहना है तो और ही फुल ब्रह्माकुमारी डे्रस ही पहनना चाहिए। क्योंकि हम तो बाबा के घर में सेेफ्टी के किले में बैठे हैं। आप दुनिया में बैठे हैं। जब तक आप घर में हैं तो आप दुनिया में बैठे हैं। आपको और ही यही डे्रस पहनना चाहिए। क्योंकि लक्ष्य तो पक् का है ना। ज्ञान में चलने का लक्ष्य तो पक्का है ना तो मर्यादापूर्ण वस्त्र चाहिए। सेंटर में रहने से बहाना निकालते हैं ना कि स्वभाव-संस्कार से डरते हैं हम ठीक है घर में रहते भी सेवा करते हो पर लक्ष्य तो पक् का है ना इस ज्ञान, नियम, मर्यादा में चलने का। तो फुल मर्यादापूर्ण डे्रस पहनों। ये सेफ्टी है। निशानी है आध्यात्मिकता की।
संग भी हम ज्ञानी आत्माओं का कैसा होना चाहिए। जो हमें और तीव्र पुरुषार्थी बनाये ऐसा। जो हमें और पक्का ज्ञानी बनाये हमें लक्ष्य से कमज़ोर बनाये। अपने आप में फंसाये। ऐसा संग नहीं करना है। इसलिए ज्ञान इतना अच्छा स्टडी करो कि परख सकें हमारे सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति की दृष्टि-वृत्ति क्या है, हम परख सकें। इसलिए दादियां कहती है कि समर्पण होने की बात नहीं है योग्य बनने की बात है। समर्पण हो गये पर योग्य नहीं हैं हम आदर्श नहीं है तो फायदा क्या। तो समर्पण की बात नहीं है। पर लायक तो बनना है ना ज्ञान में चलने वाला देश में रहे या विदेश में, घर में रहे, सेंटर पर रहे या मधुबन में रहे डिसीप्लीन तो डिसीप्लीन है ना। दिनचर्या की डिसीप्लीन, ड्रेस की, आहार की, विहार की, संग की पहरवाइश की। और सारा दिन आप कौन सी बातें पढ़ते हो। देखते हो, किताबों से या इंटरनेट से। पढऩे का तरीका बदला है ना बस। बाकी सुनके पढ़के जो इनपुट आप मन को दे रहे हैं वो क्वालिटी होना चाहिए। हमारे ज़माने में हम किताबें पढ़ते थे। आप मोबाइल, कम्प्यूटर, इंटरनेट में। पर च्वाइस तो क्वालिटी चाहिए ना कि आप क्या चीज़ें देख रहे हो, क्या पढ़ रहे हो, क्या सुन रहे हो। सच में ज्ञानी आत्मा है तो बॉडी कॉन्शियस बनाने वाली गंदी बातें हम कैसे पढ़ देख सुन सकते हैं। क्वालिटी इनपुट करो। हम अपने जीवन से ये फैंसला नहीं कर पाते हैं इसलिए फिर कहते हैं कि हमको नहीं रहना सेंटर पर। सेंटर पर ये है वो है फलाना है।फिर हम कोई को भी, किसी को भी कारण बना सकते हैं। पर बात हमारी है कि हम इतना जिगरी बाबा से जुड़ते नहीं है इसलिए शक्तिशाली निर्णय आता नहीं है। वरना आत्मा स्वयं शक्ति है। हम हैं ही शक्ति स्वरूप क्यों हमारे में दृढ़ता नहीं आती है, क्योंकि हमारा डिसीजन ही नहीं है। हमने सत्य को परखा नहीं है। जो परखेगा वो तो फिदा हो जायेगा। वो जहाँ होगा बाबा की श्रीमत अनुसार होगा। आज हैं ना कई भाई-बहनें, गृहस्थी मातायें, हैं आदर्श। घर में रहते भी इतने आदर्श हैं। प्रैक्टिकल में। कुमारियां भी ऐसी ही होनी चाहिए चूंकि बाबा हम कुमारियों से अपना कार्य कराना चाहते हैं। इसलिए यज्ञ में कुमारियों की आवश्यकता है। इसलिए भाई-बहनें, दादियां-दीदीयां, सब हमें बहुत प्यार और पालना से खींचते हैं। अग्र करते हैं। तो लगता है कई बार हम और जितना ज्य़ादा हमें प्यार पालना मिलता है उतना हमारे में ज्य़ादा उमंग उत्साह भरा जाता है। उतना मैं समझती हूँ कि जिम्मेदार नहीं बन रहे हैं। जैसे दुनिया में जिस चीज़ की ज्य़ादा डिमांड हो तो वो बहुत महंगी होती जाती है, तो हम भी महंगे हो रहे हैं। क्योंकि हमारी डिमांड ज्य़ादा है बाबा को। पर इससे हमें फायदा नहीं है। हमें तो ये ही जीवन जीना है तो अपना समय, सकंल्प भी तो बाबा के कार्य में लगाना है। और बाबा के कार्य में नहीं लगायेंगे तो कहीं तो लगेगा ही। और ऐसा वैसा फालतू लगे तो इससे तो बैटर है ना कि अगर यही चूज़ किया है और क्वालिटी बनना है तो जैसा बाबा चाहते हैं ऐसा ही सेवा पुरुषार्थ हम क्यों नहीं करके दिखाएं। हमें कुदरती बहुत सात्विक मन मिला हुआ है। स्त्री तन में जो आत्मायें हैं वो सात्विक मन है। चंचलता कम होती है। कुदरती हमें ये मिला है। हम अच्छे क्वालिटी योगी बन सकते हैं। क्वालिटी योगी बनके दिखाइए। समर्पित नहीं होना है ना कोई बात नहीं। लेकिन क्वालिटी योगी हम बनकर दिखाएं। बाबा कहते हैं ना कि तुम्हारा बाबा की याद में रहना भी योगदान करना है। घर वाले कहें कि हमारे घर में ये योगी आत्मा है। मिला है सर्टिफिकेट। लगे हमारे घर में कोई यज्ञ की आत्मा आई हुई है। ये योगी आत्मायें इनकी पवित्रता और तपस से हम भी पार हो जायेंगे ऐसा वो महसूस करें। और अगर वो चीज़ नहीं है तो भल आज के समय अनुसार कोई हमें कुछ कहेगा नहीं पर अन्दर समझते हैं कि ये ऐसे ही टाइम पास कर रहे हैं। वो भी समझते हैं बोलते नहीं है इतना ही है।
मैं चाहती हूँ कि हम कुमारियां सेंसीबुल बनें। हम हर बात को समझें। समय को, बाबा को, लाइफ, सत्य को, धारणाओं को समझे इतना कि हम मजबूत रहें उसमें। और ऐसा बनने के बाद कोई प्रॉब्लम ही नहीं है। फिर कोई तकलीफ ही नहीं है, कोई क्या कर रहा है, कोई कैसा व्यवहार कर रहा है, कोई ईष्र्या कर रहा है, द्वेष कर रहा है कोई चीज़ें तकलीफ देती ही नहीं। क्योंकि जो पाना था वो तो बाबा के द्वारा मिल गया। और अनुभव कर रहे हैं सच्चे जीवन में। सच्चे बीके बनकर अपनी नींव मजबूत बनाएं। अपने आप ताकत आती है फिर सेवा में, संगठन में आने वाली कोई भी परीक्षा भारी नहीं लगती।