स्वर्णिम भारत की नव प्रभात

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स्वर्णिम भारत की नव प्रभात, लेकर आए नव वर्ष महान।
मिटे तिमिर दैदीप्यमान, शुभ भावों से महके जहान।।

स्निग्ध भाव निर्मल निश्छल, स्पंदन मन के द्वारा-द्वार।
शुचि शीतल मन्द समीर बहे, नव मंगल हर दिन हो त्योहार।।
खुशियों की बगिया घर-घर में, चमके अधरों पर मुस्कान।
स्वर्णिम भारत की नव प्रभात, लेकर आए नव वर्ष महान।।

दमके हर भाल जहाँ नित ही, सुविचारों का मृदुल प्रवाह।
सुर सरिता निज आनंदमई, हर आंगन सुख सिंचन अथाह।।
रूहों का रूहों से संवाद, दिव्य गुणों की हों सब शान।
स्वर्णिम भारत की नव प्रभात, लेकर आए नव वर्ष महान।।

संस्कारों में देवत्व समाया, मानवता का उच्च विहान।
उदय जहाँ से सूर्य संस्कृति का, नव युग का पहने परिधान।।
जहाँ क्षितिज से अम्बर तक, गूंजे मधुर यही बस गान।
स्वर्णिम भारत की नव प्रभात, लेकर आए नव वर्ष महान।।

मधुमय बसन्त यूं चिर अनंत, सतरंगी सावन दिग दिगंत।
सुरभित आलौकिक आभा, माधुर्य लिए जैसे मकरंद।।
संस्मरणों में एक नई चेतना, सदा रूहानी भरे उड़ान।
स्वर्णिम भारत की नव प्रभात, लेकर आए नव वर्ष महान।।

सतयुगी नजारों के अप्रतिम, हों दृश्य समाए नैनों में।
आदर्शों की दीप शिखा, हो चैनों अमन के सायों में।।
सम्बन्धों में निस्वार्थ भाव, आत्मीयता का सर्वोच्च भान।
स्वर्णिम भारत की नव प्रभात, लेकर आए नव वर्ष महान।।

उज्ज्वल चरित्र कंचन काया, परमात्म प्यार का ही साया।
तृप्ति और संतुष्टि सघन, अतुलित जीवन में सरमाया।।
संचार नवल ऊर्जा का पल पल, लिखते जाएं श्रेष्ठ विधान।
स्वर्णिम भारत की नव प्रभात, लेकर आए नव वर्ष महान।।
बीके मदन मोहनओआरसी, गुरुग्राम

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