रूहानी सोशल वर्कर

0
233

समाज को आकार देने के लिए सरकार बनाई जाती है, और सरकार स्थूल रूप से अलग-अलग माध्यमों से हर एक चीज़ को आकार देती है। जिसमें अलग-अलग तरह के समाज के जो पहलू हैं वो एक तरह से आप कह सकते हैं कि उनको बल मिलता है। सारे पहलूओं को एक साथ पिरोने के लिए इतने सारे संस्थायें एक साथ जुड़कर काम करती है। जिससे उन पहलुओं को चार चांद लगाया जाता है। उन पहलुओं पर काम किया जाता है, लेकिन जब व्यक्ति को रोटी भी चाहिए, कपड़ा भी चाहिए, मकान भी चाहिए, दुकान भी चाहिए। बहुत सारी ऐसी चीज़ों की जब ज़रूरतें पड़ती हैं तो उसकी खानापूर्ति के लिए वो काम करता है। मतलब जो कार्य नि:स्वार्थ भाव से समाज के हित के लिए होगा उसके अन्दर कमाने का भाव पैदा होता है वैसे ही उसके अन्दर विकृति पैदा होनी शुरू हो जाती है।
समाज में उन्नति के लिए सब लोग कहते हैं कि अगर, घोड़ा घास से दोस्ती कर लेगा तो खायेगा क्या! लेकिन इतना उल्टा ब्यान है इस ब्यान को थोड़ा सीधा देखो कि घोड़े की घास से दोस्ती है तो अच्छे से खायेगा ना! बल्कि वो उस बात का वायब्रेशन कितना सुन्दर होगा। लेकिन अगर उसे पता चल जाये कि ये व्यक्ति मेरे पास सिर्फ और सिर्फ लोभवश, मोह वश जुड़ा हुआ है।
लोभ वश खासकर जुड़ा हुआ है तो उस व्यक्ति के वो व्यक्ति कितने दिन तक साथ में रह पायेगा! तो सारे स्लोगन लोगों ने अलग-अलग तरीके से यूज़ किये हैं। मतलब उसमें भी स्वार्थ छिपा हुआ है। काम के पीछे भी और काम न करने के पीछे भी। इसका जो सबसे प्रबल कारण है वो ये कि शायद आज मनुष्य इस अंधी दौड़ में उन पहलुओं को दरकिनार कर बैठा है जो हमारे लिए ज़रूरी है। आपको पता हो कि जो पहलू सबसे ज्य़ादा मायने रखता है हमारे लिए वो है आध्यात्मिक पहलू। जिसमें व्यक्ति शारीरिक रूप से कार्य तो कर रहा है, लेकिन जो मानसिक रूप से विकसित न हो, मानसिक रूप से स्वस्थ न हो तो उसके लिए आध्यात्मिकता बहुत ज़रूरी है। तो कहा जाता है कि समाज में जो सामाजिक कार्यकर्ता हैं, जो समाज को कुछ देने के लिए अपना कार्य कर रहे हैं उन लोगों के अन्दर किसी भी तरह का भेदभाव, किसी भी तरह का तनाव नहीं हो सकता। अगर तनाव है, भेदभाव है तो जिस कार्य के वो निमित्त हैं उसके अन्दर भी तरंगों का प्रभाव होता है, वायब्रेशन सही नहीं होते। सबकुछ वैसे काम नहीं करेगा जैसे वो करना चाहता है। तो अगर कोई ट्रस्टी है, अगर कोई समाज को कुछ देना चाहता है, समाज के साथ कार्य करना चाहता है, समाज के साथ जुडऩा चाहता है तो उसको किसी भी तरह का तनाव नहीं हो सकता। अगर तनाव है तो ज़रूर नाम-मान-शान और सम्मान का भाव है। तो जब हम शांत मन से, सुखी मन से, पवित्रता के भाव से, भाव शब्द को आपको यहाँ पकडऩा है। इस भाव से जब हम कार्य करते हैं तो उसमें रूहानियत भर जाती है। और उस रूहानियत की खुशबू से हरेक आत्मा बड़ी तृप्त होती है। जैसे आपने मार्केट में कोई प्रोडक्ट बनाया लेकिन बड़े ही शांत भाव से बनाया कि ये जहाँ भी जायेगा तो इसे लोग बड़ी शांति से यूज़ करेंगे। इससे सुख लेंगे मतलब मैं सुखदाई भाव से कोई चीज़ बना रहा हूँ तो उसमें सुख, शांति, प्रेम, पवित्रता भी जा रहा है। और जहाँ-जहाँ उस प्रोडक्ट को लोग यूज़ करेंगे जिस कार्य के आप निमित्त होंगे, अगर कोई मकान बना रहा है कुछ भी ऐसा काम कर रहे हैं तो उसमें भी वो वाले वायब्रेशन पड़ जायेंगे। और उसमें जो रहेगा उसमें वो रूहानियत फील करेगा। इसलिए हम सभी रूहानी सोशल वर्कर क्यों न बनें। सोशल वर्क भी हो जायेगा, रूहानियत भी उसमें शामिल हो जायेगी। दोनों के सम्मेलन से समाज कितना स्वस्थ और सुन्दर होगा। इस स्वस्थ और सुन्दर समाज की परिकल्पना परमात्मा हमसे कर रहे हैं और कह रहे हैं कि आप ही इसको साकार कर सकते हो। तो साकार करने के लिए चाहे वो दुनिया की सामाजिक संस्थायें हों या फिर कोई भी ऐसी गवर्नमेंट की संस्था हो। सभी ऐसी संस्थाओं को इसके साथ कार्य करने से हमको जल्दी सफलता मिलेगी और हम जो चाहते हैं वो कर भी लेंगे। समय की मांग है कि हम सभी,सभी को शक्ति दें, प्रेम दें, स्नेह दें, नि:स्वार्थ भाव से सेवा करें ये है शांति और सुखमय संसार बनाने का आधार। और यही सच्चाई से एक सोशल वर्क कहा जायेगा जिसमें हम सभी को वो दें जो उनको कभी नहीं मिलता। जैसे कहीं कोई कार्य करने जाता है किसी ऑफिस में जाता है तो वहाँ भी उसको झिड़क मिल रही है,डांट मिल रही है। प्यार नहीं मिल रहा है। एक तरह से व्यक्ति मशीन की तरह काम कर रहा है। घर आता है फिर जाता है। उसको लगता है कि शायद यही जीवन है, लेकिन अगर उसमें शांति, सुख और प्रेम नहीं है तो पैसा और रूतबा किस काम का! इसीलिए हम सबको रूहानी सोशल वर्कर बनने की ज़रूरत है। जहाँ हर चीज़ एक साथ एक दुकान पर मिल जाती है। तो आओ चलें इस दौड़ में हम शामिल हो जायें!

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें