एक नगर में चार भाई रहते थे। उनकी एक छोटी-सी बहन गुडिय़ा थी। एक बार गुडिय़ा बाहर जा रही थी तो चारों भाइयों ने कहा, देखो गुडिय़ा अकेले बाहर मत जाओ। लेकिन गुडिय़ा बोली, अब मैं बड़़ी हो गई हूँ, थोड़ी दूर तो जा ही सकती हूँ। गुडिय़ा थोड़ी दूर बाहर गई। अचानक रास्ते में उसे एक राक्षस ने पकड़ लिया और अपनी गुफा में ले जाकर कैद कर दिया।
शाम तक जब गुडिय़ा घर पर वापस नहीं आई तो चारों भाइयों को चिंता होने लगी और उनमें से तीन भाई गुडिय़ा को खोजने निकले। रास्ते में उन्हें एक महात्मा मिले। तीनों भाइयों ने उस महात्मा से पूछा, हे महात्मा! आपने हमारी बहन गुडिय़ा को देखा है? उस महात्मा ने कहा, हाँ, उसे राक्षस इस रास्ते में अपनी गुफा में ले गया है। उस रास्ते पर जाओ मगर किसी कीमत पर पीछे मुड़कर मत देखना नहीं तो पत्थर बन जाओगे।
जब उस रास्ते पर तीनों भाई जाने लगे तो अचानक पीछे से ज़ोर से आवाज़ आई रूक जाओ! रूक जाओ! और जैसे ही उन्होंने रूक कर पीछे देखा तो तीनों तुरंत पत्थर बन गए।
घर पर रूके एक भाई ने बहुत समय तक इंतजार किया। जब तीनों भाई वापस नहीं आए तब वह खुद गुडिय़ा और तीनों भाइयों की तलाश में घर से बाहर निकला। उसे भी वही साधु बाबा मिले। साधु बाबा से पूछने पर उन्होंने बताया तुम्हारे भाई व बहन इधर उस रास्ते पर गए हैं, लेकिन पीछे मुड़कर मत देखना नहीं तो तुम पत्थर बन जाओगे। महात्मा ने कहा, जब वहाँ पहुंच जाओ, गुफा के अंदर जाने पर तुमको एक पिंजड़े में एक तोता मिलेगा। उसे मार देना और मारने के बाद जो लोग पत्थर बने होंगे वह लोग सही हो जाएंगे। चौथा भाई रास्ते पर जाने लगा। राक्षस ने उसे भी पीछे दिखाने की लिए बहुत लालच दिया लेकिन उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और राक्षस की गुफा में जहाँ पर उसकी बहन को रखा था वहाँ पर गया और अपनी बहन को छुड़ाने के बाद पिंजरे में रखे तोते का सिर तोड़ दिया। जिससे राक्षस की जान चली गई और जितने लोग पत्थर बने थे सभी लोग सही हो गए।
सीख : इसलिए कहा गया है कि अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित हो तो आस-पास की घटनाएं उसे प्रभावित नहीं कर सकती हैं।