आत्म सम्मान

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एक भिखारी किसी स्टेशन पर पेंसिलों से भरा कटोरा लेकर बैठा हुआ था। एक युवा व्यवसायी उधर से गुज़रा और उसने कटोरे में 50 रूपये डाल दिये, लेकिन उसने कोई पेंसिल नहीं ली। उसके बाद वह ट्रेन में बैठ गया। डिब्बे का दरवाजा बंद होने ही वाला था कि वो युवा एकाएक ट्रेन से उतर कर भिखारी के पास लौटा और कुछ पेंसिल उठा कर बोला, ”मैं कुुछ पेंसिल लूँगा। इन पेंसिलों की कीमत है, आखिरकार तुम एक व्यापारी हो और मैं भी।” उसके बाद वह युवा तेजी से ट्रेन में चढ़ गया।
कुछ वर्षों बाद, वह व्यवसायी एक पार्टी में गया। वह भिखारी भी वहाँ मौजूद था। भिखारी ने उस व्यवसायी को देखते ही पहचान लिया, वह उसके पास जाकर बोला, ”आप शायद मुझे नहीं पहचान रहे हैं, लेकिन मैं आपको पहचानता हूँ।”
उसके बाद उसने उसके साथ घटी उस घटना का जि़क्र किया। व्यवसायी ने कहा, ”तुम्हारे याद दिलाने पर मुझे याद आ रहा है कि तुम भीख मांग रहे थे। लेकिन तुम यहां सूट और टाई में क्या कर रहे हो?”
भिखारी ने जवाब दिया, ”आपको शायद मालूम नहीं है कि आपने मेरे लिए उस दिन क्या किया। मुझ पर दया करने की बजाय मेरे साथ सम्मान के साथ पेश आये। आपने कटोरे से पेंसिल उठाकर कहा, ”इनकी कीमत है, आखिरकार तुम भी एक व्यापारी हो और मैं भी।”
आपके जाने के बाद मैंने बहुत सोचा, मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? मैं भीख क्यों मांग रहा हूँ? मैंने अपनी जि़ंदगी को संवारने के लिए कुछ अच्छा काम करने का फैसला किया। मैंने अपना थैला उठाया और घूम-घूम कर पेंसिल बेचने लगा। फिर धीरे-धीरे मेरा व्यापार बढ़ता गया, मैं कॉपी-किताब एवं अन्य चीज़ें भी बेचने लगा और आज पूरे शहर में मैं इन चीज़ों का सबसे बड़ा थोक विक्रेता हूँ। मुझे मेरा सम्मान लौटाने के लिए मैं आपका तहदिल से धन्यवाद देता हूँ क्योंकि उस घटना ने आज मेरा जीवन ही बदल दिया।
याद रखें कि आत्म सम्मान की वजह से ही हमारे अंदर प्रेरणा पैदा होती है या कहें तो हम आत्मप्रेरित होते हैं। इसलिए आवश्यक है कि हम अपने बारे में एक श्रेष्ठ राय बनाएं और आत्मसम्मान से पूर्ण जीवन जीएं।

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