मंथन करने के लिए तो बहुत खज़ाना है। इसमें मन को बिज़ी रखना है। समय की रफ्तार तेज है व आप लोगों के पुरुषार्थ की रफ्तार तेज है? अगर समय तेज चल रहा है और पुरुषार्थ ढीला है तो उसकी रिज़ल्ट क्या होगी? समय आगे निकल जायेगा और पुरुषार्थी रह जायेेंगे। समय की गाड़ी छूट जायेगी। सवार होने वाले रह जायेंगे। समय की कौन-सी तेज देखते हो? समय में बीती को बीती करने की तेज है। वही बात को समय फिर कब रिपीट करता है? तो पुरुषार्थ की जो भी कमियाँ हैं उसमें बीती को बीती समझ आगे हर सेकंड में उन्नति को पाते जाओ तो समय के समान तेज चल सकते हो। समय तो रचना है ना! रचना में यह गुण है तो रचयिता में भी होना चाहिए। ड्रामा क्रिएशन है तो क्रिएटर के बच्चे आप हो ना! तो क्रिएटर के बच्चे क्रिएशन से ढीले क्यों? इसलिए सिर्फ एक बात का ध्यान रहे कि जैसे ड्रामा में हर सेकंड अथवा जो बात बीती, जिस रूप से बीत गयी वह फिर से रिपीट नहीं होगी फिर रिपीट होगी 5000 वर्ष के बाद। वैसे ही कमज़ोरियों को बार-बार रिपीट करते हो? अगर यह कमज़ोरियां रिपीट न होने पाएं तो फिर पुरुषार्थ तेज हो जायेगा। जब कमज़ोरी समेटी जाती है तब कमज़ोरी की जगह पर शक्ति भर जाती है। अगर कमज़ोरियां रिपीट होती रहती हैं तो शक्ति नहीं भरती। इसलिए जो बीता सो बीता, कमज़ोरी की बीती हुई बातें फिर संकल्प में भी नहीं आनी चाहिए। अगर संकल्प चलते हैं तो वाणी और कर्म में आ जाते हैं।
संकल्प में खत्म कर देंगे तो वाणी और कर्म में नहीं आयेंगे। फिर मन-वाणी-कर्म तीनों शक्तिशाली हो जायेंगे। बुरी चीज़ को सदैव फौरन ही फेंका जाता है। अच्छी चीज़ को प्रयोग किया जाता है तो बुरी बातों को ऐसे फेंको जैसे बुरी चीज़ को फेंका जाता है। फिर समय पुरुषार्थ से तेज नहीं जाएगा। समय का इंतज़ार आप करेंगे तो हम तैयार बैठे हैं। समय आये तो हम जाएं। ऐसी स्थिति हो जाएगी। अगर अपनी तैयारी नहीं होती है तो फिर सोचा जाता है कि समय थोड़ा हमारे लिए रूक जायेगा।