अकेले होते भी अनेकों के साथ मिलकर अगर चलते हैं तो कोई मुश्किल नहीं है। कोई कहता है कि मुझे दया आती है यह सिर्फ कहता है, पर करता कुछ नहीं है। हमेशा रोता रहता है। किसी की बात को समझने के लिए बड़ी दिल हो क्योंकि आजकल कोई किसी की बात को समझने की कोशिश नहीं करता। मुस्कुरा तभी सकते हैं जब बड़ी बात को छोटा बनाना आता है, छोटी को बड़ा नहीं बनाओ। छोटी बात को सोच के बड़ा बनाते हैं तो जो खुद ही बड़ा बनाता है वह औरों पर क्या दया करेगा? उसका माइंड बिचारा एक मिनट भी शांत नहीं होता है। दिल में एक मिनट के लिए भी किसी के प्रति प्यार नहीं पैदा होता है। मन में शांति, दिल में प्यार हो। उसके लिए ऐसी बातों को समझके पहले अपने ऊपर रहम करो। दया, रहम, कृपा, आशीर्वाद इनके भी सूक्ष्म साकाश हैं। तो जिसके पास सुख होगा, वो देने बिगर रह नहीं सकेगा। न दु:ख देना, न लेना इसको कहा जाता है दया, रहम, कृपा की। प्रैक्टिकली अनुभव जो है वो औरों को सुख देता है। इसके लिए अपने मन को अन्दर से सच्चाई से, प्रेम से, खुशी से शक्तिशाली बनाओ, खुद को प्यार करो। कईयों को खुद को प्यार करने के लिए टाइम नहीं है, तो औरों को कैसे प्यार करेंगे! इसलिए पहले मैं खुद को प्यार करूँ।
परमात्मा बाप ने शिक्षाओं को धारण करने के लिए जो शक्ति दी है, उससे जो न काम की बात है वो अन्दर जाती नहीं है, इसमें बाहर की बात अन्दर न जावे, यह है अपने से प्यार करना, अपने पर दया करना। अगर सुबह से लेके यह बात… वह बात है… तो वो क्या दया करेगा? अरे, मेरा धर्म है शांत रहना। सच्चाई और प्रेम से सबको रिगार्ड देना, रिस्पेक्ट देना, इससे औरों के मन में आपके प्रति रिगार्ड पैदा होगा। पहले परिवर्तन का रिकॉर्ड अच्छा हो। हमारा काम है सेल्फ रिस्पेक्ट में रहना, सबको रिस्पेक्ट देना। छोटों को स्नेह दो, कई बच्चे बिचारे क्यों ऐसे नाराज़, दु:खी रहते हैं क्योंकि बच्चों को बचपन से ले करके माँ-बाप का स्नेह नहीं मिलता है। भाई-बहनों का प्यार नहीं मिलता है। छोटे बच्चों में भी ईष्र्या होती है, मम्मी इसको ज्य़ादा प्यार करती, मेरे को नहीं। मैं तो संसार समाचार से दूर रहती हूँ पर प्रैक्टिकल क्या हो, यह भावना है।
शांत में रहने के लिए बीच में कोई पुरानी बात का संकल्प याद न आवे, तो वो वायब्रेशन बड़े पॉवरफुल होते हैं। जिससे कदम-कदम पर सावधान रहने की समझ मिली है, उनके प्रति सम्मान दिल से निकलता है। और कोई कहे यह भी ऐसे करता है या ऐसे किया है, तो यह है डिसरिगार्ड। जिसको जो कहना व करना है करे, पर मैं शांति और प्रेम को नहीं छोड़ूँ। सामने वाला कितना भी कुछ बोले, पर मेरी शक्ल चेंज न हो। ऐसे नहीं क्या बोलती हो? तो इसमें हर बात एक्सेप्ट करो, एक्सपेक्ट नहीं करो।