भाग्य को अभ्यास से बढ़ाओ

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भाग्य मिलना बड़ी बात नहीं है, उस भाग्य को रिज़र्वकरना बहुत बड़ी बात है। रिज़र्वका मतलब है उसकी देखभाल करना, उसको बार-बार संजोना, संवारना और उसका ध्यान रखना

जब कभी हम आध्यात्मिकता में अपने आपको डालते हैं तो कई बार एक छोटा-सा संकल्प ज़रूर चलता है कि कौन-सी ऐसी कमी है जो इतने समय से, यहाँ रहने के बावजूद भी बीच-बीच में थोड़ा-सा नर्वसनेस फील होती है या मन पूरी तरह से उसके साथ नहीं जुड़ता है। कभी मन करता है कि कुछ और करें। तो इस दुनिया की एक सबसे बड़ी खास बात है, जिस पर हमको बहुत ज्य़ादा सोचने और मनन चिंतन करने की ज़रूरत है। भाग्य मिलना बड़ी बात नहीं है,उस भाग्य को रिज़र्व करना बहुत बड़ी बात है। रिज़र्व का मतलब है उसकी देखभाल करना, उसको बार-बार संजोना, संवारना और उसका ध्यान रखना। इसको आध्यात्मिकता की शक्ति के रूप में अगर देखें तो जब कभी भी हम, कोई भी चीज़ गहराई से जान जाते हैं तो उसके पीछे हमको पडऩा पड़ता है। मतलब उसके और डेप्थ(गहराई) में जायें। क्योंकि जैसे पैसा मिला तो उस पैसे को जब हम जितना ज्य़ादा से ज्य़ादा इन्वेस्ट करते हैं, उतना ही वो बढ़ता जाता है। वैसे ही इस आध्यात्मिक ज्ञान में भी जितना ज्य़ादा से ज्य़ादा हम उस चीज़ को अलग-अलग कार्यों में लगाते हैं तो वृद्धि होती है। एक हो गयी एक तरफ की बात। ये वाली बात एक तरफ की बात है, लेकिन इसमें दूसरी बात भी शामिल है कि उसका अभ्यास भी हमको करना ज़रूरी है बीच-बीच में। कौन-सा अभ्यास? जो हमको याद दिलाये, बार-बार याद दिलाये कि ये चीज़ आप हैं, और इस चीज़ के लिए आप यहाँ पर आये हैं। तो जैसे हमारा लक्ष्य परमात्मा ने हमें दिया कि आप परमात्मा के बच्चे हैं। परमात्मिक शक्ति आपके साथ है, और परमात्मा हमेशा आपको साथ दे रहा है। ये सारी बातें मुझे बार-बार याद दिलाने से, ये शक्ति बढ़ जाती है। और ये शक्ति बढ़ती है जितनी, उतनी ज्य़ादा हमको खुशी होती है। लेकिन जब थोड़ी भी खुशी गायब तो इसका मतलब अभ्यास को हमने कम कर दिया। और ये जैसे हम किसी माहौल में रहते हैं, इस बात को बहुत ध्यान से समझेंगे कि जब हम किसी ऐसे माहौल में रहते हैं जहाँ स्पिरिचुअलिटी का ही बोल-बाला है। जहाँ निरन्तर वैसे ही लोग रह रहे हैं। तो ऐसे स्थानों पर रहते हुए हमारे अंदर वो वाले भाव ही नहीं पनपते दूसरे वाले तो हमको लगता है कि सब ठीक चल रहा है। लेकिन जैसे ही आप किसी ऐसे स्थान पर जायेंगे, वहाँ पर अगर किसी छोटी से छोटी बात में अगर आपको परेशानी अनुभव होनी शुरू हो गयी, तो आप समझ लीजिए कहीं न कहीं आपके अभ्यास में कमी आ गयी है। क्योंकि शायद आपने अभ्यास छोड़ दिया। तो अभ्यास को निरन्तर करना बहुत ज़रूरी है। जितना उस अभ्यास को करते जाते हैं ना, उतना हमारे अंदर पक्कापन आता जाता है। और इस पक्केपन को बार-बार लाने के लिए बार-बार मुझे अपने आपको याद दिलाना पड़ेगा कि नहीं-नहीं मैं इस आध्यात्मिक शक्ति से अपने आपको संवार सकता हँू। तो ये बड़ा ही अच्छा अनुभव है इस चीज़ का कि जितना अधिक से अधिक हमने इस चीज़ पर ध्यान दिया है, उतना वो टाइम पर काम आता है। नहीं तो जो हम निरन्तर ऐसे वातावरण में रह रहे हैं ना जहाँ सब लोग बड़े अच्छे अभ्यासी हैं तो आपको याद ही नहीं आयेगा कि मुझे कुछ और करना चाहिए। आपको लगेगा कि सब ठीक चल रहा है। लेकिन उसकी चेकिंग तब होती है जब कोई ऐसी बात आती है। जैसे आप बाबा(परमात्मा) के घर में रह रहे हैं या कहीं ऐसे ऑर्गनाइज़ेशन में रह रहे हैं जहाँ सभी लोग ऐसे हैं तो आपको बिल्कुल भी एहसास नहीं होगा। हमें लगेगा सब ठीक है। लेकिन आपको इसकी चेकिंग करनी है। तो बार-बार आपको इसको बाहर जाकर व जब आप बाहर जाते हैं, किसी से मिलते हैं, अपनी कोई बात कहते हैं तो उस समय आपका बात कहने का जो दम होगा, जो ताकत होगी उसमें बहुत फर्क होगा। इसलिए अभ्यास की निरन्तर आवश्यकता है। और उससे परमात्मा का भाग्य जो हमको दिया गया है वो और बढ़ता चला जाता है।
बड़े ही लम्बे समय की ये दस्तान है। क्योंकि एक दिन में तो ये होता नहीं है। तो ये जितना-जितना इसकी गहराई में हम जाते जा रहे हैं हम सभी, उतना हमको पता चल रहा है कि सिर्फ परमात्मा को जान जाना, आत्मा को जान जाना, भाग्य को जान जाना ही बड़ी बात नहीं है, लेकिन उसको अभ्यास के साथ जोड़ देना और इतना गहराई से जोडऩा कि आपको हमेशा याद रहे, कि नहीं,मुझे अभ्यास करना है। छोटी बच्चे की तरह निंरतर मुझे अभ्यास करना है। मुझे अभ्यास करना। मुझे अभ्यास करना। इससे आपके जीवन में फिर से वही निखार आ जायेगा जो शुरूआत में था।

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