चलो खुद को परमात्मा के रंग में रंगते हैं

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पौराणिक कथाओं में होली का त्योहार कैसे और क्यों मनाया जाता है इसका वर्णन है। उसमें कहा जाता है कि होलिका, जिसको एक वरदान प्राप्त था कि अगर वो अग्नि में बैठी तो अग्नि भी उसे जला नहीं सकती। जो कहानी में भी है कि प्रहलाद विष्णु भक्त थे। उनके अन्दर इतनी सारी आस्थायें थीं, विष्णु जी के लिए। तो उनकी आस्था को छिन्न-भिन्न करने के लिए उनके पिता जो कि चिढ़ते थे या कह सकते हैं कि पसंद नहीं करते थे, वो कहते थे कि उसकी पूजा नहीं करो। उन्होंने होलिका को आदेश दिया था कि आप इनको लेकर अग्नि में बैठो। और कहानी ये है, कथा ये है कि वहाँ पर होलिका ही जल जाती है और प्रहलाद बच जाते हैं। इससे क्या एक रहस्य सामने आता है कि अगर कोई भी वरदान आपको मिला हुआ है, उस वरदान का आपने सदुपयोग नहीं किया, उसको एक अच्छे कार्य के लिए, कल्याणकारी कार्य के लिए नहीं किया तो वो चीज़ हमारे लिए भी अकल्याणकारी हो ही जायेगी। तो श्राप बन गया हमारे लिए किसी का दिया हुआ वरदान। तो वरदान अगर श्राप बन जाये तो उससे ज्य़ादा अकल्याणकारी बात क्या हो सकती है हमारे लिए।
तो आप इसके रहस्य के साथ समझेंगे मनायेंगे तो निश्चित रूप से बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। होली का त्योहार पवित्रता का त्योहार है और पौराणिक कथा और गाथा के आधार से ये अगर लिया जाये तो कहा जाता है कि जो पवित्र है, जो शुद्ध है, जो स्वच्छ है, जो साफ है वो हमेशा सेफ है। परमात्मा की आंच में भी है वो, परमात्मा की गोद में भी है वो। परमात्मा उसको सहारा भी देता है। इसीलिए प्रहलाद तो एक मिसाल के रूप में दिखाएंगे वहाँ, लेकिन हम सभी की रक्षा भी इन्हीं तरीके से होती है चाहे वो दुनिया की प्रकृति के कोई भी तत्व हों लेकिन उन तत्वों को पूरी तरह से तब तक अपने अन्दर समेट नहीं सकते जब तक हमारे अन्दर एक भाव नहीं है कि मुझे सिर्फ और सिर्फ परमात्मा की याद में ये कार्य करना है। इसीलिए पहले होलिका जलाई जाती है जिसमें कहा जाता है कि गेहँू, जौ, चने, गन्ना और सरसों ये जो पांच चीज़ें उसके अन्दर डाली जाती हैं इनका सही मायने में भाव जो कहेंगे वो ये कि हमारे अन्दर थोड़ा भी वैर, या कहेंगे वैर भाव, बुराइयां हैं वो पूरी तरह से जलकर नष्ट हो जायें। पूरी तरह से हम स्वच्छ और साफ हो जायें उसके बाद ही हमारे ऊपर परमात्मा का रंग चढ़ता है।
तो ये रंगों का त्योहार निश्चित रूप से दुनिया के लिए है लेकिन इसमें एक आध्यात्मिकता है, बहुत गहराई है कि परमात्मा के रंग में जब हम रंगते हैं, जब परमात्मा की याद में रहना शुरु करते हैं तो हमको देखकर लोगों को परमात्मा की याद आती है, और इसका मिसाल दुनिया में बहुत बार मिलता है कि परमात्मा के रंग में अगर हम एक बार रंग जायें तो उसको गीतों और गज़लों के माध्यम से लोग सामने रखते हैं आज के भक्तिमार्ग के लोग, क्रऐसा रंगों कि रंग न छूटे धोबिया धोए चाहे सारी उमरिया, रंग दे चुनरियाञ्ज। तो ये जो गीत हैं, ये जो बातें हैं पूरी तरह से इस बात को बंया करती हैं कि अगर हम परमात्मा के रंग में रंग जायें तो कोई अंतर न कर पाये। यहीं से आत्मा और परमात्मा का कॉन्सेप्ट(अवधारणा) शायद उभर कर आया होगा कि आत्मा,परमात्मा की याद में इतनी खो गई कि किसी को पता ही नहीं चला ऋषि-मुनि, तपस्वी को कि आत्मा कौन है, और परमात्मा कौन है।
तो इस होली के त्योहार को अगर हम इस रहस्य के साथ मनायें तो इसके साथ शायद गहरा न्याय होगा लेकिन शायद थोड़ा बहुत ऐसे ही खेलते रहे तो इतने समय से हम वही करते आये हैं जो हम कर रहे थे। परमात्मा का ये कहना, ये संदेश है हम सभी के लिए कि अब तक हम जो करते आये वो एक व्यवहारिकता थी या कहें कि ये एक त्योहार है लेकिन अभी हमको इसके साथ सच में न्याय करना है तो हमको पवित्रता को थोड़ा-सा अपने जीवन में लाना चाहिए। क्योंकि पवित्रता जब हमारे जीवन में उतरती है तो उससे हमारे घर में सुख-शांति आ जाती है। तो क्यों न इस होली के त्योहार को हम सुख-शांति के अवसर में बदलें। और ये जब ये त्योहार सुख-शांति के अवसर में बदलेगा तो हर बार जब भी ये होली आयेगी तो उस समय हमारे अन्दर एक ही भाव उत्पन्न होगा और वो होगा कि हम हमेशा ये याद कर पायेंगे कि अगर हमारे घर में अशांति है, दु:ख है, तकलीफ है, दर्द है तो ज़रूर कहीं न कहीं अपवित्रता हमारे पास आ गई है, उसको मुझे निकालना है, खत्म करना है। तो मुझे इस बार ये अपने आप में प्रण लेना है।

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