मुझे आठ वर्ष की आयु में ही प्रथम बार बाबा से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। बाबा का प्रेम सम्पन्न और रूहानियत भरा चेहरा देखते ही मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि ये मेरे ग्रैंडफादर हैं। फिर हम विदेश चले गए। 1966 में फिर दोबारा भारत में आने पर माउण्ट आबू में आये, तो उस समय बाबा के साथ मुलाकात रही। उस समय मेरी आयु थी 17 वर्ष की। तो उस समय बाबा ने बड़े प्यार से मुझे परमात्मा की याद में दृष्टि देते हुए कहा, बच्चे, तुम रूहानी शिक्षक बनेंगी। तो मुझे तो हिंदी इतनी आती नहीं थी। रूहानी शब्द का अर्थ क्या होता है वो भी मुझे मालूम नहीं था। तो मैं तो चुप रही। परंतु बाबा ने बड़े प्रेम से पालना दी। आत्मा क्या है, परमात्मा क्या है, वो धीरे-धीरे बाबा जब मुरली में समझाते रहे तो थोड़ा-थोड़ा कुछ समझ में आया। परंतु बाबा के नयन में कुछ ऐसी ईश्वरीय शक्ति थी कि बाबा जब आत्मा को देखते थे तो जैसे कि नयन के अंदर वो बिल्कुल एक आईने के रूप में आत्मा का पूरा साक्षात्कार हो जाता था कि मेरा आदि स्वरूप, अनादि स्वरूप क्या है। फिर कुछ वर्षों के बाद 1968 में मैं पूना में थी, तो मैंने बाबा को पत्र लिखा कि मैंने अपने जीवन के लिए यही सोचा है कि मुझे ईश्वरीय मार्ग पर ही चलना है। तो बाबा ने टेलीग्राम भेजा कि बच्चे आबू में आ जाओ तो बाबा बैठकर आपसे बात करेंगे। फिर हम जून मास में मधुबन आये। उस समय मेरी आयु 19 वर्ष थी। तो जब बाबा के सामने बैठे झोपड़ी में, तब बाबा ने पूछा, बच्चे, तुमने क्या सोचा है बाबा को बताओ। तो मैंने कहा, मुझे ये ईश्वरीय जीवन अपनानी है, तो बाबा मुझे देखते रहे और कहा कि बाबा पहले से ही जानते थे। तो उस घड़ी फिर मुझे वो स्मृति आई कि हाँ, कुछ वर्ष पहले ही बाबा ने ऐसे कहा था। जैसे कि बाबा मुझे एक नई जीवन देने के निमित्त बने।
एक रात्रि को बाबा ने कहा कि अच्छा बच्चे, रात्रि को क्लास के बाद हमारे पास आना। तो बाबा के कमरे के बाहर छोटा-सा आंगन था और मैं, दादी जानकी और ऐसी कुछ अन्य बहनें करीब हम 10 लोग बाबा के कमरे में वहाँ गये। गर्मी का समय था, बाबा की खटिया बाहर आंगन में ही डली हुई थी, उसकी चादर भी सफेद, बाबा के वस्त्र भी सफेद, बाबा का चेहरा भी बहुत चमक रहा था, बाबा के बाल भी सफेद, और आंगन में चंद्रमा चमक रहा था, तो वो रोशनी जो सब तरफ फैली हुई थी तो बाबा हरेक को देख रहे थे, और परमात्मा की याद में एक-एक को दृष्टि दे रहे थे। फिर बाबा ने मुझे पास में आने का इशारा किया तो मैं बाबा के नज़दीक गई। तो बाबा के तकिये के बाजू में काफी सारे सफेद चमेली के फूल थे। बाबा ने वो उठा करके मुझे हाथ में पकड़ाये। वो इतनी सुंदर खुशबू थी कि आज भी जब चमेली की खुशबू आती है तो मुझे वो पल याद आ जाता है। तो बाबा मुझे फूल देते दृष्टि देने लगे। और उस दृष्टि में मुझे ऐसे लगा कि जैसे मुझ आत्मा को कोई मैग्नेट की तरह आकर्षित करके कहीं बहुत-बहुत दूर एक यात्रा पर लेकर जा रहे हैं। बाबा की, परमात्मा की याद ऐसी थी जो मुझे भी परमात्मा की याद दिलाकर जैसे कि आत्मा को स्थूल वतन से खींच करके मुझे रोशनी की दुनिया, प्रकाश की दुनिया में ले गये। वहां पर ऐसे अनुभव रहा जैसे कि आत्मा का निराकार शिव परमात्मा के साथ बहुत समय से बिछडऩे के बाद मंगल मिलन हो रहा है। ये अनुभव कितने देर का था ये तो मैं बता नहीं सकती क्योंकि उस समय मैं जैसे कि टाइम और स्पेस से किसी दूसरे वतन में चली गई थी। कुछ समय के बाद लगा कि हाँ, इस स्थूल वतन में आ गये हैं। तो बाबा ने प्रश्न पूछा, किसी का संकल्प तो नहीं चल रहा कि बाबा इसको दृष्टि क्यों दे रहे हैं? तो फिर ध्यान गया कि बाबा की चारपाई के उस ओर दादी जानकी थीं और वो बहुत सुंदर रीति से अपनी कांध हिला रही थीं। तो वो जानती थीं कि अभी जैसे कि एक नया जन्म आरंभ हुआ। पुरानी दुनिया की समाप्ति और नये जीवन की आरंभ हुई। तब से लेकर फिर ऐसे ही लगा कि बाबा ने मुझे परमात्मा के कार्य के लिए एक नया जन्म दिया और फिर उसमें मुझे कैसे चलना होता, बाबा की मुरलियों के द्वारा वो शिक्षा भी प्राप्त होती रही।
उसके बाद दादी जानकी के साथ मुझे सारे विश्व में, पाँचों खंडों में बाबा ने ईश्वरीय सेवा के लिए कॉन्फ्रेंस, सम्मेलन आदि में भेजा। बाबा की शक्ति, बाबा की पालना और बाबा के डायरेक्शन अनुसार बाबा आज भी सेवा करा रहे हैं। बाबा ने एक बार मुझे कहा था क्रफ्लाइंग एंजलञ्ज। संस्थान के ईश्वरीय सेवाओं की ओवरसीज़ सेवाओं के मुख्यालय लंदन में रहकर सारे विश्व में बाबा ने सेवा करने का सौभाग्य प्रदान किया। सच में मेरा आना एक दिन इस देश में, एक दिन दूसरे देश में, यही मेरा जीवन चलता आ रहा है।
मैं स्वयं को बहुत भाग्यशाली समझती हूँ कि बाबा ने मुझे हर सेवा करने का मौका दिया। ऐसे हमारे बाबा की पुण्य तिथि पर मैं उनका जितना भी शुक्रिया अदा करूं वो कम है। करनकरावनहार करा रहा है, खुद बैकबोन होकर बच्चों को आगे बढ़ा रहा है।
राजयोगिनी ब्र.कु. जयंती दीदी,
अति. मुख्य प्रशासिका, ब्रह्माकुमारीज़