स्वयं में शक्ति भरकर समस्या को परिवर्तन करो और समाधान स्वरूप बनो

0
237

कोई भी बात मुश्किल तब लगती है जब माया वार करती है। उस मुश्किल को सहज करने की विधि क्या है? मुश्किलातें तो आयेंगी क्योंकि वायुमण्डल तो कलियुग का है ना और हमारा भी यह लास्ट जन्म है। तो लास्ट जन्म में सारा ही 63 जन्म का हिसाब-किताब चुक्तू होना ही है फिर चाहे योगबल से करो, चाहे बीमारी द्वारा करो, चाहे सहनशक्ति द्वारा करो। तब ही बाबा के साथ घर जा सकेंगे और साथ मेेंं फस्र्ट जन्म में भी आ सकेंगे।
समस्या को परिवर्तन करके समाधान स्वरूप बनाने के लिए स्वयं में शक्ति भर लो। अपने को शिवशक्ति समझेंगे तो कभी भी नरम स्वभाव, रोना, रूसना, इस प्रकार की कोमलता नहीं होगी। तो अपने को छोटी व कुमारी या पुरुषार्थी नहीं समझना। कुमारी है तो कोमलता है। अभी तो सरेण्डर हो गई, बाबा का स्थान मिल गया, बाबा की गुरू भाई बन गई, तो अभी कर्मों की गति को ध्यान में रखते हुए बहुतकाल से तीव्र पुरुषार्थी की स्थिति, बहुतकाल के पुरुषार्थ के विजयी की होनी चाहिए क्योंकि हम जो भी कुछ करते हैं, उसका हिसाब तो बन ही जाता है। गलती की तो दण्ड का हिसाब है।
केवल ज्ञान के प्वाइंट रिपीट नहीं हों, लेकिन शुद्ध संकल्पधारी समर्थी का स्वरूप प्रत्यक्ष हो। ज्ञान का मनन करके उसी में मगन हो जाओ अर्थात् भिन्न-भिन्न ज्ञान की प्वाइंट में मन स्थिर हो जाये। मनन करना अलग है, रिपीट करना अलग है वो भी अच्छा है। अलग-अलग टाइम पर अलग-अलग टॉपिक के प्वाइंट पर मनन करते मगन हो जाओ। जैसे योग की सब्जेक्ट में मनन करते-करते उस रूप में चले जाओ तो सारा व्यर्थ खत्म होता जायेगा। कुछ भी करके व्यर्थ संकल्प को स्टॉप करो क्योंकि वही योग में बहुत डिस्टर्ब करता है। बाबा कहता है जो मैं जिस दिन कहता हूँ, उस ताजे माल में ताकत होती है, उसी दिन आप प्रैक्टिकल करो तो आपको हिम्मत भी मिलेगी, बाबा की मदद भी मिलेगी। बासी खाना खाने से तो बीमारी ही आयेगी।
मिट्टी के मटके को भी चारों तरफ से देखकर लिया जाता है और मैं तुमको ऐसे ही सरेण्डर करा दूँगा? पहले करो तो सही, मरो तो सही। जीते जी मरना तो पड़ेगा ना! तो मरना पड़ेगा, सहन करना पड़ेगा, शक्ति रूप बनना पड़ेगा, यह तो करना ही होगा। तब हमारे में वो शक्ति भरेगी, तब जीते ही मरना बहुत अच्छा और मीठा लगेगा। लेकिन जिसके संस्कार टक्कर होते होंगे तो कहेंगे गलती कर ली, पता नहीं किसके संग में आ गई, मर तो गई लेकिन है बड़ा मुश्किल। सरेण्डर का फाइल तो बन गया, लेकिन है बड़ा मुश्किल! अभी घर भी नहीं जा सकती, शादी भी नहीं कर सकती तो अभी क्या करें और सेन्टर पर चल भी नहीं सकती, अभी कहाँ जाऊं, तो व्यर्थ संकल्प चलेंगे। अभी माया किस-किस रूप में व्यर्थ लाती है और किस शक्ति से उस पर विजय पा सकते हैं वो दोनों बातें अच्छी तरह से जानते तो हैं, परन्तु होता क्या है? उस समय वो याद ही नहीं आता है, समय पर शक्ति यूज़ करने नहीं आती है इसके कारण बार-बार समस्यायें व व्यर्थ संकल्प आते रहते हैं।
समझो आपके पास ईष्र्या आई, उसको आपने जीता, तो कैसे जीता? चाहे मदद लेके जीता, चाहे योग से जीता, चाहे मनन से जीता, जीता तो सही, पास तो किया ना! फिर दूसरे बारी जब आता है तो फिर क्यों फेल हो जाते? समझते हैं यह समस्या है, पेपर है तो अभी इसमें सिर्फ सोचने-समझने से कुछ नहीं होगा।
इसके लिए बाबा कहते थे जैसे तलवार को म्यान में डालके रखते हैं लेकिन अगर बीच-बीच में उसको साफ नहीं करें, यूज़ नहीं करें, देखें नहीं तो जब समय आयेगा और उस समय म्यान से तलवार निकालेंगे तो उससे अपनी भी अंगुली नहीं काट सकेंगे क्योंकि जंक खाके उसकी वो धार खत्म हो गई होगी। तो बार-बार मनन करो, जैसे सहनशक्ति को यूज़ कैसे करें? मानो मेरे सामने ऐसे पेपर आये या फलाने ने मेरे साथ यह किया, उस समय देखो क्या करना है? तो शक्तियों को यूज़ करते उसका वर्णन करते रहो। आज समाने का पेपर दूँगी, तो उस समय क्या करूँगी, ऐसे यह मनन करते रहो और यूज़ करते रहो। यूज़ नहीं किया तो रिवाइज़ करो। यह करने से क्या फायदा होता है? यह न करने से क्या नुकसान होता है, ऐसे मनन करो। तो मनन करने से वो शक्ति आपके पास हमेशा हाजि़र रहेगी। चीज़ बढिय़ा हो उसको सम्भाल के रखा भी है परन्तु वो समय पर काम में नहीं आवे तो उसकी क्या वैल्यू? हमारे लिए तो वो बेकार ही हुई ना। ज्ञान सुनते-सुनते शक्तियों की परिभाषा जो आपके पास है, उसे मनन करके यूज़ करो तो समय पर आपको काम में आयेगी। समय पर शक्ति इमर्ज होगी। तो यह प्रैक्टिस करो कि समय पर मेरी शक्ति काम में आती है या नहीं? तो एक सहनशक्ति को धारण करना है क्योंकि उसके बिना गति नहीं है। दूसरा समाने की शक्ति भी आपको बहुत चाहिए।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें