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राजयोग से असंभव हुआ संभव

२००३ में ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय से मेरा संपर्क ऐसे समय पर हुआ, जब मैं जीवन से बिल्कुल निराश हो गई थी। उस वक्त मैं एक आँगनवाड़ी शिक्षिका, ग्राम पंचायत सदस्य,महिला को-ऑपरेटिव सोसाइटी डायरेक्टर, गाँव-गाँव में महिला बचत गट स्थापन कर उनको अपने पैरों पर खड़ा करना, महिला परिषद जैसे सरकारी क्षेत्र की मदद से महिलाओं को अत्याचार से छुड़ाना, उनके पतियों को, बच्चों को नशा मुक्ति केंद्र से व्यसन मुक्त बनाना। इस तरह के समाज सेवा के कार्य में सदा व्यस्त रहते हुए भी खुद के शराबी पति के आगे बिल्कुल लाचार थी।
उनके व्यसनी होने से उनको अपने कार्यस्थल से निकाल दिया था। तीन छोटे बच्चों की जि़म्मेवारी मुझ पर छोड़कर वो अपनी शराबी दुनिया में मस्त रहते थे। न परिवार की चिंता, न भविष्य की चिंता, न समाज की परवाह! रोज़-रोज़ गाली-गलोच करना, कभी रास्ते में गिरना, कभी गाड़ी से गिरना, कभी पंचायत कार्य हेतु घर में आये सभा में मुख्यमंत्री या अन्य महानुभावों का भी शराब पीकर अपमान करना। इस तरह के उनके गैर जि़म्मेवार आचरण से सारा परिवार भयंकर परेशान था। उनके खुद के माँ-बाप के साथ मेरे मुख से या बच्चों के मुख से यही आता कि क्रक्रये मर जाता तो बहुत अच्छा होता।ञ्जञ्ज
उन्होंने अपनी नाराज़गी दिखाने के लिए कई बार अपने बालों को नोच-नोच कर तोड़ दिया। क्रोध में आकर मेेरे मँुह पर फेंके, पगार को आग लगा दी। कभी बच्चों ने उनकी मार-पीट की। एक बार तो क्रोधवश रोटी का पलटा गैस पर लाल-लाल करके उनकी छाती को जला दिया! परेशान होकर मैंने दो बार आत्महत्या का भी प्रयास किया,लेकिन बच्चों के बारे में सोचकर विचार बदल दिया। एक बार बच्चों को लेकर हमेशा के लिए घर छोड़ देने का निर्णय लिया, लेकिन जब ससुर जी ने ज़मीन पर बैठकर मेरे दोनों पैर पकड़कर, आँखों से आंसू बहाते न जाने की विनती की, तो यह विचार भी बदल दिया।
शराब छुड़ाने के लिए उन्हें डॉक्टर की दवाइयां दी, किसी महिला के शरीर में आने वाली देवी से भोजन में राख खिलाई, मुम्बई के मंदिर में मुर्गे की बली चढ़ाई, तीन महीने व्यसन मुक्ति केंद्र में भी भर्ती करवाया फिर भी कोई फायदा नहीं हुआ।
मैंने ब्रह्माकुमारी विद्यालय में सात रोज़ एक घंटे का राजयोग मेडिटेशन का कोर्स किया, उसमें मैंने आत्म शक्ति, परमात्म शक्ति और कर्मों की गुह्य गति को जाना। भगवान को याद कर सिर्फ संकल्प शक्ति से दूसरों को शक्तिशाली बनाने की विधि मैंने सीख ली। इसका प्रयोग अपने पति पर करना शुरू कर दिया।
रोज़ सवेरे चार बजे जब मनुष्य गहरी नींद में होते भी उनका अंतर्मन जागृत होने से, उसके बारे में हम जो भी संकल्प करते हैं वो उनके मन-बुद्धि तक पहुँचते हैं और रोज़-रोज़ ऐसा करने से मनुष्य वैसा ही व्यवहार करने लगता है।
अब रोज़ सवेरे वो जहाँ भी सोते थे, वहाँ मन-बुद्धि से उनका चित्र देखकर, उनके मस्तक में बिंदु स्वरूप आत्मा को देखकर संकल्प देना शुरू किया।

कॉमेंट्री—
देखो मैं एक ज्योति बिन्दु आत्मा हँू, वैसे ही तुम भी एक आत्मा हो… देखो अपने मस्तक में… जैसे मैं परमात्मा का बच्चा हँू…परमधाम से इस दुनिया में उतरे हैं…तुम भी परमात्मा के बच्चे हो… इस देह से बिल्कुल अलग हो, एक चैतन्य शक्ति हो… मुझे पता है कि सृष्टि के रंगमंच पर जन्म-मरण के चक्र में आते मैंने किसी जन्म तुम्हें बहुत सताया था, दु:ख दिया था, इसलिए अब तुम मुझे सता रहे हो… हे आत्मा मैं आपसे क्षमा माँगती हँू… मुझे माफ कर दो… मैं भी तुम्हे माफ कर देती हँू। अब जल्दी जागो, उठो… चलो हम घर को स्वर्ग बनायें… परमात्म छत्रछाया से जीवन को खुशहाल बनायें।
ऐसे संकल्प भेजते हुए मैं अनुभव करती थी कि जैसे उनके मस्तक पर भगवान की शक्तिशाली किरणें फैल रही हैं… पिता परमात्मा से आ रही प्रेम की, सुख-शांति की, पवित्रता की किरणों से वो भरपूर हो रहे हैं… दया-करुणा के सागर अपने पिता से मिलकर वो तृप्त हो रहे हैं… इस तरह करीबन तीन महीने गुज़र गए। उनके संस्कारों में थोड़ा-सा परिवर्तन
दिखने लगा, तो मैंने भी हिम्मत कर एक दिन धीरे से पूछा ”क्या आप सात दिन का कोर्स करेंगे?” उन्होंने तुरंत धीमी आवाज़ में हाँ बोला। कहते हैं ना कि बीज बोने से पहले धरनी को तैयार करो। तो रोज़ के प्रयोग से उनके जीवन रूपी धरनी पर शुद्ध संकल्पों के बीज असर कर गए।
बस! फिर तो क्या कमाल हो गई! जिस दिन से उन्होंने कोर्स शुरू किया, उसी दिन से शराब पीना बंद हो गया। अन्न का शुद्धिकरण होता गया। कहते हैं ना, ”जैसा अन्न वैसा मन”। संस्कार तो ऐसे बदल गए कि उनके मित्र-परिवार सब दंग रह गये। इस राजयोग का, इस विद्यालय का लक्ष्य ही है मनुष्य को देवता समान खुशी देने वाला बनाना।
आज वो हमारे घर के सामने जो गीता पाठशाला है उसमें आने वालों को ज़रूरत पडऩे पर जीवन को पलटाने वाले ईश्वरीय महावाक्य सुनाते हैं। स्व परिवर्तन से विश्व परिवर्तन के ईश्वरीय कार्य में हर समय मददगार बनकर रहते हैं। आज हर कोई उनका सम्मान करता है।
भगवान उन्हें लंबी आयु दे। सदा खुश रहें! भगवान से रिश्ता जोड़ें, तो कोई भी कार्य असंभव नहीं है। बस, जैसे मेरा घर नर्क से स्वर्ग बना वैसे ही राजयोग के अभ्यास से घर-घर स्वर्ग बन जाए। इसी शुभकामना के साथ विराम देती हँू।

ब्र.कु. दर्शना बहन,मापुसा,गोवा

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