योगानंद के लिए इमेजिनेशन पॉवर को बढ़ायें

0
300

आत्मा में सोचने की, निर्णय करने की और व्यक्त करने की योग्यता सदा होती है। अगर योग में हमें नया-नया अनुभव नहीं हो रहा है और हम आगे नहीं बढ़ रहे हैं, हम योग की गहराई में गोते नहीं लगा रहे हैं तो इसका अर्थ है कि हम अभी तक इसी दुनिया में हैं, सिर्फहम योग-योग कह रहे हैं परंतु करते नहीं हैं। जहाँ हमें जाना चाहिए वहाँ नहीं जा रहे हैं और जो करना चाहिए वो नहीं कर रहे हैं। इसका एक कारण यह है कि हम जिसके साथ योग लगाना चाहते हैं और जिस स्थान को याद करना चाहिए उसका चित्रण नहीं करते। अगर हम परमधाम में बाबा को याद करना चाहते हैं तो पहले उस परमधाम का चित्रण मन में निर्मित करना चाहिए, उसमें बाबा(परमपिता शिव परमात्मा) का चित्रण करना चाहिए। क्योंकि बाबा को या घर को हम इन स्थूल आँखों से तो देख ही नहीं सकते। उनको तो मन की आँख अथवा बुद्धि के नेत्र से देख सकेंगे। इसका चित्र पहले हम अपने मन में निर्मित करें और उसको देखते रहें। इसको ही चित्रण अर्थात् इमेजिनेशन कहते हैं। इमेज अर्थात् चित्र। इमेजिनेशन माना चित्रण करना, चित्र बनाना। इमेजिनेशन का अर्थ कल्पना करना नहीं है, अन्दाज़ा लगाना नहीं है। इमेजिनेशन माना मन में किसी वस्तु या व्यक्तिका चित्र बनाना। कई लोगों को तो चित्रण करना आता ही नहीं है। क्यों नहीं कर सकते? क्योंकि मन में लीकेज है, योग में व्यर्थ संकल्पों के विघ्न आते हैं। इसके अलावा वे दूसरों को कई तरह के दु:ख देते रहते हैं, उन्हें सताते रहते हैं। दूसरों को देख ईष्र्या करते रहते हैं, उन्हें आगे बढऩे नहीं देते, कुछ-न-कुछ बाधा डालकर उन्हें तंग करते रहते हैं। इसलिए वे न योग में चित्रण कर सकते हैं और न योग लगा सकते हैं। मन में ऐसे खराब विचार, भावनायें होने के कारण वे चित्रण नहीं कर सकते। हमारा इमेजिनेशन हमारे संकल्पों से बँधा हुआ है। अगर आपको योग में अच्छे-से-अच्छे अनुभव करने हैं तो इन सब चीज़ों को छोड़ दीजिये। दूसरों के बारे सोचना बंद कर दीजिये। वो कुछ भी करें, अपने कर्मों के लिए वो ही जि़म्मेवार हैं, हम काहे को झंझट में पड़ें? एक जगह तो ऐसी है जहाँ न्याय होता है। हम काहे की चिंता करें? हम अपना काम करें। हम क्यों दूसरों को देखें? योग में अच्छे अनुभव होने के लिए डिटैचमेंट धारण करो कि मेरा कुछ भी नहीं, सब-कुछ बाबा का है, बाबा का दिया हुआ है। तब देखो योग-अग्नि धधकेगी, प्रज्वलित होगी।
योगानंद के लिए मन की स्थिरता चाहिए और प्रेरणा शक्ति अर्थात् प्रेरित होने की कला भी। रूखे-सूखे से काम नहीं चलेगा। जब तक प्रेरित नहीं होंगे कि मुझे योग में आनन्द, लाइट और माइट का अनुभव करना है, अपनी मंजि़ल पर पहुँचना है, सिद्धि प्राप्त करनी है तब तक आप योग में अनुभव नहीं कर सकते। जितना हम प्रेरित होंगे उतना हमारे योग की गुणवत्ता भी श्रेष्ठ होगी। अनुभव हमेशा प्रेरणाओं और भावनाओं के आधार से होते हैं। अगर आपमें भावनायें नहीं हैं, प्रेरणायें नहीं हैं तो अनुभव नहीं होगा। चलती-फिरती लाश को अनुभव नहीं होता, जि़न्दा-दिल आदमी को अनुभव होगा। इसलिए हमारे जीवन में प्रेरणायें होनी चाहिए। जो भी महान् पुरूष बने हैं, वीर-शुर बने हैं वे प्रेरित थे, प्रेरणा के कारण उनमें समाज-कल्याण की या देश प्रेम की भावनायें जाग्रत हुईं। तब जाकर उन्होंने महान् कार्य किये। प्रेरणा और भावनाओं से व्यक्ति कत्र्तव्य-उन्मुख हो जाता है, नहीं तो वह किंकत्र्तव्य विमूढ हो जाता है। किंकत्र्तव्य विमूढ माना उसको यह समझ नहीं है कि क्या करना है और क्या नहीं करना है। इसमें वह विमूढ है। रोज़ उसके मन में प्रश्न उठेंगे कि यह करना है या नहीं करना है। यह पैसे यज्ञ में लगाऊँ या न लगाऊँ? बाबा के लिए ज़मीन व मकान दँू या न दँू? – यह दुविधा उसके मन में नाचती रहती है। अगर आप ऊँचे स्तर का जीवन जीना चाहते हैं तो आपका ऊँची, उद्दात् प्रेरणाओं से, भावनाओं से प्रेरित होना बहुत ज़रूरी है।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें