मन की बातें – राजयोगी बीके सूरज भाई जी

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प्रश्न : मैं चन्द्रपुर से भाविका हूँ। बहुत कोशिश करने के बावजूद भी मैं अमृतवेले नहीं उठ पाती हूँ। अगर उठ भी जाती हूँ तो मेरा योग नहीं लगता, मुझे नींद बहुत आती है। मैं क्या करूँ?
उत्तर : अमृतवेले उठते हैं और अच्छी प्रैक्टिस करते हैं तो उससे एक आत्म संतोष अनुभव होता है। बहुत अच्छा लगता है कि हमने कुछ किया है। तो अगर आप रात को ज्य़ादा भोजन करती हैं तो आपसे रिक्वेस्ट करूँगा कि रात का भोजन एकदम हल्का कर दें। भोजन देर से नहीं हो, आठ बजे के अन्दर-अन्दर खा लेना चाहिए ताकि भोजन हज़म हो जाये और जब हम सोयें तो हमारा जो सारा सिस्टम है, शक्तियां है ब्रेन की वो भोजन हज़म करने में न लगी रहें, वो गहरी नींद में हमें सुलाये। जिससे हम रिलेक्स हो पायें। एक प्राणायाम अनुलोम-विलोम करें जिससे ब्रेन को बहुत अच्छी ऑक्सीजन मिलेगी। इससे ब्रेन बड़ा एनर्जेटिक रहेगा। बीमारियों पर भी बहुत गुड असर होगा, अनेक बीमारियां जायेंगी और सवेरे उठने में बहुत मदद मिलेगी। ये बहुत सुन्दर वरदान बाबा ने हमें दिया है। रात को जब सोयें तो सोने से पहले मन के सारे बोझ, मन की चिंतायें, कोई टेंशन हो, कुछ भी बात सामने हो वो बाबा के सामने रख दो। और बाबा की याद में बिल्कुल हल्के होकर सो जायें। संकल्प कर दो और बाबा को भी संकल्प दे दो कि मुझे तो चार बजे या 3:30 बजे जिस टाइम भी आप उठना चाहें, मुझे उठा देना।
सवेरे जब आंख खुले प्रथम बार तो ये संकल्प करके कि बाबा ने उठाया है खटिया को छोड़ देना चाहिए। और हमें जाग्रत हो जाना चाहिए। सुस्ती होने का कारण है कि मनुुष्य राजयोग में सुख पाना जानता नहीं है। सवेरे उठकर सबसे पहले अपने को बहुत सुन्दर संकल्प से चार्ज करें। और वो सुन्दर संकल्प हैं स्वमान के संकल्प, जिसे उठते ही, हाथ ऊपर करें और संकल्प करें कि वाह! मेरे जैसा भाग्यवान और कोई नहीं। इस जन्म में घर बैठे मुझे भगवान मिले। तीन-चार बार रिपीट करें। वाह! मेरे जैसा भाग्यवान कोई नहीं, भगवान वरदान देने मेरे द्वार पर आ गये। मेरा श्रृंगार करने, मुझे शक्तियां देने के लिए, स्वयं भाग्यविधाता आ गया। ऐसे संकल्प करें। मैं तो मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। ये माया कुछ नहीं, मैं तो इससे प्रबल हूँ। सफलता तो मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है। मैं तो विघ्न विनाशक हूँ। मैं विजयी रत्न हूँ, अब मुझे विश्व परिवर्तन का कार्य करना है। वाह! मेरा भाग्य, भगवान ने मुझे चुना कि आओ बच्चे मेरे इस महान कार्य में मुझे मदद करो। ऐसे विचारों से स्वयं को फ्रेश करें।
फिर पाँच स्वरूपों का अभ्यास एक बार ऐसे याद कर लें। मैं आत्मा हूँ, देवकुल में थी, पहले जन्म को देखें भक्ति में मेरी पूजा होती थी। अब मैं ब्राह्मण हूँ, अब मुझे फरिश्ता बनना है। एक बार केवल ऐसे याद कर लें। दूसरी बार भी इसमें एक मिनट लगा दें। मैं आत्मा हूँ, आत्मा के स्वरूप को देखें किरणें फैल रही हैं दस सेकण्ड। फिर मैं देवता था अपने देव स्वरूप को देखें दस सेकण्ड। फिर अपने पूज्य स्वरूप को दस सेकण्ड। ऐसे दस-दस सेकण्ड में एक अभ्यास करें। फिर तीन मिनट में करें। तो फिर ये पाँच स्वरूपों का अभ्यास करने से बहुत अच्छी आत्म जागृति होगी, एकाग्रता होगी और तब योग बहुत अच्छा लगेगा। और आपका जीवन भी बहुत सुन्दर हो जायेगा।

प्रश्न : मैं मुम्बई से कामिनी हूँ। बचपन से ही लाइफ में बहुत ही प्रॉब्लम्स और दु:ख ही दु:ख मैंने देखें हैं। निगेटिविटी बहुत है। मैं डर में जीती हूँ कि कल पता नहीं क्या होगा! मेरी तबियत भी खराब रहती है, बच्चे भी नहीं सुनते हैं। ना कुछ भी करने का मन करता है। कृपया बतायें मैं क्या करूँ?
उत्तर : देखिए ये कहानी सिर्फ आपकी नहीं है, ये कहानी तो लाखों नारियों की है। पुरुषों की है कि बचपन से ही परेशानियों में जी रहे हैं। जैसे जन्म ही लिया है इन सब चीज़ों के लिए। चारों ओर से मनुष्य अपने को घिरा हुआ महसूस करता है। कहीं न कहीं मनुष्य के कर्म ही इसके जि़म्मेदार हैं। आपको भयभीत होने की ज़रूरत नहीं है। आपका भय तो बिल्कुल प्रैक्टिकल है। कल पता नहीं क्या हो जाये? कल पता नहीं कौन-सी चीज़ सामने आ रही है। कल पता नहीं किसका फेस करना पड़ेगा। तो भय आपका बढ़ता जाता है। इसलिए आपको मैं राय दूँगा कि आपके लिए ईश्वरीय ज्ञान लेना बहुत-बहुत आवश्यक है। आप परमपिता से जुड़ें और आत्मा के सच्चे स्वरूप को रियलाइज़ करें। आत्मा तो है ही सुख स्वरूप, शांत स्वरूप, प्रेम स्वरूप, पवित्र स्वरूप, शक्ति स्वरूप, आनंद स्वरूप। अपने इन स्वरूपों का रियलाइज़ेशन होगा। जीवन में खुशी लौटेगी और बस उसका इंतज़ार है कि जिस क्षण आपके जीवन में खुशी लौट आये। उस क्षण से आपका जीवन पूरा बदलता रहेगा। राजयोग के माध्यम से आप अपना सबकुछ बदल सकती हैं। लेकिन एक सब्कॉन्शियस माइंड का प्रयोग मैं आपके सामने रखना चाहूँगा। आप थोड़ा जल्दी उठें सवेरे। प्रकृति के सौन्दर्य को निहारें। तो अगर सम्भव हो तो अपनी छत पर जायें। या फिर आपके पास छोटा-मोटा बगीचा हो, उसमें टहलें और प्रकृति की सुन्दरता को निहारें। कितना सुन्दर है ये संसार, कितना सुन्दर होगा इसको बनाने वाला। कैसी सुन्दर क्रियेशन है, समय पर सूरज निकल रहा है, चांद की कलायें घट-बढ़ रही हैं। धरती घूम रही है। कैसा ये साइकल चल रहा है इस यूनिवर्स का, इस अंतरिक्ष का। कितनी सुन्दर रचना है। ऋतुयें बदल रही हैं, आ रही हैं, जा रही हैं, कैसी वंडरफुल रचना है। रंग-बिरंगे फूल खिले हैं, जीव-जन्तु हैं। शोभा है इस संसार की। रात होती है तो आसमान में तारे चमकने लगते हैं। निहारें ज़रा इस संसार की सुन्दरता को। आपके मन पर जो काले बादल आ गये हैं वो हटेंगे। सवेरे उठते ही पहले दस मिनट में आप सुन्दर विचार अपने मन में क्रियेट करेंगे। और पहला विचार करें मैं बहुत अच्छी हूँ, मैं बहुत भाग्यवान हूँ। बड़े खुले दिल से कई-कई बार सोचें। मेरा जीवन बहुत अच्छा है। मैं बहुत सुखी हूँ। मैं बहुत भाग्यवान हूँ। मैं अपने जीवन से, अपने इस पार्ट से बहुत संतुष्ट हूँ। मेरा परिवार भी बहुत अच्छा है। यद्यपि आपको ये सोचने में बहुत भारी लगेगा क्योंकि सब बिगड़ा हुआ है, लेकिन आप ये कोशिश करें। दूसरे लोगों को देखो जिनके पैर नहीं हैं, जो सड़कों पर भीख मांग रहे हैं, याचना कर रहे हैं इनकी भेंट में आप विचार करें कि मुझे भगवान ने कितना अच्छा जीवन दिया है। भगवान ने हमें बहुत कुछ दिया है। तो सवेरे-सवेरे ये सुन्दर विचार किया करें। दु:खों के काले बादल छंटने लगेंगे।

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