मुख पृष्ठब्र.कु. उषाड्रामा में जितना निश्चय उतनी निश्चिंतता अर्थात् फुलस्टॉप

ड्रामा में जितना निश्चय उतनी निश्चिंतता अर्थात् फुलस्टॉप

जब हम उत्साह में होते हैं अर्थात् हमारी फुल स्पिरिट होती है। एक हाई एनर्जी अपने अंदर होती है। जब हाई एनर्जी अंदर में है तो परिस्थिति जब आती है तो वो लॉ एनर्जी, हाई एनर्जी को इफेक्ट नहीं करती, इसलिए कर्मणा सेवा करते हुए हम अपने जमा के खाते को बढ़ायें।

देखा गया है कि व्यर्थ इसलिए चलता है क्योंकि हमारा पुण्य क्षीण हो गया है। इसलिए पुण्य करना ज़रूरी है। तो जितना कर्मणा सेवा हम करेंगे उतना कर्मणा सेवा करते-करते हमारा पुण्य अर्जित होना स्वाभाविक हो जाता है। जैसे-जैसे हम पुण्य अर्जित करेंगे हमारे खाते में जैसे-जैसे आता जायेगा, जमा होता जायेगा तो खुशी बढऩे लगेगी। हर घड़ी उत्सव मनाओ। हर घड़ी उत्साह में रहो। उसमें कितनी अच्छी बात बाबा ने कही कि जब आप उत्साह में रहते हो तो परिस्थिति आपके ऊपर वार नहीं कर सकती। बहुत गहराई की बात है कि कैसे परिस्थिति वार नहीं करती है! जब हम उत्साह में होते हैं अर्थात् हमारी फुल स्पिरिट होती है। एक हाई एनर्जी अपने अंदर होती है। जब हाई एनर्जी अंदर में है तो परिस्थिति जब आती है तो वो लॉ एनर्जी, हाई एनर्जी को इफेक्ट नहीं करती, इसलिए कर्मणा सेवा करते हुए हम अपने जमा के खाते को बढ़ायें। बाबा ने तीनों के माक्र्स को एक समान रखा है, बराबर रखा है- मन्सा-वाचा-कर्मणा। ये नहीं कर्मणा क ा कम है या मन्सा का अधिक है या वाचा का अधिक है, नहीं। उस समय मन्सा सेवा तो संभव नहीं है। जब व्यर्थ इतना चल रहा होता है तो तब हम कोई भी कर्मणा सेवा शुरू करते हैं और हमारा मन जब उसमें पिरोना शुरू होता है तो क्या होगा? अपने आप वो व्यर्थ समाप्त होगा। तो ये है फुलस्टॉप लगाने का पहला तरीका,मन को एक दिशा दो। अपने मन-वचन-कर्म को एक दिशा देना है।
दूसरी बात, फुलस्टॉप लगाना माना निश्चयबुद्धि बनना। किसमें निश्चयबुद्धि बनना है? ड्रामा। ड्रामा में हमारा जितना निश्चय हो और वो भी निश्चय क्या होना चाहिए? जो हो रहा है वो भी अच्छा, जो हुआ वो भी बहुत अच्छा, जो होने वाला है वो तो सबसे अच्छा, तो निश्चिंत हो जाना। तो फुलस्टॉप लगाना माना निश्चिंतता का अनुभव करना। जब समय कल्याणकारी है, बाप कल्याणकारी है, ड्रामा कल्याणकारी है तो हमारा अकल्याण करने की ताकत किसमें है? है किसमें? जब ये निश्चय हो जाता है तो भी एक सेकण्ड के अंदर फुलस्टॉप लग जाता है। तो मुख्य बात यही है कि या तो परिवर्तन करने की शक्ति हमारे अंदर आ जाये या दूसरी निश्चयबुद्धि बनकर निश्चिंत हो जाना कि कल्याण हुआ ही पड़ा है। क्रक्रवाह-वाहञ्जञ्ज के गीत गाना शुरू करें। क्रक्रवाह बाबा, वाह ड्रामा वाह, वाह रे मेरा भाग्य वाह!ञ्जञ्ज तो जितना क्रक्रवाह-वाहञ्जञ्ज के गीत गाते हैं उतना माना अपनी स्पिरिट को हाई करते हैं।
बाबा कहते हैं कि अगर क्रक्रवाह-वाहञ्जञ्ज नहीं भी होगा तो परिवर्तन होकर क्रक्रवाह-वाहञ्जञ्ज हो जायेगा। ये भगवान का वरदान है इसलिए क्रक्रवाह-वाहञ्जञ्ज के गीत ज़रूर गाना चाहिए। इसको कहते हैं फुलस्टॉप। कोई गाना गाता है तो अपने आप सारी दुनिया भुला हुआ है, है कि नहीं! उस गाने में वो कितना मग्न हो जाता है। जो सारी दुनिया भूल जाती है। ठीक इसी तरह जब हम भी क्रक्रवाह-वाहञ्जञ्ज के गीत गायेंगे तो दूसरा सब भूल जायेंगे। तो व्यर्थ समाप्त हो जायेगा और क्रक्रवाह-वाहञ्जञ्ज से हर चीज़ क्रक्रवाह-वाहञ्जञ्ज होने लगेंगी। तो निगेटिव को कमप्लीट हम पॉजि़टिव में चेंज कर दें। तो ये दूसरा तरीका है फुलस्टॉप लगाने का। फिर देखो कैसे परिवर्तन होता है!

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