हमारी पढ़ाई का पहला पाठ – स्व का दर्शन

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जब बाबा की याद में बैठो तो चारों ओर से न्यारे हो जाओ। बुद्धि से ऊपर उठ जाओ। बाबा के सामने शांति से बैठ जाओ। तो आप आनंद स्वरूप होकर वापस आयेंगे। आत्मा फ्रेश हो जाती है।

मेरा अपना और आप सबका भी ये अनुभव तो होगा कि ज्ञान में आते ही बाबा के ज्ञान से 50 प्रतिशत बातें तो खत्म हो गईं। है ना सबका अनुभव! अब पहले जैसी अवस्था तो नहीं बिगड़ती है ना! पहले अवस्था बिगड़ती थी तो रजाई ओढ़कर सो जाते थे। मूड ऑफ हो गया। अब तो शक्तिशाली बनते जा रहे हैं ना! अब स्थिति नहीं बिगाडऩी है। हम ज्ञान का स्वरूप बनें। बाबा की याद से हमें इतना सुख मिलता है, आनंद मिलता है कि फिर हमें और छोटी-मोटी, तेरी-मेरी, मैं-तू, मान-शान की कोई इच्छा ही नहीं रहती। क्योंकि बाबा की याद से ही कितना सुख मिलता है। लेकिन ब्राह्मण बनने के बाद भी तो कितनी बातें आती हैं! अगर हम सावधान न रहें तो हमारे में भी तो कितनी बातें आ जाती हैं। पहले दुनियावी पोस्ट, पोजीशन, धन, रूप, बुद्धि का अभिमान होता था। अब वो नहीं है। पर अब किसी को ज्ञान का अभिमान है, मैं ही अच्छी तरह समझाता हूँ, किसी को योग का अभिमान होता है, किसी को सेवा का अभिमान होता है, सहयोग का अभिमान होता है। पर योगी बनना माना इस दुनिया से न्यारा और बाबा का प्यारा। तो हमें फीलिंग नहीं आयेगी। चलो किसी ने मान नहीं दिया, सेवा का चांस नहीं दिया, फीलिंग नहीं आयेगी। क्योंकि हम अपने स्वमान में हैं, ऊँचे हैं, खुद भगवान हमें इतना प्यार कर रहा है। तो जितने हम योगी बनेंगे, हमारा संगठन कितना भी बड़ा बन जाये, बड़ा संगठन है तो बड़ी बातें हैं। घर में चार रहेंगे तो कम बातें आयेंगी, अब इतना बड़ा परिवार है तो सोचो दादियों के सामने कितनी बातें आती होंगी! पर जब एक बार स्वीकार कर लिया कि बाबा के बच्चे हैं, हमें मिलकर सेवा करनी है, हमें मिलकर पुरुषार्थ करना है, तो ये छोटी-मोटी संस्कार-स्वभाव की बातें असर नहीं करती हैं। मुझे हलचल का कारण नहीं बनना है, ये पक्का कर लो। मेरे कारण यज्ञ में कोई विघ्न नहीं आना चाहिए। हमें यज्ञ का रक्षक बनना है। यज्ञ को विभाजित नहीं करना है। भगवान ने परिवार बनाया है, हमें तोडऩे के लिए निमित्त नहीं बनना है। यज्ञ शांति के लिए है, यज्ञ पवित्रता के लिए है, यज्ञ विश्व कल्याण के लिए है। यज्ञ माना क्या, ये मकान थोड़े ही, यज्ञ माना हम सभी। हम जीवंत यज्ञ हैं। हमें बाबा के यज्ञ को अखंड, अमर रखना है। जो हम सहयोग कर सकते हैं, हम करें। खुशी से करें, निर्संकल्प होकर करें। बाबा ने कहा है, जो बच्चे समय पर… कौन-सा समय? जब भगवान को हमारे साथ की आवश्यकता है, संगम का समय। इस समय पर भगवान को एक धक से, निर्संकल्प होकर, जो बाबा के मददगार बनते हैं, उनको बाबा अंत तक मदद देने के लिए बंधा हुआ है, और ये सत्य है। इसलिए कितना भी बड़ा संगठन हो, कितने भी वैरायटी, नंबरवार भाई-बहनें हैं, लेकिन एक अटेंशन अगर आपको अपनी स्थिति पर है तो दूसरों के लिए चिंतन नहीं चलेगा। ये ऐसा है, वैसा है, कैसा है, टेढ़ा है, बांका है, जो भी है, जब हम ये सोचते हैं, उस समय हम भूल जाते हैं कि मैं भी कैसी हूँ या कैसा हूँ! मैं भी तो परफेक्ट नहीं हूँ। मेरे में भी तो कमियां हैं। तो जब दूसरों के लिए ऐसा सोचते हैं, मतलब खुद पर अटेंशन नहीं है।
हमारी पढ़ाई का पहला पाठ कौन-सा है? खुद पर ध्यान दो, क्रस्वञ्ज दर्शन करो। पहला पाठ ही बाबा ने ये सिखाया। इसलिए रोज़ अच्छी तरह मुरली की स्टडी करो। बहुत अच्छी तरह बाबा की याद में बैठो। योग में बैठना माना चारों ओर से बुद्धि सिमट जाये। बाबा ने कहा ना, एकरस। कई कहते हैं ना, योग में दो मिनट ऊपर जाते हैं, फिर हम नीचे आ जाते हैं। घड़ी-घड़ी बुद्धि इधर-उधर जाती है। क्योंकि हम डिटैच नहीं हुए, न्यारे नहीं हुए। जब बाबा की याद में बैठो तो चारों ओर से न्यारे हो जाओ। बुद्धि से ऊपर उठ जाओ। बाबा के सामने शांति से बैठ जाओ। तो आप आनंद स्वरूप होकर वापस आयेंगे। आत्मा फ्रेश हो जाती है। पर बाबा के सामने भी शांति से नहीं बैठ पाते हैं क्योंकि दुनिया भर की पंचायत बुद्धि में भरी हुई है। इसलिए अपने को डिटैच नहीं कर पाते। ऊपर गये ही नहीं बाबा के पास, बुद्धि के विमान से यहाँ ही घूमते रहते हैं। इसलिए लाल लाइट से सफेद लाइट होते ही हिलने लगते हैं इधर-उधर। क्योंकि बाबा के सामने प्यार से बैठे ही नहीं। तो जितना ज्ञान-योग क्वालिटी करेंगे, कोई हलचल नहीं आयेगी। फिर वो लौकिक वाले हों, अलौकिक वाले हों, नौकरी धंधे की बातें हों या शरीर की बातें हों, कोई नहीं हिलायेगा।

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