स्मृति से संसार का परिवर्तन

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हमेशा ही मनुष्य को स्मृति रहती है। एक स्मृति है जो चेतना में रहती ,दूसरी स्मृति है जो संस्कार के रूप में होती है, जो अर्धचेतन या अचेतन मन में होती है। इन स्मृतियों को काटने के लिए बाबा ने हमें नयी स्मृति दी, श्रेष्ठ स्मृति दी, पॉजि़टिव स्मृति दी। स्मृति को काटने के लिए दूसरी स्मृति दी, उसी का नाम क्रयोगञ्ज है।

संस्कार मनुष्य को कैसे प्रभावित करता है? संस्कार प्रभावित करता है दृष्टि और वृत्ति के रूप में। संस्कार गुप्त चीज़ है, हमें पता ही नहीं पड़ता कि वह कैसे प्रभावित करता है। हम किसी व्यक्ति को वैसी दृष्टि से देखेंगे जैसा हमारा संस्कार होगा। किसी का काम वाला संस्कार होगा तो उसके नेत्रों को संस्कार कामाधीन कर देगा। वह देखेगा तो देह को देखेगा, देह की तरफ आकर्षित होगा। उसकी वृत्ति वासना वृत्ति हो जायेगी, काम वृत्ति हो जायेगी। क्रोधी की क्रोध वृत्ति हो जायेगी और लोभी की लोभ वृत्ति हो जायेगी। इस प्रकार संस्कार दो तरीके से प्रभावित करता है, एक दृष्टि और दूसरी वृत्ति। संस्कार है क्या चीज़? संस्कार है एक गुप्त स्मृति। संस्कार वो स्मृति है जो पहले किये गये कर्मों से जुड़ी है। एक बार किया, दुबारा किया, तिबारा किया और उसकी स्मृति को हम समाते गयेे। उसको रिफ्लेक्स एक्शन(प्रतिक्षेप क्रिया) कहते हैं। जैसे हम साइकिल चलाना सीखते हैं। उसका संतुलन रखने का ध्यान देेते हैं। पहले एक बार चलाते हैं, फिर चलाते हैं, रोज़ चलाना शुरू करते हैं। आखिर वह हमारी स्मृति में बैठ जाता है कि साइकिल कैसे चलाना है। फिर उसको याद करने की हमें ज़रूरत नहीं पड़ती। साइकिल पर बैठने से ही, अपने आप पाँव चलाना शुरू कर देेते हैं, हाथ हैण्डल घुमाना शुरू करते हैं। संस्कार ऐसा बन गया कि जो काम हम बार-बार करते रहे, उसकी स्मृति हमारी चेतना या अर्ध चेतना में नहीं है, फिर भी वह स्मृति में है गुप्त रूप में। वह हमारे ध्यान से ओझल है, फिर भी है, हमारी दृष्टि और वृत्ति को प्रभावित करता है। जब तक उसको आप ठीक नहीं करेंगे तब तक आप ठीक नहीं होंगे। उसके लिए बाबा ने हमें क्या तरीका बताया? बाबा ने हमें विचार दिया कि कौन-सा संकल्प-संस्कार अच्छा है, कौन-सा खराब है और संस्कारों को बदलना क्यों ज़रूरी है। इस चीज़ का हमें पता चल गया।

स्मृति में है बहुत बड़ी शक्ति
स्मृति के बगैर कोई भी काम संसार में नहीं हो सकता। कोई भी व्यक्ति नहीं है जिसको कोई स्मृति नहीं है जब तक कि वह मर न जाये। डॉक्टर्स कहते हैं कि यह मूर्छित है लेकिन फिर भी अन्दर कुछ न कुछ चलता रहा है। उस स्मृति की अभिव्यक्ति बाहर नहीं होती। नींद में भी मनुष्य को स्मृति होती है, यहाँ तक कि वह सपने देखता रहता है। स्वप्न में भी उसको अनेक प्रकार की स्मृतियाँ आती हैं इस जन्म की और पूर्व जन्म की। दोनों स्मृतियों के मिश्रण से मदारी के खेल जैसा स्वप्न उसको आता रहता है। हमेशा ही मनुष्य को स्मृति रहती है। एक स्मृति है जो चेतना में रहती ,दूसरी स्मृति है जो संस्कार के रूप में होती है, जो अर्धचेतन या अचेतन मन में होती है। इन स्मृतियों को काटने के लिए बाबा ने हमें नयी स्मृति दी, श्रेष्ठ स्मृति दी, पॉजि़टिव स्मृति दी। स्मृति को काटने के लिए दूसरी स्मृति दी, उसी का नाम क्रयोगञ्ज है। लोग योग के नाम पर एकाग्रता करने लगे, प्राणायाम, हठयोग करने लगे। उससे कोई जीवन परिवर्तित नहीं हुआ। शरीर ठीक हुआ, चलो अच्छी बात है लेकिन विश्व परिवर्तन की जो बात है, वह हुई नहीं। उससे न अच्छे विचार मिले, न अच्छी स्मृति मिली। बाबा ने हमें यह चीज़ दी कि स्मृति में स्थित रहना ही क्रयोगञ्ज है। योग की कितनी ही किताबें उठाकार आप देख लीजिये। किसी ने भी नहीं कहा है कि क्रस्मृति में स्थित रहना ही योग हैञ्ज। बाबा ने योग की जो व्याख्या दी है, यह दुनिया में अनुपम है, बेमिसाल है।
स्मृति में इतनी बड़ी शक्ति है कि संस्कार में क्रान्ति ला सकते हैं। लोगों ने दुनिया में क्रान्ति लाने की कोशिश की। गोल्डन रेवोलूशन, ग्रीन रेवोलूशन, व्हाइट रेवोलूशन इत्यादि। लेकिन उससे क्या हुआ? संसार में परिवर्तन आया? समाज में सुधार हुआ? क्रान्ति होनी चाहिए मनुष्य का व्यवहार बदलने की, मनुष्य के संस्कार बदलने की, मनुष्य की स्मृति बदलने की। तब जाकर संसार बदलेगा, विश्व में सुख और शांति आयेगी। स्मृति से विश्व में परिवर्तन आ सकता है। बिना स्मृति कोई कुछ कर ही नहीं सकता। बाबा की शिक्षा हमारे संग रहे इसका अर्थ क्या है? बाबा की शिक्षाओं की स्मृति हमें रहे। स्मृति हमारी कितनी बड़ी शक्ति है!

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