व्यर्थ के कारणों को अच्छी तरह समझें…!

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ज्ञान का भंडार अपने पास हो हमें अपने पर विजय पानी है। अब समय है… जो नये भी बाबा के बच्चे आ रहे हैं, उनको भी सीखना है कि व्यर्थ को जल्दी से जल्दी कम करें, खत्म करें। अपनी जाँच करें। देखो, व्यर्थ ऐसे खत्म नहीं होता कि मुझे व्यर्थ नहीं सोचना है, मुझे व्यर्थ को कंट्रोल करना है, ये तो सभी सोचते हैं। व्यर्थ खत्म होगा… लेकिन मुझे किस कारण से व्यर्थ चलता है… उसको पकड़ लें ज़रा। किसी एक्सपेक्टेशन के कारण, कामना के कारण, किसी व्यर्थ की इच्छा के कारण, किसी अपने बुरे संस्कार के कारण, किसी के व्यवहार के कारण, काम गलत हो जाने के कारण, सफलता न मिलने के कारण और भी ऐसे बीस कारण हो सकते हैं। उस कारण का जब तक पता नहीं चलेगा तब तक हम व्यर्थ से बचेंगे नहीं। और कारण को जानकर हमें करना क्या है, उस एक चीज़ को खत्म करने के लिए, क्योंकि ऐसा नहीं है कि सबके पास बीस बातें हों। एक-दो बात ही होती हैं व्यर्थ की। बच्चा मानता नहीं है, बुरा व्यवहार करता है, इनसल्ट कर रहा है, पढ़ाई पर या काम पर ध्यान नहीं दे रहा है…। संकल्प चलते हैं बहुत।
अब इसमें ज्ञान की किन बातों का प्रयोग करें, वो ज्ञान का भंडार हमारे पास होना चाहिए। जिसकी हमने चर्चा की कि पच्चीस सुंदर प्वाइंट आप नोट करें और ऐसी परिस्थिति जिसमें हमारे व्यर्थ संकल्प ज्य़ादातर दूसरों के कारण चल रहे हों, भले बच्चों के, परिवार के, ऐसे में उन्हें भी वायब्रेशन्स देकर ठीक किया जा सकता है और अपने को भी। क्योंकि ये चीज़ जबरदस्ती करने वाली नहीं है कि बच्चा आपकी बात मानेगा ही। वो भारतीय महान कल्चर अब लोप हो चुकी है। अब तो बच्चों की बात बड़ों को माननी पड़ रही है। खेल बदल गया है। इसलिए व्यर्थ को खत्म करने के लिए ज्ञान का बल, योग का बल, सोचने का तरीका बदलते चलें।

आपकी पवित्रता निगेटिविटी को समाप्त करेगी हमारा एक-एक संकल्प, यदि वो निगेटिव है तो निगेटिव प्रभाव डालेगा। यदि वो पॉजि़टिव है तो बहुत जल्दी बातों को ठीक कर देगा। तो सभी को मुक्त होना है ईष्र्या-द्वेष से। बाबा ने मुरलियों में कई बार कहा है, अपने को मुक्त करो तो मुक्तिधाम का गेट खुले। अपने को मुक्त करो तो तुम बहुतों को व्यर्थ से मुक्त कर पाओगे। हम विजयी बनें ईष्र्या-द्वेष पर, नफरत और वैरभाव पर, तेरे और मेरे पर, व्यर्थ के छोटे-छोटे विचारों पर। हमें स्वयं को ये सब चीज़ें सोचनी हैं। उसपर बहुत अच्छा चिंतन करके, ज्ञान के बल से अपनी प्युरिटी को बढ़ाना है, नहीं तो क्या हो रहा है बहुतों के साथ, प्युरिटी बहुत अच्छी, लेकिन और बातों के कारण व्यर्थ संकल्पों के तूफान, मैं-मेरे के कारण, ईष्र्या-द्वेष के कारण, परचिंतन-परदर्शन के कारण।

पवित्रता को शक्ति बनायें पुराने अच्छे पुरुषार्थी भाई-बहनों ने तो ये बात अच्छी तरह जानी और समझी है, लेकिन नये भी जान लें, अगर प्युरिटी अपनाने के बाद व्यर्थ संकल्प किसी भी कारण से बहुत चलते हैं तो प्युरिटी भी कमज़ोर पड़ती है। प्युरिटी हमारी शक्ति नहीं बनेगी। प्युरिटी का तेज मस्तक पर नहीं आयेगा। प्युरिटी का प्रभाव परिवार पर दिखाई नहीं देगा। नहीं तो याद रखेंगे, जिस घर में एक पवित्र आत्मा हो, बहुत अच्छी पवित्र आत्मा, उनके पवित्र वायब्रेशन्स उनके पूरे घर के लिए बहुत बड़ा सहारा बन जाते हैं। तो गृहस्थ में रहने वाले सभी भाई-बहनें अपने समर्पण भाव को आगे बढ़ायें।

बाबा को परिवार का हेड बना लें बाबा को भी साथ लें अपने परिवारों में। कभी बाबा ने सिखाया था बहुत पहले, बाबा को अपने परिवार का हेड बना लो। बाबा को हेड बनायेंगे तो सारे हेडेक खत्म हो जायेंगे। जो हेड होगा उसे ही न चिंता होगी परिवार की! तो सभी आज ही कर देंगे अभी, बाबा को परिवार का हेड। मैं हेड नहीं, मैं हेड होउंगा तो हेडेक मुझे होगी, बाबा को होने दो ना हेडेक! उसको होता ही नहीं। वो तो सारे संसार को पल भर में संभालने वाला है। तो हम मुरलियों का बहुत अच्छा चिंतन करेंगे। हमें याद रहे, भगवान के वचनों में वही वायब्रेशन्स चाहे वो सौ साल बाद सुने जायें सदा रहेंगे। आप लौकिक गीता की बात देख लो, उसमें तो गड़बड़ भी बहुत है, लेकिन उसको पढऩे से भी मनुष्य के वायब्रेशन्स बहुत अलौकिक होने लगते हैं। केवल पढऩे से!
यहाँ तो भगवान के डायरेक्ट महावाक्य हैं। उसके एक-एक शब्द के साथ उसके वायब्रेशन्स भी पूरी सभा में फैलते हैं। इसलिए ये मुरली भगवान की अपनी रूहों से रूह-रिहान है। ऐसे ही सुनेंगे। बाबा सामने बैठकर मुझ आत्मा से रूह-रिहान कर रहा है। बातें कर रहा है। ये सुख लेंगे बहुत। इस तरह बाबा की मुरलियाँ सुनते व पढ़ते वक्त बाबा से अंदर ही अंदर स्वयं को शक्तिशाली बनायेंगे। उनसे विजयश्री का तिलक लेंगे। अपने को किसी न किसी चिंता से, भय से, परेशानी से, व्यर्थ से, दु:खों से, जल्दी दु:खों की फीलिंग होने से मुक्त करेंगे।

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