मनुष्य को सबसे बड़ी देन है सद्बुद्धि

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स्व-परिवर्तन का कहो, विश्व परिवर्तन का कहो, सारा मदार स्मृति पर है। अगर स्मृति में हम पीछे रह गये या कमज़ोर रह गये, माना रह गये। न ज्ञान धारण होगा, न योग होगा और न दिव्यगुणों की धारणा होगी। इसलिए स्मृति-शक्ति और साथ-साथ उसकी धारणा-शक्ति चाहिए।

संसार में मनुष्य को सबसे बड़ी देन है सद्बुद्धि, श्रेष्ठ बुद्धि जिसको बाबा कहते हैं पारस बुद्धि। बुद्धि कितनी बड़ी कमाल की चीज़ है! बाबा ने हमारे योग का नाम क्या कहा है? बुद्धियोग। बुद्धि जिसकी विशाल है, बुद्धि जिसकी शिव बाबा के साथ है वही सच्चा योगी है। योगी की बुद्धि शक्तिशाली निर्णय करती है। किस समय क्या करना है, कितना करना है, कैसे करना है, उसका यह निर्णय यथार्थ होगा और शक्तिशाली होगा। ऐसा निर्णय तभी होगा जब उसमें गोल्डन थॉट्स होंगे। एक न्यायाधीश निर्णय कैसे करता है? फलाने-फलाने कानून के अनुसार फलानी-फलानी सज़ा। इस फलाने सेक्शन के अनुसार इसने कोई गलती नहीं की इसलिए इसको बरी किया जाये। निर्णय किसी कानून के अंतर्गत किया जाता है। लॉ के एप्लिकेशन का नाम ही जजमेंट(निर्णय) है। नियम ही पता नहीं होगा तो निर्णय क्या करोगे? निर्णय शक्ति आपकी उतनी बढ़ेगी जितनी आपकी ज्ञान की शक्ति बढ़ेगी, जितने बाबा के गोल्डन थॉट्स आप में हैं, उतना अच्छा निर्णय आपका होगा। बाबा की जितनी भी मुरली की प्वाइंट्स हैं, ये हमारी निर्णय शक्ति बढ़ाने के लिए हैं, हमारी बुद्धि को गोल्डन बनाने के लिए हैं। लॉ को आप नहीं जानेंगे तो गलत निर्णय कर बैठेंगे। श्रीमत पूरी नहीं जानेंगे तो गलत इच्छायें आ जायेंगी। गलत रास्ते पर चले जायेंगे। गलत कर्म हो जायेंगे और फिर पछताते रहेंगे। निर्णय हमारा शक्तिशाली हो, स्थिर हो, श्रीमत पर आधारित हो, ज्ञान से पूण हो। कई लोग समझते हैं कि जो 8-10 नियम हैं वही श्रीमत है जैसे अमृतवेले उठना, मुरली क्लास करना इत्यादि। लेकिन इनके अलावा बाबा का हर महावाक्य श्रीमत है।
कई बार ज्ञान के बारे में निर्णय करने में लोग धोखा खा लेते हैं। कई सोचते हैं कि यह बात साकार बाबा ने कही है या निराकार बाबा ने कही है? हम मानते हैं कि शिव बाबा ही पढ़ाता है, कलियुग का अंत होनेे वाला है। मुझे याद है, साकार बाबा के साथ जब हम रहते थे, हमने देखा है कि कितने लोग धोखा खा गये! हमारे सामने जो मुरली चल रही है, यह साकार बाबा चला रहा है या निराकार बाबा चला रहा है— यह निर्णय करने में ही वे लोग धोखा खा गये। शिवबाबा भी बोलते हैं कि साकार को देख संशय में नहीं आना। अगर साकार से कोई गलती हो गयी, उसके लिए मैं जि़म्मेवार हूँ। साकार से गलती होगी ही नहीं क्योंकि वो तो जो भी करेंगे, शिव बाबा की श्रीमत अनुसार ही करेंगे ना! चलो, अगर हो भी गयी, गणित में कहते हैं सुपोज़, उसके लिए मैं जि़म्मेदार हूँ, उसको मैं ठीक कर देता हँू। क्योंकि यह मेरा निमित्त माध्यम है। साकार को देख यह नहीं समझना, यह भी हमारे जैसा देहधारी है। इनके अंदर बैठकर मैं सुनाता हूँ, मैं डायरेक्शन देता हूँ। इसलिए आप यह मानकर चलें कि यह डायरेक्शन शिव बाबा ने ही दिया है, इनके द्वारा ही तुम बच्चों का कल्याण है। उन्होंने बाबा की यह बात नहीं मानी, तो धोखा खा गये और वे सारे खत्म हो गये। इसलिए मैं यह कहता हँू कि रोज़ हम जो भी मुरली सुनते हैं, वो सारे हमारे लिए लॉ हैं। इसलिए बाबा कहते हैं, अपने आप निर्णय करो, जज बनो। जब सारी बातें हम सुनेंगे तब तो ठीक निर्णय कर पायेंगे ना! यह है हमारी निर्णय शक्ति।
उसी प्रकार है हमारी स्मृति-शक्ति। इसको लोग स्मरण-शक्ति कहते हैं। हमारा पुरूषार्थ यही है कि सदा हमारी ईश्वरीय स्मृति बनी रहे। स्मृति पारे की तरह खिसकती रहती है। यह बनी रहे एकरस। मैंने पहले भी बताया है कि स्व-परिवर्तन का कहो, विश्व परिवर्तन का कहो, सारा मदार स्मृति पर है। अगर स्मृति में हम पीछे रह गये या कमज़ोर रह गये, माना रह गये। न ज्ञान धारण होगा, न योग होगा और न दिव्यगुणों की धारणा होगी। इसलिए स्मृति-शक्ति और साथ-साथ उसकी धारणा-शक्ति चाहिए। आपने देखा होगा कि कइयों में धारणा-शक्ति नहीं होती है। ज्ञान बहुत लेंगे लेकिन धारणा नहीं कर सकेंगे। हमें यह समझना चाहिए कि धारणा भी एक शक्ति है। यह बहुत बड़ी आध्यात्मिक शक्ति है। इससे हमें विश्व का राज्य-अधिकार मिल जाता है। योग बल से, पवित्रता के बल से और आध्यात्मिक वाणी के बल से।

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