बाबा के यज्ञ का मंत्र – त्याग, तपस्या और सेवा
जो भी सेवा करें हम वो हमें शुद्ध भाव से करनी है। थोड़ा भी स्वार्थ रखेंगे तो बातें आती हैं। नि:स्वार्थ, शुद्ध भाव से सेवा करो। पता है ना, सत्कर्म का फल मिलना ही है। भगवान के यज्ञ की सेवा कर रहे हैं। एक समझदार इंसान भी किसी का कुछ लेता है तो जल्दी वापस करने का सोचता है। समझदार व्यक्ति किसी का लेकर रख नहीं लेता है। बाबा हमारा लेकर रखेगा क्या? वो तो पदमगुणा रिटर्न कर रहा है। एक का पदमगुणा बाबा देते हैं। तो वो तो मिलना ही है ना हमें। अच्छे का अच्छा मिलना ही है। आत्माओं से हम इच्छा क्यों रखें! हम आत्माओं से इच्छा रखते हैं। दीदी ने मान नहीं दिया, फलाना आगे आ गया। नहीं, कोई भी आ गया, जाने दो। हम हैं ही महान। बाबा के यज्ञ का मंत्र है, त्याग, तपस्या और सेवा। ये समय है त्याग का, सेवा का, तपस्या का। आत्म-अभिमानी बनने की तपस्या करो। एक बाबा दूसरा न कोई, ये तपस्या करनी है। कर्मेन्द्रियों से अब मुझे कोई भी विकर्म नहीं करना है। ये दृढ़ता अपने में करो। ये तपस्या है।
जब बहुत लम्बे समय तक साधना करते हैं, दृढ़तापूर्वक, लक्ष्यपूर्वक तब उसको तपस्या कहा जाता है। लक्ष्य क्या है? मुझे पूर्ण शुद्ध आत्मा बनना है। विकार का कोई अंश मेरे में न रहे, ये साधना है। ये समय अंत का समय है। महापरिवर्तन का समय है। प्रकृति की भी बातें आयेंगी, मानव की भी बातें आयेंगी। हम इस दुनिया के बीच में हैं तो सभी बातें आयेंगी। पर निश्चय हो, बाबा हमारा रक्षक है, बाबा हमारा साथी है। बाबा कहानी बताते हैं ना मुरली में कि भी में बिल्ली के बच्चे कैसे बच गये…! हम तो बाबा के बच्चे हैं! जो बाबा की श्रीमत पर चलता है, वो सही सलामत है। हमारे अपने हिसाब-किताब से कुछ नुकसान भी हुआ तो हमारे वर्तमान कर्म अच्छे हैं तो हमारे में सहनशक्ति भी आयेगी, हिम्मत भी आयेगी, हम उस परिस्थिति को पार कर लेंगे। ऐसा नहीं, उस समय बुद्धि उलटी हो जाये कि बाबा ने मदद ही नहीं की। मैं बाबा का बना, तो भी मेरा नुकसान हुआ। हम बाबा के बने, तो अच्छी बात है ना! कोई उपकार कर दिया क्या बाबा पर कि हम आपके बने तो आप हमारे पाप नष्ट कर दो, हिसाब-किताब खत्म कर दो। ऐसे थोड़े ही है!
कहते हैं ना, एक द्वार बंद होता है तो दूसरे दस द्वार खुलते हैं। हमें अपने भाग्य में विश्वास है। कोरोना में हुआ ना, कइयों की नौकरी चली गई, कइयों के धंधे ठप्प हो गये। पर जिन्होंने हिम्मत रखी, श्रीमत को नहीं छोड़ा, और अपनी तरफ से मेहनत करते रहे, फिर उठ गये। तो बातें आती हैं, पर हम पक्का रहें कि हमारा भाग्य और हमारा भगवान हमारे साथ है। सबकुछ गंवाने के बाद भी भाग्य और भगवान तो साथ ही रहते हैं ना! फिर से मेहनत करें, कोई भी छोटा-मोटा धंधा-नौकरी करें। इसमें कोई देह-अभिमान की बात नहीं है।
कोरोना में एक बहुत बड़ा ज्वैलर भाई, बाबा का बच्चा, कमाई नहीं रही तो उन्होंने सब्जी बेचना शुरु किया अपनी सोसायटी में। और फिर एक-दो और भी साथी बन गये। गांव से होलसेल सब्जी लाकर बेचने लगे। फिर उठ गये, फिर कमाने लगे। हमें पाप करने में शर्म करना है, मेहनत करने में नहीं। ईमानदारी से जो कुछ हम कर सकते हैं, वो मेहनत हमें करनी है। इसलिए ऐसा नहीं कि बाबा ने हमें मदद नहीं की, बाबा तो है ही सदा कल्याणकारी। मदद करने के लिए ही तो आया है। बाबा कहते हैं ना कि मैं किसलिए आया हूँ…! मुझे अचल रहना है बस। अवस्था नहीं बिगाडऩी है। तो ये है ज्ञान की शक्ति, योग की शक्ति और एक बल एक भरोसा। बाबा मदद करे तो अच्छा और न करे तो…! हम बाबा से ऐसी इच्छा क्यों रखें! वो कर ही रहा है। उसने पूरे खज़ाने हमें दे दिए हैं। ऐसा सत्य ज्ञान न होने के कारण पूरी दुनिया भटक रही है। आज हम ठिकाने पर लग गये हैं। लक्ष्य में आ गये हैं। अच्छे पुरुषार्थ में आ गये। ये तो पढ़ाई चल रही है ना! अंत तक पढ़ते रहना है। बाबा की याद में रहना है। निश्चय, नशा सदा बना रहे।