मुख पृष्ठदादी जीदादी प्रकाशमणि जीबाबा की आकर्षण तब हो जब बाहर की बातों से अन्तर्मुख हों...

बाबा की आकर्षण तब हो जब बाहर की बातों से अन्तर्मुख हों…

ज्ञान हमारी पढ़ाई है, जिस पढ़ाई को बुद्धि में धारण करना है और जितनी ज्ञान की गहरी प्वाइन्ट्स बुद्धि में धारण होंगी उतना ही बुद्धि फिर दिल से बाबा के शुक्रिया का गीत गायेगी।

सेकण्ड में इस देह की स्मृति से परे जा सकते हो? क्योंकि हम राजयोगियों का जो अपने इस योग का अनुभव है- वो है यहाँ बैठे-बैठे सेकण्ड में अपने वतन में उड़कर पहुंच जायें। जब संदेशियां उड़कर जा सकती, वह तो ट्रान्स है। हम बुद्धिबल से अपने फरिश्तों की अव्यक्त दुनिया में बाबा से मिलन मनाने उड़ जाएं। इस शरीर में अशरीरी न्यारे बन, उसी फरिश्तों की दुनिया में, लाइट की दुनिया में अव्यक्त बाबा के सामने मिलन मनायें, तो इस जैसा अतीन्द्रिय सुख कोई नहीं है। यह दिल के अनुभव का गीत वही गा सकते जो इसकी प्रैक्टिस करते और बराबर उस परम आनन्द का अनुभव करते हैं।
गोपियों का जो अतीन्द्रिय सुख गाया हुआ है, वह प्रैक्टिकल में हम राजयोगियों के सुख का ही गायन है। जितना इस देह से न्यारे बन आत्मा निश्चय कर बाबा से मिलन मनाते हैं तो इस मिलन से बाबा सर्वशक्तियां भर देता, जिसको ही तपस्या कहा जाता है। यही राजयोग है। इसका निरन्तर अभ्यास चाहिए, भ_ी चाहिए।
हमने देखा है जिनको इस याद का, योग का अनुभव है, उनकी बुद्धि सहज ही दुनिया की सर्व बातों से हट जाती है और ऐसी प्रैक्टिस करने वालों की दृष्टि में शक्ति रहती है क्योंकि वृत्ति में एक बाबा ही रहता है। स्वयं को बाबा के साथ कम्बाइंड देखते। जब तक इस योग की अनुभूति गहरी नहीं करेंगे तब तक शक्तियां नहीं मिलेंगी। जो भी पॉवर्स हैं वो इस योग साधना से मिलती हैं। इस साधना से माया पर विजयी बन सकते हैं।
ज्ञान हमारी पढ़ाई है, जिस पढ़ाई को बुद्धि में धारण करना है और जितनी ज्ञान की गहरी प्वाइन्ट्स बुद्धि में धारण होंगी उतना ही बुद्धि फिर दिल से बाबा के शुक्रिया का गीत गायेगी। और जितना याद की यात्रा करेंगे उतना अपने को वरदानों से भरपूर अनुभव करेंगे क्योंकि यह याद ही हमें वरदाता बाप से वरदान दिलाती, इसी से समीप हो जाते हैं। फिर दिल से गीत निकलता बाबा आपको पाकर हमने तो जहान पा लिया। ऐसी लगन वाले ही सच्चे आशिक बन माशुक की याद में रहते हैं।
निराकारी दुनिया तो परमधाम है लेकिन अव्यक्त वतन, सूक्ष्मवतन यह हमारे संगम की विशेषता है। उसका हरेक को अनुभव चाहिए, जहाँ से बाबा हमें मिलने आते हैं। तो इसके लिए जितनी-जितनी बुद्धि बाहर की बातों से अन्तर्मुख होगी, उतना ही बाबा की आकर्षण रहेगी। सचमुच हमें भगवान की आकर्षण हो रही है- यह अनुभव होना चाहिए। जैसे कई बार बाबा कहते कि बांधेलियों को बाबा से मिलने की आकर्षण होती कि कहाँ छुट्टी मिले तो हम बाबा से, भगवान से मिलने के लिए भागूँ। जैसे दु:ख में सिमरण सब करें वैसे बांधेलियों पर बन्धन हैं तो वह जास्ती याद करती हैं, आप लोग छुटेले हैं तो मस्त रहते हैं। अच्छा है, मौज है, मस्त रहते यह भले अच्छा है लेकिन लगन एक अलग चीज़ है। वह ऐसी लगन होती जो रात को नींद उड़ जाती और मन कहता बाबा के पास जाके बाबा से रूहरिहान करते रहें। यही है रूहानियत की यात्रा। तो सदा ऐसी रूहानी यात्रा की रूचि रख बाबा से मिलन की अनुभूति करनी और करानी है।

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