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कफ दोष को संतुलित कैसेे किया जाये…

आयुर्वेद में बताया गया है कि हर एक इंसान की एक खास प्रकृति होती है। अधिकांश लोगों को अपनी प्रकृति के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं होता है। जबकि आप अपनी आदतों और स्वभाव के आधार पर बहुत आसानी से अपनी प्रकृति जान सकते हैं। जैसे कि किसी काम को शुरू करने में आप बहुत देरी करते हैं या आपकी चाल बहुत धीमी और गंभीर है तो यह दर्शाता है कि आप कफ प्रकृति के हैं। अब हम आपको कफ प्रकृति के लक्षणों, इससे जुड़े रोगों और उपायों के बारे में विस्तार से बता रहे हैं।

कफ दोष क्या है?
कफ दोष ‘पृथ्वी’ और ‘जल’ इन दो तत्वों से मिलकर बना है। ‘पृथ्वी’ के कारण कफ दोष में स्थिरता और भारीपन और ‘जल’ के कारण तैलीय और चिकनाई वाले गुण होते हैं। यह दोष शरीर की मजबूती और इम्युनिटी क्षमता बढ़ाने में सहायक है। कफ दोष का शरीर में मुख्य स्थान पेट और छाती हैं।
कफ शरीर को पोषण देने के अलावा बाकी दोनों दोषों(वात और पित्त) को भी नियंत्रित करता है। इसकी कमी होने पर ये दोनों दोष अपने आप ही बढ़ जाते हैं। इसलिए शरीर में कफ का संतुलित अवस्था में रहना बहुत ज़रूरी है।

कफ प्रकृति की विशेषताएं
कफ दोष के गुणों के आधार पर ही कफ प्रकृति के लक्षण नज़र आते हैं। हर एक दोष का अपना एक विशिष्ट प्रभाव है। जैसे कि भारीपन के कारण ही कफ प्रकृति वाले लोगों की चाल धीमी होती है। शीतलता गुण के कारण उन्हें भूख, प्यास, गर्मी कम लगती है। और पसीना कम निकलता है। कोमलता और चिकनाई के कारण पित्त प्रकृति वाले लोग गोरे और सुन्दर होते हैं। किसी भी काम को शुरू करने में देरी या आलस आना, स्थिरता वाले गुण के कारण होता है।

कफ बढऩे के कारण
मार्च-अप्रैल के महीने में, सुबह के समय, खाना खाने के बाद और छोटे बच्चों में कफ स्वाभाविक रूप से ही बढ़ा हुआ रहता है। इसलिए इस समय में विशेष ख्याल रखना चाहिए। इसके अलावा खानपान, आदतों और स्वभाव की वजह से भी कफ असंतुलित हो जाता है।
आइये जानते हैं कि शरीर में कफ दोष बढऩे के मुख्य कारण क्या हैं…
मीठे, खट्टे और चिकनाई युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन।
मांस-मछली का अधिक सेवन।
तिल से बनी चीज़ें, गन्ना, दूध, नमक का अधिक सेवन।
फ्रिज़ का ठंडा पानी पीना।
आलसी स्वभाव और रोज़ाना व्यायाम ना करना।
दूध-दही, घी, तिल-उड़द की खिचड़ी, सिंघाड़ा, नारियल, कद्दूआदि का सेवन।

कफ बढ़ जाने के लक्षण
हमेशा सुस्ती रहना, ज्य़ादा नींद आना।
शरीर में भारीपन।
मल-मूत्र और पसीने में चिपचिपापन।
शरीर में गीलापन महसूस होना।
शरीर में लेप लगा हुआ महसूस होना।
आँखों और नाक से अधिक गंदगी का स्राव।
अंगों में ढीलापन।
सांस की तकलीफ।
डिप्रेशन।

कफ को संतुलित करने केलिए क्या खाएं
कफ प्रकृति वाले लोगों को इन चीज़ों का सेवन करना ज्य़ादा फायदेमंद रहता है।
बाजरा, मक्का, गेंहू, किनोवा ब्राउन राइस, राई आदि अनाजों का सेवन करें।
सब्जियों में पालक, पत्तागोभी, ब्रोकली, हरी सेम, शिमला मिर्च, मटर, आलू, मूली, चुकंदर आदि का सेवन करें।
जैतून के तेल और सरसों के तेल का उपयोग करें
छाछ और पनीर का सेवन करें
तीखे और गर्म खाद्य पदार्थों का सेवन करें
सभी तरह की दालों को अच्छे से पकाकर खाएं।
नमक का सेवन कम करें
पुराने शहद का उचित मात्रा में सेवन करें।

कफ प्रकृति वाले लोगों को क्या नहीं खाना चाहिए
मैदे और इससे बनी चीज़ों का सेवन ना करें।
एवोकैडो, खीरा, टमाटर, शकरकंद के सेवन से परहेज करें।
केला, खजूर, अंजीर, आम, तरबूज के सेवन से परहेज करें।

जीवनशैली में बदलाव
खानपान में बदलाव के साथ-साथ कफ को कम करने के लिए अपनी जीवनशैली में बदलाव लाना भी ज़रूरी है। तो आइये जानते हैं बढ़े हुए कफ दोष को कम करने के लिए क्या करना चाहिए…
पाउडर से सूखी मालिश या तेल से शरीर की मसाज करें।
गुनगुने पानी से नहायें।
रोज़ाना कुछ देर धूप में टहलें।
रोज़ाना व्यायाम करें जैसे कि : दौडऩा, ऊंची व लम्बी कूद, कुश्ती, तेजी से टहलना, तैरना आदि।
गर्म कपड़ों का अधिक प्रयोग करें।
बहुत अधिक चिंता न करें।
ज्य़ादा आराम पसंद जि़ंदगी ना बिताएं बल्कि कुछ न कुछ करते रहें।

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