ईर्ष्या और नफरत क्या होती…!!!

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हमारे मंत्रों में तो पहली-पहली यही चीज़ें हैं ना! सभी निर्भय हो जायें, सबका कल्याण हो जाये, सब बहुत धनवान हो जायें, ऐसी दुनिया भी आने वाली है जिसमें सब धनवान हो जायेंगे। तो हमें ईष्र्या से जनित जो संकल्प होते हैं उससे अपने को बचाना है।

व्यर्थ संकल्प हमारी एनर्जी को नष्ट करते हैं, शांति पर आघात करते हैं, खुशियों पर ये प्रहार है, जो मनुष्य जितना अच्छा सोचता है वो स्वयं तो अच्छा बन ही जाता है। परंतु कार्य भी उसके अच्छे हो जाते हैं। सुचारू रूप से उसके काम-धंधे पूर्ण होते रहते हैं जैसे जो व्यक्ति शांत स्वभाव का है, जो व्यक्ति संतोषी है उसका भाग्य बहुत अच्छा होता जाता है। तो हम एक और चीज़ पर ध्यान दें कि कई मनुष्यों में बहुत ज्य़ादा संकल्प चलते हैं ईर्ष्या-द्वेष के, नफरत के। दो साथी हैं, थोड़े समान हैं, एक आगे बढ़ रहा है, दूसरे को ईर्ष्या होती है। इसे लोग क्यों आगे बढ़ा रहे हैं, मुझे क्यों नहीं? मैं भी तो योग्य हूँ। लेकिन एक सूक्ष्म दृष्टा मनुष्य को अपने को गहराई से देखना चाहिए। अगर दूसरा व्यक्ति आगे बढ़ रहा है तो ज़रूर उसमें कुछ विशेष योग्यता है। कोई-कोई किसी को आगे बढ़ाते भी हैं, किसी को चांस भी आगे बढ़ा देते हैं। कई लोग ऐेसे हैं चांस मिले तो अच्छा चिंतन हो जाता है, योग्यतायें बढ़ जाती हैं उनकी, और कुछ लोग ऐसे हैं जो अपनी योग्यताओं के आधार से अवसरों को प्राप्त करते हैं। हम ईर्ष्या-द्वेष की अग्नि में न जलें।
जो अच्छा कर रहा है उसकी महिमा किया करें, हम भी ऐसे ही कर पायेंगे, हमारी भी महिमा होने लगेगी। अवसर भी मनुष्य के सामने से रोज़ गुजरते हैं, लेकिन जो व्यक्ति दूसरों को देखने में लगा हुआ है, निगेटिव है वो अवसरों को देख ही नहीं पाता, अवसर उसके सामने से गुज़र जाते हैं बाद में उसे पता चलता है। इसलिए हमें न निगेटिव होना है, न व्यर्थ सोचना है। अपने को योग्य बनाते चलो, आगे बढ़ते चलो क्योंकि ईर्ष्या भी एक बहुत बड़ी अग्नि है जैसे काम, क्रोध की अग्नि है। जो हमारे अंदर की कई चीज़ों को जलाकर नष्ट कर देेती है, मनुष्य को उदास कर देती है। ईर्ष्या के शिकार तो वे होते हैं जिनके पास ज्ञान बहुत कम होता है। सब आगे बढ़ें, हमारे इस संसार में जो भगवान की रचना है सभी सुखी हो जायें, ये शुभभावना हमें रखनी है। देखिये हमारे मंत्रों में तो पहली-पहली यही चीज़ें हैं ना! सभी निर्भय हो जायें, सबका कल्याण हो जाये, सब बहुत धनवान हो जायें, ऐसी दुनिया भी आने वाली है जिसमें सब धनवान हो जायेंगे। तो हमें ईर्ष्या से जनित जो संकल्प होते हैं उससे अपने को बचाना है। जब हम भावनायें अच्छी रखते हैं तो एक-दूसरे के सुंदर वायब्रेशन्स भी हमें आगे बढऩे में बहुत मदद करते हैं।

दूसरा नफरत, संसार में तो नफरत का बाज़ार आज बहुत गर्म है। घर-घर में नफरत फैली हुई है। मनुष्य एक-दूसरे के प्रति नफरत पैदा कर भी रहे हैं और सीखा भी रहे हैं नफरत करना। बहुत बुरी बात हो गई आजकल सम्बन्धों में और कईयों को अपने अंदर ही नफरत पैदा हो रही है दूसरेसे। और इसके पीछे एक राज़ होता है दूसरों के अवगुण चित्त पर रख लेना। दूसरा कारण होता है कोई आपको बार-बार बुरा बोले, उस व्यक्ति का मुँह भी देखना नहीं चाहेंगे। नफरत हो जाती है उससे, किसी ने उसका जि़क्र कर दिया तो आपके निगेटिव संकल्प बंद ही नहीं होंगे। नफरत होगी तुम्हें क्या पता, वो व्यक्ति कैसा है? बोलना शुरू कर देंगे। तो ये नफरत पारस्परिक सम्बन्धों में विष घोल रही है। पति-पत्नी के बीच नफरत, माँ-बाप और बच्चों के बीच नफरत, कुछ तो ऐसे भी केस सामने आते हैं। छोटे बच्चे माँ को देखना ही नहीं चाहते। बच्चा नौ-दस साल का है, नफरत करता है, बोलता भी बुरा-बुरा है- जैसे माँ उसकी शत्रु हो। ऐसे में हम सिखाते हैं माँ को, उनसे क्षमा-याचना करो। पूर्व जन्म का कोई हिसाब-किताब, कोई निगेटिव एनर्जी काम कर रही है यहाँ। ऐसी आत्मा ने आपके घर में जन्म ले लिया है। जिससे पूर्व जन्मों में आपके कर्मों का खाता बहुत बुरा है वो हिसाब लेने आया है और आप उसकी माँ होते भी उसे प्यार नहीं दे सकती हैं और वो आपका बच्चा होते भी आपसे वैसा लाड-दुलार प्राप्त नहीं कर सकता। तो हम अवगुणी दृष्टि को हटायें। कैसे हटायेंगे? एक सुंदर चिंतन करें। इस संसार में जितने भी मनुष्य करोड़ों-अरबों सभी भगवान की संतान हैं और सभी में कुछ-न-कुछ योग्यतायें, कुछ-न-कुछ विशेषतायें अवश्य हैं। हमें वो दिखती नहीं हैं वो हमारी गलती है।
शिवबाबा तो ऐसा कहा करते हैं कि मान लो किसी में सो अवगुण भी दिखायी दे रहे हैं ना आपको तो भी एक कोई विशेष गुण उनमें अवश्य होगा। मुझे अपने बचपन का एक अनुभव याद है। हमारे साथ ही एक माता काम करती थी। हाई ब्लडप्रेशर था तो गुस्सा बहुत करती रहती थी। सबको पता था सब उसको दूर-दूर ऐसा करते रहते थे। एक दिन एक बुजुर्ग व्यक्ति के साथ मैं घूमने गया था। उसने मुझे कहा तुम्हें दो लोगों का संग बहुत अच्छा मिला है। मैंने कहा कौन? एक उसी का नाम ले दिया। अब मैं कुछ कह तो नहीं पाया। मैंने कहा कैसे? अरे! ये आत्माएं जन्म से पवित्र रही हैं। हम जानते हैं। हम गृहस्थी हैं पवित्रता कितनी बड़ी बात है। तुम लोगों को शायद नहीं पता कुमारों को।
मेरी आँखें खुल गयी। ये जो पवित्र हैं उनका एक गुस्सा देखकर हम उनसे घृणा कर रहे हैं, नफरत कर रहे हैं। उस दिन से उसके लिए हमारे दिल में सम्मान पैदा हो गया। और हमारा सम्मान पैदा होते ही उसकी भावनाएं भी बदल गई। वो हम से प्यार से रहने लगी। तो इस तरह हम अपने व्यर्थ संकल्पों को समाप्त करें।

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