बाबा से प्यार है तो उसे याद करना सहज होना चाहिए, भूलना मुश्किल

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मीठा बाबा हम बच्चों को कितना प्यार करता है, कहता है आओ बच्चे, मधुबन आपका प्यारा घर है। यहाँ खाओ, पियो, आराम से रहो और बाप को याद करो। तो यह चांस कम नहीं है, आगे चल कर यह दिन याद आयेंगे, इसलिए यहाँ आ करके, इसका महत्व रख करके लाभ उठाना। तो यहाँ के संग का रंग लग जायेगा। कोई भी व्यर्थ संकल्प अगर आपके पास आये तो उसको ऐसे भगाओ जैसे मक्खी-मच्छर को भगाते हैं क्योंकि आप बिज़ी हैं। जो भरपूर होता है वो हिलता नहीं। तो मन हिले नहीं क्योंकि हम मन के मालिक हैं।
जैसे यह हमारा हाथ है, तो हाथ को जब चाहूं तब यहाँ से वहाँ करूं क्योंकि मालिक हूँ ना। वैसे मन सूक्ष्म है। लेकिन है तो मेरा ना। तो मालिक बनकर उस पर अधिकार रखो। ऐसे नहीं मन मेरे को चला रहा है, क्या करूँ…! मेरे अन्दर ऐसा विचार आ जाता है ना, मन मानता नहीं है ना! समझता भी हूँ -श्रीमत पर चलूँ लेकिन मन मेरे हाथ में नहीं है ना! लेकिन अगर मेरा है तो उसकी मैं मालिक हूँ, जैसे मैं चाहू वैसे यूज़ में आना चाहिए क्योंकि मेरा है, मेरे पर अधिकार होता है। जब चाहते नहीं हैं फिर भी बॉडी कॉन्शियस में क्यों आते हैं, कारण? क्योंकि 63 जन्म में बॉडी में लगाव का अभ्यास हो गया है। लगाव के कारण न चाहते हुए भी वो याद आता है, बॉडी कॉन्शियस भूलना मुश्किल हो गया है क्योंकि उससे प्यार है। ऐसे ही बाबा से अगर हमारा प्यार है तो बाबा को याद करना सहज होना चाहिए, भूलना मुश्किल होना चाहिए।
जबकि बाबा ही मेरा संसार है तो एक ही संसार को याद करना सहज है ना। और बाबा भी एक ही बात कहते हैं कि एक मुझे याद करो। अभी हमारे में से कई ऐसे हैं जो बाबा को याद तो करते हैं लेकिन आत्मा हो करके नहीं करते हैं। अगर हम देहभान में हैं और बाबा-बाबा कह रहे हैं तो बाबा सुनेगा ही क्यों? क्योंकि वह तो आत्मा का बाबा है। देह का बाबा है ही नहीं इसलिए कई कहते हैं कि हम बाबा से बातें तो करते हैं, लेकिन हमको जवाब नहीं मिलता है। तो हम कहते हैं चेक करो कि जिस समय बाबा को याद करते हो तो पहला फाउण्डेशन – मैं आत्मा हूँ और आत्मा परमात्मा को याद कर रही हूँ, पहले यह सारा दिन याद रहता है? आत्म-अभिमानी बनके परमात्मा को याद करते हैं? इसीलिए रोज़ की मुरली में बाबा बार-बार कहते रहते हैं कि अपने को आत्मा समझ मुझ बाप को याद करो। कोई सारा दिन शिवबाबा शिवबाबा… मैं तेरा हूँ… कहता रहे, उससे क्या होगा। वो तो जैसे राम राम… कहते हैं तो मरा मरा… हो जाता है। तो उससे क्या फायदा हुआ? लेकिन मैं आत्मा हूँ, आत्मा समझके पिता परमात्मा को याद करो फिर देखो सेकण्ड की बात है क्योंकि आत्मा के लिए सिवाए परमात्मा के और कुछ है ही नहीं क्योंकि आत्मा का सबकुछ है ही परमात्मा।

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