मुख पृष्ठदादी जीदादी जानकी जीज्ञान-योग की शक्ति से विस्तार को समेटने वाला ही समझदार है

ज्ञान-योग की शक्ति से विस्तार को समेटने वाला ही समझदार है

आजकल दुनिया में रहना है तो धीरज चाहिए, सहनशक्ति चाहिए। थोड़ा भी कहेंगे मैं सहन नहीं कर सकती हूँ तो फिर धीरज छूट जाता है। संगठन में रहने के लिए सन्तुष्टता की शक्ति चाहिए। ऐसे नहीं हम खुद तो सन्तुष्ट हैं, लेकिन और भी हमसे सन्तुष्ट हैं! यह भी नहीं कहें कि कितनी कोशिश करते हैं, फिर भी यह सन्तुष्ट नहीं होता। तो भी कहेंगे ये मेरी कमज़ोरी है। चलते-फिरते व्यवहार में आते तन, मन, धन सम्बन्ध में सन्तुष्ट। सभी के अन्दर से आवाज़ निकले हम सब सन्तुष्ट हैं।
तो पहले ज्ञान का बल मिलता है, योग की शक्ति मिलती है फिर समेटने की शक्ति काम में आती है क्योंकि विस्तार में जाना तो बहुत सहज है। हर एक अपने आपसे पूछे धन्धा, व्यापार या जो भी अपने-अपने ऑक्यूपेशन के विस्तार में होंगे, अभी उसे समेटे कैसे? ज्ञान योग की शक्ति से समेटना सहज होगा जिससे हल्के रहेंगे। आज नहीं तो कल कभी भी यह आत्मा शरीर छोड़े, बुद्धि में कुछ भी फैला हुआ न हो, यह है, वह है… समेट लो। फिर है समाने की शक्ति, जैसे कुछ हुआ ही नहीं। समाने की शक्ति इतना सयाना, समझदार बनाती है। बुद्धि से अगर अपने को समझदार समझेंगे तो बुद्धि अभिमान दिखायेगी, वह समा नहीं सकेंगे। समाने की शक्ति वाले कभी भी मुख से रिपीट नहीं करेंगे। समाने की शक्ति से सच्चाई और प्रेम के साथ व्यवहार करना सहज है, कोई बात नहीं। उनको भगवान की तरफ से कहो, भाग्य की तरफ से कहो, परखने की शक्ति है। जैसे हंस को पता है यह मोती है, यह पत्थर है, वो किसी के संग में नहीं आयेगा, कभी किसी के प्रभाव में, दबाव व झुकाव में नहीं आयेगा। उसके बाद चाहिए निर्णय करने की शक्ति, फिर सहयोग देने की शक्ति।
दुनिया में बहुत सारी वैराइटी एजुकेशन यूनिवर्सिटीज़ हैं, पर इस यूनिवर्सिटी में हमें कितना बल मिला जो हमारी बुराइयां खत्म हो गई। सदा खुश हैं क्योंकि कहाँ भी हैं बाबा मेरे साथ हैं। जब भगवान सर्वशक्तिवान मेरे साथ है तो बुद्धि बड़ी शुद्ध और शान्त रहती है। यह तो गीत है ना बाबा तेरा बनने में सुख मिलता इलाही है। जिसको यह निश्चय है उसको कोई शोक नहीं, कोई सोच नहीं है। तो उसमें एनर्जी बनती है क्योंकि बल मिला, हरेक बदल जाए और मेरा साथी बने क्योंकि संग का रंग जल्दी लगता है इसलिए सत् बाप का संग मिला है। चित्त में स्मृति है, वृत्ति दृष्टि महासुखकारी है तो और क्या चाहिए! तो मैं कौन हूँ? सत्-चित्त-आनंद स्वरूप। स्मृति में सच्चाई चली गई है जिसने झूठ खत्म कर दिया है। मुझे संसार से कुछ चाहिए नहीं, जितना हमारे में परिवर्तन आयेगा, वही दुनिया के वायुमण्डल में परिवर्तन लायेगा।

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