एक होती है अपने में हिम्मत, हिम्मत से सहयोगी बनाना। अगर हिम्मत नहीं है, तन में भी हिम्मत नहीं है, मन में भी नहीं है, धन में भी नहीं है; तो क्या करेंगे? ऐसा भी सदा योगी बन सकता है। कोई ऐसे होते हैं जो भले अपनी हिम्मत नहीं होती है लेकि न उल्लास होता है, हौंसला होता है। धन की शक्ति नहीं भी है, मन में कन्ट्रोलिंग पॉवर नहीं है, व्यर्थ संकल्प जास्ती चलते हैं; लेकिन जो कोई बात जीवन के अनुभव में उल्लास और हौंसला दिलाने वाली हो, उसी द्वारा औरों को हौंसला दिलाओ तो औरों को हिम्मत आने से आपको भी हिस्सा मिल जायेगा। इतना तो अवश्य है – जो भी आत्मायें आदि से व अभी से आई हुई हैं, उन हर आत्मा को अपने जीवन में कोई प्राप्ति का अनुभव अवश्य है; तब तो आये हैं। यही विशेष अनुभव अनेक आत्माओं को उल्लास और हौंसला बढ़ाने के काम में लगा सकते हो। इस धन से कोई वंचित नहीं। जो अपने पास है, जितना भी है उस द्वारा औरों को हिम्मतवान बनाना व सहयोगी बनाना यह भी आपके सहयोग की सब्जेक्ट में माक्र्स जमा होंगी। अब बताओ, योग सहज है व मुश्किल? निरन्तर योगी बनना मुश्किल है। जो बाप के बन चुके हैं, इसमें तो परसेन्टेज नहीं हैं ना? इसमें तो फुल पास हो ना! जब हैं ही बाप के, तो एक बाप और दूसरा क्या रहा? बाप और आप, बस। तीसरा तो कोई नहीं। बाप में वर्सा तो है ही। तीसरा कुछ है क्या? सिवाय बाप और अपने आप अर्थात् आत्मा (शरीर नहीं)। तो आप और बाप ही रह गया, तो दो के मिलने में तीसरी रूकावट ही नहीं, तो निरन्तर योगी हुए ना! तीसरा है ही नहीं तो आया फिर कहाँ से? फिर यह तो कभी नहीं कहेंगे कि आ जाता है, आता है तो क्या करें? अब यह भाषा खत्म। सदैव यही सोचो कि हम हैं ही सदा बाप के सहयोगी अर्थात् सहज योगी। वियोग क्या होता है – इसका जैसे मालूम ही नहीं। जैसे भविष्य में, क्रमाया होती भी हैञ्ज – यह मालूम नहीं होगा, वैसे अब की स्टेज रहे। यह बचपन की बातेें बीत चुकी। अब तो गेट के सामने आ गये हो। जो जैसे बाप के बच्चे हैं, उसमें कोई परसेन्टेज नहीं होती है। ऐसे ही निरन्तर सहज योगी व योगी बनने की स्टेज में भी अब परसेन्टेज खत्म होनी चाहिए। नैचुरल और नेचर हो जानी चाहिए। जैसे कोई की विशेष नेचर होती है, उस नेचर के वश न चाहते भी चलते रहते हैं। कहते हैं ना – मेरी नेचर है, चाहती नहीं हूँ लेकिन नेचर है। वैसे निरन्तर सहज योगी अथवा सहयोगी की नेचर बन जाए, नैचुरल हो जाए। क्या करूँ, कैसे योग लगाऊं – यह बातें खत्म। हैं ही सदा सहयोगी अर्थात् योगी। इसी एक बात को नेचर और नैचुरल करने से भी सब्जेक्ट परफेक्ट हो जायेेंगे। परफेक्ट अर्थात् इफेक्ट से परे, डिफेक्ट से भी परे हो जायेंगे। तो आज से सभी निरन्तर सहज योगी बने व अभी बनेंगे? जब वरदाता बाप वर्से के साथ वरदान भी देते हैं; तो जिनको वर्से का अधिकार भी हो, वरदान भी प्राप्त हो उनके लिए मुश्किल है? अब देखना, कोई आकर कहे कि मुश्किल है तो याद दिलाना- वर्सा और वरदान। बाकी एक कदम रहा हुआ है घर जाने का। अभी तो हर कदम में पदमपति बने हुए हो। इतना वरदान वरदाता द्वारा प्राप्त है। जब हर कदम में पदमपति हो, तो कदम व्यर्थ होगा क्या? हर कदम में समर्थ हैं, व्यर्थ नहीं। स्मृति में समर्थी लाओ। साधारणता को समाप्त करो और स्मृति में समर्थी लाते, हर कदम में पदम लाते जाओ तब तो विश्व के मालिक बनेंगे।