वास्तव में साधना वो ही है कि साइलेन्स में, एकांत में अन्तर्मुखी होकर बैठना और हर सत्य के महत्त्व को समझना। ये भी सभी के अनुभव में होगा कि अगर हम गौर नहीं करते हैं, कितना भी कोई हमें कह ले परिवर्तन नहीं होता है।
संगमयुग के समीप रहने का ये भी अपने आप में एक बहुत अच्छा ड्रामा है। अपने-अपने स्थान पर हम नित्य पढ़ाई करते हैं फिर भी वहाँ नौकरी, धंधा, परिवार, समाज के बीच रहना है, कामकाज भी करना है तो वो मिक्स रहता है। हर बात का सत्य हमने समझ लिया है पर हरेक सत्य पर गौर करना है। एकांत, शांति में अन्तर्मुखी होकर बैठकर एक-एक बात पर ध्यान देना है। इसकी अब जीवन में बहुत ज़रूरत है। ये बात, ये सत्य मनुष्य से देवता बनने के लिए बाबा ने क्यों बताई है? ये सत्य ज्ञान सम्पूर्ण सतोप्रधान बनने के लिए क्या सम्बन्ध रखता है। ज्ञान पाने के बाद भी पूरा परिवर्तन नहीं होता है तो इसका कारण यही है कि हम हर बात को जो बाबा बताते हैं उसको गौर नहीं करते। माना गहराई से उसे समझना और महसूस करना वो नहीं करते। वास्तव में साधना वो ही है कि साइलेन्स में, एकांत में अन्तर्मुखी होकर बैठना और हर सत्य के महत्त्व को समझना। ये भी सभी के अनुभव में होगा कि अगर हम गौर नहीं करते हैं, कितना भी कोई हमें कह ले परिवर्तन नहीं होता है। हमें सत्य मिल चुका है, ये बहुत बड़ा सौभाग्य है हमारा। बाकी को तो सत्य पाने की ही मेहनत करनी पड़ी है। भक्ति में जो भी मेहनत है… सत्य के खोज की है। और परम सत्य बाबा ने जीवन और जगत के हर सत्य को स्वयं ही स्पष्ट किया है। सिर्फ गहराई से समझना है। हमारे जीवन के उद्देश्य को और बाबा के उद्देश्य को मैच करना है। बाबा क्यों ये बातें हमेें समझाते हैं, बाबा का ध्येय क्या है और मेरा ध्येय क्या है ये मैच होना चाहिए। तभी हम उमंग-उत्साह, हिम्मत और दृढ़ता से पुरुषार्थ कर सकेंगे। अगर हमारा ध्येय अलग है बाबा से मैच नहीं करता है तो पुरुषार्थ नहीं कर सकेंगे। मैं समझती हूँ हम सबका अनुभव है कि ज्ञान में आने से ही, बाबा के सत्य ज्ञान को प्राप्त करने से ही, ज्ञानी तू आत्मा बनने से ही जीवन की आधी समस्यायें खत्म हो गई हैं। क्योंकि अज्ञानता, मिथ्या ज्ञान, अल्प ज्ञान, अंधश्रद्धा, मनमत या मनुष्यमत इन सबके कारण जो जीवन में बातें आईं, समस्यायें आईं वो तो ज्ञान में आते ही खत्म हो गईं।
स्वयं ब्रह्मा बाबा अपने अनुभव की बात मुरली में बताते हैं। नज़र से निहाल किया सतगुरु स्वामी ने। फिक्रों से फारिग कर दिया। क्योंकि जीवन के जो भी संघर्ष और घर्षण हैं उसका मूल कारण अज्ञानता है। जैसे ही ज्ञान में आये यानी ज्ञान समझने लगे और स्वीकार करने लगे तो अधिक समस्यायें दो हफ्ते में ही खत्म हो गईं। अनावश्यक इच्छायें, सामाजिक दबाव, गलत रीति-रस्में, गलत मान्यतायें इन सबके कारण कितनी समस्यायें जीवन में होती हैं। कितनी भय और चिन्तायें जीवन में होती हैं। सत्य ज्ञान मिलते ही वो सब समाप्त हो गये। ज्ञान न होने के कारण गलत मान्यताओं में कितने लोग फँसे हुए हैं। बाबा के ज्ञान से हम हरेक आत्मा इतनी जाग्रत हो गई, इतना सद्विवेक हमें प्राप्त हो गया और उस सद्विवेक से आत्मा इतनी शक्तिशाली हो गई कि हम खुद ही जीवन की कई समस्याओं का निराकरण करने लगे, समाधान करने लगे।
अब ज्ञानी बनने के बाद जीवन का दूसरा स्तर, दूसरा फेज़ शुरू होता है। और वो है ज्ञानी से योगी बनना। जीवन का पहला फेज़ है अज्ञानी से ज्ञानी बनना और वो याद करो। ज्ञान में आने के प्रारम्भिक दिनों को आप याद करो। जो बाबा कहते हैं न कि बचपन के दिन भूला न देना। कितना परिवर्तन हुआ। पढ़े लिखे लोग जो अंधश्रद्धा गलत रस्में गलत मान्यतायें, बिल्ली बीच में आयेगी तो ये हो जायेगा, मंगलवार को करेंगे तो ये हो जायेगा इस प्रकार की पता नहीं कितनी मान्यतायें हैं। वो सब परिवर्तन हो गई। तभी तो सुख का अहसास हुआ। क्यों ये जीवन हम सबने अपनाया। इस परिवर्तन से हम रिलेक्स हो गये। क्योंकि चिन्ताओं से, फिक्रों से सचमुच बाबा ने हमें मुक्त कर दिया। क्योंकि हंम समझ गये हैं कि श्रेष्ठ कर्म अपने आप समृद्धि को सहयोग को खींच के लाता है। हम स्रमझ गये कि हम मालिक नहीं है ट्रस्टी हैं। हम समझ गये कि गलत तरीके का समाधान नहीं चाहिए, सत्य तरीके का समाधान चाहिए इसकी को ज्ञान कहते हैं। कि हमें सही तरीके से सबकुछ चाहिए जिसको बाबा श्रीमत कहते हैं। प्राप्ति तो इंसान गलत तरीकों से, गलत साधनों से करता है। पर बाबा कहते हैं कि ज्ञानी तू आत्मा को ऐसे ख्यालात आयेंगे ही नहीं। गलत साधनों से गलत तरीकों से कुछ भी प्राप्त करने की इच्छायें तरीके ज्ञानी तू आत्मा कभी सोचेगी भी नहीं। हमें सरल सात्विक सादा जीवन पसंद है। इच्छाओं की पूर्ति के लिए गलत तरीके हमें पसंद नहीं। ये ज्ञान हमें सदबुद्धि देता है। ये नित्य ज्ञान योग का अध्ययन करने से समय पर शुभ विचार हमें आते हैं। जिनको रोज़ का ज्ञान योग का अभ्यास नहीं है उनको बातें परिस्थितियां आने के समय सद्बुद्धि नहीं रहती है। सत्य विचार नहीं आते हैं। इसलिए रोज़ हम जो पुरुषार्थ करते हैं वो व्यर्थ नहीं है बहुत महत्वपूर्ण हैं। इसलिए टाइम पर सही विचार हमें आते हैं और सेकंड फेज़ है कि ज्ञानी तू आत्मा बनने के बाद, ब्रह्मामुखवंसावली बनने के बाद, मरजीवा बन अलौकिक जीवन पाने के बाद जब एक लम्बा समय हम इस जीवन में चलते हैं, इस जीवन में जो बातें हमारे सामने आती हैं। मैं समझती हूँ कि जब हम स्व में स्थित हैं ज्ञान स्वरूप हैं और बाबा से अटैच हैं तो हमें कोई भीबात समस्या नहीं लगेगी। सबसे पहली फीलिंग तो यही आयेगी क्योंकि हम मूल सत्य जानते हैं कि जो भीबात मेरे सामने आती है लौकिक से अलौकिक से प्रकृति से, समाज से बिना कारण नहीं आती हैं। कोई मेरा मेरे तरफ से कोई कारण है कोई भी जन्म का ऐसा कोई हिसाब है तब वो बातें आती हैं और जब हम ये समझते हैं तो हमारा स्वयं के प्रति ही बुद्धियोग जाता है। पहले कोई भीबात आती थी तो बहिृमुख बुद्धि थी तो हम समझते थे कि इसके कारण प्रॉब्लम आता है यही मेरे लिए विघ् न है यही मेरे लिए रोड़ा बनते है। हम दूसरों को कारण समझते थे। आध्यात्मिकता हमें सैल्फ ऑरिएंटेंड बनाती है। हम स्व अभिमुख बनते हैं। इसलिए सब बात में हम स्वदर्शन करते हैं कि ये जो समस्या मेरे सामने आई है तो इसका कारण मैं तो नहीं हूँ या हूँ। निष्पक्ष होकर ज्ञान के आइने में खुद को देखो यदि मैं स्वयं कारण हूँ तो मुझे परिवर्तन करना है। अक्सर जब भी कोई परिस्थिति, समस्या विघ्न जो भी कहो वो जब आता है तो हम उसका समाधान बाहर खोजते हैं हम बाहर खोजते हैं इससे मदद लूं, इसको बताऊं, ये ठीक करेगा, इनको बरोबर कर दें। हम इसका समाधान बाहर खोजते हैं पर बाबा का ज्ञान हमें समझाता है कि जीवन की कई समस्याओं का कारण हम खुद ही होते हैं। हम खुद ही होते हैं। हमारा बोलने का तरीका, व्यवहार गलत, संस्कार गलत, इच्छायें गलत कुछ भी कई समस्याओं का कारण हम खुद ही होते हैं। तो ये जो रोज़ ज्ञान योग का अभ्यास है तो हम पहले स्वदर्शन करते हैं कि मैं तो कारण नहीं हूँ कहीं और मुझे अपने में क्या परिवर्तन करना है तो वो अपने आप सॉल्यूशन हो जाता है, समाधान हो जाता है। और दूसरा हम समझ गये हैं कि समस्यायें बाहरी है समाज से आती है, नौकरी, धंधा, परिवार जो भीकहो व्यक्ति, प्रकृति, सरकार जो भी कहो जिस भीतरफ से आती है पर जितनी बड़ी समस्या उतनी गहरी डिटैच और शांत स्थिति चाहिए तो हम साक्षी होकर निरीक्षण करसकेंगे। ऑब्जऱ्व कर सकेंगे। शांति से हम निरिक्षण कर सकेंगे। समझ सकेंगे। विष्लेषण कर सकेंगे। एनालाइज़ कर सकेंगे और डिसीज़न ले सकेंगे। बात आई नहीं और घबरा गये उग्र हो गये, टैंस हो गये तो ये हम नहीं कर सकेंगे कि हम शांति से समझें देखें, विशलेषण करें निर्णय ले ये नहीं कर सकेंगे वहाँ बाबा हमें ज्ञान योग मदद करता है जो साइलेंस पॉवर की बात कही है वास्तव में साइलेंस पॉवर क्या साइलेंस पॉवर माना शुद्ध संकल्पों की शुद्ध स्थिति की शक्ति को साइलेंस पॉवर कहते हैं। साइंस पॉवर माना प्रकृति की शक्ति। प्रकृति जगत जिन सिद्धान्तों पर काम करती है विज्ञान उन सिद्धातों की खोज करता है और उन सिद्धातों को एप्लाई कर नये नये साधन सिस्टम जो बनाता है वो टेक्नोलॉजी है। वो प्रकृति जगत के सिद्धातों का ज्ञान उपयोग और उनकी वो शक्ति साइलेंस पॉवर माना चैतन्य आत्मा की शक्ति। चैतन्य आत्मा की जो चैतन्यता है चैतन्यता क्या है थॉट्स विचार, वायब्रेशन, वृत्ति, भाव, भावनायें, फीलिंग्स, संस्कार ये चैतन्य आत्मा का जगत है। ये चैतन्य आत्मा से रिलेटेड है। इसका क्या प्रभाव है? और जितना हम अपने विचार वायब्रेशन्स, वाणी, वृत्ति, भाव, भावनायें, फीलिंग्स, स्मृति, संस्कार को शुद्ध बनाते। उनकी शक्ति को साइलेंस पॉवर कहते हैं। साइलेंस पॉवर सिर्फ चुप रहना नहीं बेशक वो एक स्टेप है फस्र्ट पर साइलेंस पॉवर माना देह भान से डिटैच। स्व में स्थित, परम से जुड़ा हुआ शुभ और शुद्ध आत्म स्थिति की शक्ति वो साइलेंस पॉवर। तो ज्ञान से पहले हम दुनियावी पॉवर, पॉजिशन, रिलेशन, साधन,सम्पत्ति के बल से समस्या के बल से समाधान करते थे। क्योंकि ये पॉवर तो था ही नहीं। अभी भी कई बार बहुत लास्ट में हमें याद आता है कि बाबा भी एक शक्ति है मैंने ऑनेस्टली सच्चाई, ईमानदारी से, बाबा के ज्ञान अनुसार इस समस्या को समाधान करने हर सम्भव प्रयास किया। ये हर आत्मा का कत्र्तव्य है। हमें सिर्फ बाबा पर छोड़ नहीं देना है बेशक अन्दर से हम बाबा पर छोड़े पर प्रैक्टिकल मेरा कत्र्तव्य है पॉजि़टिवली हर समस्या को ठीक करने के लिए मुझे अपनी तरफ से हर प्रयास करना है। और उसके बाद भी सत्य का सहारा लेने के बाद भी समाधान नहीं कर पाते हैं तो योगयुक्त रहना, बाबा और ड्रामा पर छोड़कर स्थिति में रहना ये भी एक पॉवर है। मुझे वो भी एप्लाई करना है। और इस आध्यात्मिक साधन माना जो भी ज्ञान योग धारणा सेवा इनके द्धारा हम जो समस्यायें ठीक करना चाहते हैं तो उसका मुझे बाबा कहता है ना कि सच्चे दिल से याद करेंगे तो बाबा हाजि़र होगा। सिर्फ ज़रूरत के समय याद करेंगे तो पॉवर नहीं आयेगा। पर हमने नित्य बाबा को आधार बनाया जीवन का और सदा मेरा ज्ञानी तू आत्मा हूँ, योगी तू आत्मा हूँ मेरा सदा प्रयास हर श्रीमत ज्ञान से समस्यायें ठीक करने का प्रयास रहा है तो समय पर मेरे में शक्ति रहेगी और मन शांत रहेगा। हम अचल अपने आप को रख सकेंगे। तो ये है साइलेंस पॉवर। दुनिया के तरीके वो तो हम पहले जानते ही थे। पहले हम वो ही करते थे वो छोड़कर हम ज्ञान में क्यों आये? कि वो सही नहीं है तब तो हमने छोड़ा। अब ज्ञान में आने के बाद मुझे गलत तरीकों से ईश्वरीय नियम मर्यादा के विपरित इसका उपयोग नहीं करना है। पहला प्रयास हमारा ये हो और विशेष हम ज्ञानी तू आत्माओं का आपस में यही प्रयास हो। बाकी कोई अज्ञानियों के विघ् नों के सामने स्व रक्षा के हिसाब से हम कायदे कानून का सहारा लेते हैं वो अलग बात है। पर हम ज्ञानी तू आत्माओं का और इसलिए मैंने पिछली बार भी सुनाया था कि बड़ी दादी जी ने बताया था कि अज्ञानियों को तुम कहते हो दादी हम बीके र्भा बहनों को क्लासकररा रही थी। आप लोग अज्ञानियों को कहते हो कि तुम ज्ञान में आ जाओ तो सब समस्यायें खत्म हो जायेंगी। और वो हम कहते ही हैं। हर बात का समाधान हम यही बताते हैं कि आप सात दिन का कोर्स करो। औश्र ये सत्य है। तो दादी ने कहा कि मैं ज्ञानियों को कहती हूँ कि आप योगी बन जाओ तो ब्राह्मण जीवन की हर समस्यायें समाप्त हो जायेंगी। क्योंकि योगी माना अन्तर्मुखी। सदा बुद्धियोग ऊपर, सदा बाबा का संग उस अनुसार मन वचन कर्म गीता में जो कहा है कि योगी तो मेरा ही स्वरूप है। तो हर क्षण हमें ये याद रहे कि मुझे बाबा की प्रतिमूर्ति बनकर ये शेष जीवन मुझे जीना है। और देह से न्यारा, दुनिया से ऊपर एक बाबा की याद में रहने का जो सुख है, जो आनंद है वो इतना ऊंचा है कि फिर आपको कोर्इ छोटी छोटी इच्छायें ही नहीं होंगी। ब्राह्मण जीवन में हम जिन जिन छोटी मोटी इच्छाओं के कारण हम आपस में कभी कम्फर्टटेबल नहीं रहते है नाम मान शान की इच्छा, ये जो नाम महिमा की इच्छा, ये जो छोटी मोटी इच्छायें है द्वेष, ईष्र्या, स्वभाव, संस्कार, फिर आपको ये इच्छायें रहेंगी ही नहीं आप अपने अति इंद्रिय सुख में ही इतना रहेंगे। जब हमें कुछ चाहिए ही नहीं, आत्मा तृप्त है बाबा की बनकर तो अपने आप मिलेगा। अपने आप मिलेगा। इसलिए हमने तो ये नया जन्म इन अनुभूतियों में रहने के लिए तो लिया है बाकी नाम मान शान तो दुनिया में भी मिलता है। और बहुत लोग कमाते हैं आत्म बल से लोग बहुत बड़ी बड़ी पॉजिशन पर हैं। बहुत नाम कमाया है, बहुत सेवायें लोगों ने की हैं पर्टिक्यूलर इस संगमयुग पर हम इसलिए आये हैं बाबा के संग की अलौकिक अनुभूतियों में आना है, हमें अपना उत्थान करना है, और वो ही हमें दूसरों को देना है। इसलिए जब उस दिशा में आप जाते हैं और वहीं साइलेंस पॉवर अन्तर्मुखी, स्वदर्शन बाबा तो फिर आपको जब मुझे चाहिए ही नहीं तो किसी को मिल भी रहा है तो आपको ईष्र्या होगी ही नहीं, द्वेष होगा ही नहीं क्योंकि तृप्त हूँ, संतुष्ट हूँ। द्वेष तो तभी होता है ना कि मुझे इच्छा है। और नहीं मिल रहा है। तो ये आध्यात्मिक उन् नति हम करें। और ये अनुभव हरेक को है जब हम बहुत अच्छा योग करते हैं, जिस दिन आप लगन में मगन बहुत अच्छा योग करते हैं उसके बाद एक दो घंटे तक आपका क्या अनुभव रहता है। कि आपको आवाज़ में आना अच्छा नहीं लगेगा। आपको कोई व्यर्थ सुना रहा है आपको इंटरेस्ट नहीं आयेगा, कोई ऐसी बातें देख रहा है तो आप पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। माना हमारी बुद्धि औरों की तरफ जायेगी ही नहीं। हम अपनी इस अलौकिक अनुभूति में इतने मगन रहेंगे कि हमें ज्य़ादा आपसी बातों में जाना अच्छा नहीं लगेगा। तो चाहे स्व उन् नति के लिए, चाहे सेवा के लिए बाबा ने हमें कभी नहीं कहा है सेवा करो ये कहा है, गलत तरीके से सेवा करो ये नहीं कहा है। अगर हम मनमत से कोई सेवा करते हैं, एक दो को हराने के लिए सेवा करते हैं अपना शो बढ़ाने के लिए सेवा करते हैं। तो सेवा करने के लिए ये तरीके अपनाओं ये बाबा ने नहीं कहा है। बाबा ने कहा है सेवा करो क्योंकि गलत बनकर सही हिसाब कभी नहीं बन सकता है। सही से सही हिसाब बनेगा। इसलिए ये भी हमें मौका है कि प्रैक्टिकल खुद के जीवन में ये अनुभव करें और कोई आपको सुनाते हैं अपनी समस्यायें, अपनी मुसीबत, तो हम उनको ज्ञान सुनाते हैं कोई बात नहीं आप साइलेंस रहो, कोई बात नहीं आप बाबा को याद करो, कोई बात नहीं आप योगदान करो। हम बताते हैं ना उसको तो हम खुद की समस्या के समय हम भी तो वो तरीके एप्लाई करें ना। अगर हम क्योंकि बाबा इस दुनिया को सुखमय बनाने के लिए ये ही तरीका लेकर आया है। इस कलियुग को सतयुग बनाने के लिए बाबा का तरीका तो ये ही है ज्ञान योग, पवित्र और योगी बनने वाला। तो अगर बाबा इस ज्ञान योग और पवित्रता के बल से दुनिया बदल रहा है तो हम अपने जीवन को तो बदल ही सकते हैं। सिर्फ हम मूल सत्यों को परिस्थिति के समय भी पकड़ कर रखें। बाबा कहता है ना कि सोचो इस परिस्थिति के लिए जो भी परिस्थिति आई है, बीमारी की आई, आर्थिक समस्या आई, बच्चों के संस्कार की आई। ब्राह्मणों के वैराइटी स्वभाव-संस्कार की आई। कोई भी मतलब इस परिस्थिति के लिए श्रीमत क्या है? ज्ञान क्या कहता है, बाबा क्या कहता है। बस वो ही सॉल्यूशन है। और वो मुझे एप्लाई करना है। उस समय ये नहीं कि बाबा तो कहता है मगर इन लोगों के सामने बाबा का ज्ञान काम नहीं करेगा। ऐसे हम क्यों अपनी मत चलायें। इसलिए योगी बनना है और अब तो हम थर्ड फेज़ में चल रहे हैं। योगी से फरिश्ता। सम्पन् नता की। अब ये संगमयुग इसमें चल रहा है। इतना उपराम इतना ऊंचा, इतना इस योगी जीवन में रिफाइन, इतना क्वालिटी कि हमारे आगे बातें ही नहीं। हम समाधान स्वरूप हैं। समस्या की चर्चा भी नहीं, चिंतन भी नहीं। ये फरिश्ता बनना, ये बाप समान बनना, वो सम्पन् नता की स्टेज में रहना। स्थिति ही इतनी शक्तिशाली कि ड्रामा मचल मचल कर अपने आप में सीधा हो जाये। पर मैं अपने में रहूँ बस। इसलिए कहते हैं जो होता है उसे चाहेंगे तो जो चाहते हो वो ही हो रहा है ऐसा अनुभव होने लगेगा। जो हो रहा है राइट है रॉन्ग है, पसंद है, नहीं पंसद है, फेवर में है, अपॉजिशन में है कुछ भी है जो हो रहा है बाबा के बहुत सुन्दर महावाक्य है जो हुआ हो रहा है वो ड्रामा है। और ड्रामा एक्यूरेट है। एक्यूरेट है। ड्रामा इतना क्यों कहता है कि बना बनाया। कर्म का सिद्धान्त एक ऐसा बना बनाया है इसमें कोई अन्याय, फेरबदल, कुछ भी नहीं हो सकता है। एक्यूरेट है। तो वो ही तो हमें चाहना है जो हो रहा है वो एक्यूरेट है। तो उसे स्वीकारों। अपॉजिशन नहीं नहीं कि ऐसा नहीं। जो हो रहा है। पुरुषार्थ भल हम करें लेकिन एक्सेप्टेंस। ये अभ्यास करते करते वो अनुभव बनने लगेगा कि जो मैं चाहती हूँ वो ही हो रहा है। सभी फेवर में है। कोई अपॉजि़ट है ही नहीं। यही है शुद्ध आत्मिक स्थिति की शक्ति। ये है साइलेंस की स्थिति, शक्ति और इसी की ज़रूरत है। कई हिसाब आगे-पीछे के कई जन्मों के और ये फाइनल एंड है। ये फाइनल क्लीयरन्स है। इतने जन्म तो माइन्स प्लस होकर बैक फॉरवर्ड होता रहा अब बैक फॉरवर्ड होने की मार्जिन नहीं, अब दी एंड है। इसलिए क्यों मेरे साथ हुआ, उसका कोई कारण न भी आपको मिले पर कोई भी हिसाब किताब, इसलिए बाबा कहता है साइलेंस, हिम्मत, सहनशीलता, धीरज, हम सत्य हैं पर सत्य में लम्बे समय तक चलने की हिम्मत भी रखनी है और धीरज। क्योंकि रिजल्ट तो समय पर आयेगा। सत्य का मतलब ये नहीं कि तुरंत रिज़ल्ट आये। क्योंकि जो असत्य किया है उसका भी रिज़ल्ट हमने तुरंत नहीं चखा है। गलत करके भी हम बहुत मान शान लेते रहे हैं या सुख लेते रहे हैं। एक ने कहा कि अगर ड्रामा में होता ना कि भूल करते ही एक अदृश्य चमाट लग जाये परंतु नहीं भगवान समझ से संसार बदलता है सजा से नहीं। भगवान भी धर्मराज है धारणाओं में रहकर शासन करता है। इसलिए समय पर रिज़ल्ट आता है। उसमें हमारे हिसाब किताब भी चुक्तू होते हैं। औरों की हम सबकी भी प्रत्यक्षता होती है। बहुत प्रकार की महसूसता भी होती है इसलिए योग, हिम्मत, धीरज, यही साइलेंस पॉवर है। और ये नित्य के अभ्यास से ही बनता है। तो बहुत क्वालिटी योग तपस्या हमें करना है। और प्यार बाबा मिल चुका है अब उनसे प्यार समर्पण, वफादारी तो सफलता ही सफलता है।