निराकारी, विदेही और वो ओरिज़नल शुद्ध सत्य स्वरूप में हम जा रहे हैं। जहाँ कोई विकार नहीं था, आत्मा बिल्कुल पावन बनकर जाती है। या तो योगबल से बनती है या फिर सज़ा खाकर बनती है, पर हर आत्मा को हिसाब-किताब चुकाकर, शुद्ध बनकर वापस जाना है। बैक टू होम, बैक टू नेचर, ओरिज़नल स्टेज एंड बैक टू सोर्स।
जैसे दुनिया में कितने अच्छे-अच्छे स्थानों पर घूमने जाते हैं। बड़ी खुशी भी होती है कि हमने ये देखा, ये देखा। और इतने सुन्दर स्थान देखने के बावजूद भी आखिर क्या इच्छा होती है कि अब घर चलो। फिर दुबारा निकलेंगे, ट्रेवल करेंगे, अब घर जायेंगे थक गये। तो हम भी इस दुनिया के सफर पर निकले पर आखिर तो आत्मा को इच्छा होती है, घर वापस जाने की। रेस्ट करने की। तो परमधाम में रेस्ट है, देह और देह की दुनिया का वहाँ पर विस्तार नहीं है। वहाँ हम अपने स्वरूप में स्थित होते हैं। बहुत चलते हैं तो कहते हैं ना थोड़ा बैठ जाते हैं, आराम करते हैं। तो आत्मा ने भी ड्रामा में वैरायटी दृश्य देखे, पार्ट बजाये तो आत्मा को जब दु:ख मिलने लगता है तो थक जाती है। इस दुनिया से दु:खी हो जाते हैं, तंग हो जाते हैं, तो क्या सोचते हैं लौकिक दुनिया में भी क्या कहते हैं कि अब तो दुनिया से चले जायें, भगवान उठा ले। तो ये समय है बैक टू होम(घर वापस चलना है)। अपने आपको तैयार करो। क्योंकि अनेक जन्मों से यहाँ रहे, अनेक पारिवारिक सम्बन्धों में रहे, तो जाना नहीं चाहते हैं कई बार। डरते तो नहीं हैं ना! क्योंकि ये ड्रामा का क्रम है। नियम है संसार का तो उनको हमें बहुत खुशी से और समझ पूर्वक स्वीकार करना है। क्योंकि ओरिज़नल तो वो हमारी निराकार, बीजरूप, बिन्दुरूप जो भी कहो वो स्टेज है। जब हमारे अन्दर सबकुछ समाया होता है। संगमयुग में हम वो अपनी अनुभूतियां, बाबा लौकिक से हमें अलौकिक बनाते हैं और फिर अलौकिक से निराकार, पारलौकिक, बीजरूप, बिन्दुरूप स्टेज में हमें जाना है। जहाँ हम संगमयुग में आत्मा में सारी अनुभूतियां भर लेते हैं। बीज बन जाते हैं।
तो इसलिए अब दुनिया में भी लोग क्या कहते हैं बैक टू नेचर। भौतिकता में चले गये। अब कहते हैं वापस कुदरती जीवन में आओ। तो हम भी अपना बैक टू नेचर, अपनी ओरिज़नल स्टेज में जा रहे हैं। कौन-सी है हमारी ओरिज़नल स्टेज? निराकारी, विदेही और वो ओरिज़नल शुद्ध सत्य स्वरूप में हम जा रहे हैं। जहाँ कोई विकार नहीं था, आत्मा बिल्कुल पावन बनकर जाती है। या तो योगबल से बनती है या फिर सज़ा खाकर बनती है, पर हर आत्मा को हिसाब-किताब चुकाकर, शुद्ध बनकर वापस जाना है। बैक टू होम, बैक टू नेचर, ओरिज़नल स्टेज एंड बैक टू सोर्स। बाबा है सोर्स, अल्टीमेट सोर्स(अन्तिम स्रोत)। जहाँ से हमें सुख, शांति, आनंद, प्रेम, शक्ति… मिलती है। अल्टीमेट सोर्स बाबा है। अविनाशी सोर्स, ऊंचे ते ऊंचे बाबा है। अब उनसे कनेक्ट हो जाना है।
तो वापिस घर जाने की बातें हम जानते हैं। जैसे रोज़ सुबह नहा धोकर, स्वच्छ कपड़े पहनकर घर से निकलते हैं। सारा दिन अनेक कामों में लगते हैं, अनेक स्थानों पर जाते हैं कुछ न कुछ धूल-मिट्टी लग जाती है फिर शाम को स्नान करते हैं, हाथ-मुंह धोते हैं और कपड़े बदलकर, घर के कपड़ों में रहते हैं। आत्मा को रिलेक्स किसमें लगता है? भल ऑफिस में आप तैयार होकर जाते हैं, पर रिलेक्स किसमें लगता है- अपनी ओरिज़नल सिम्पल ड्रेस में। तो ये है कि आत्मा को फिर रिलेक्स होना है। 84 जन्मों का, उसमें खास 63 जन्मों का प्रभाव मिट जाये और 21 जन्मों का जो रोल प्ले करना है वो रोल समा जाये आत्मा में। तो ये तैयारी तो संगमयुग पर करनी है। बाबा कहते हैं ना कि 63 जन्मों का विकर्म विनाश करना है। इसलिए तो तपस्या कर रहे हैं कि उन विकर्मों के कारण जो आदतें बनी हैं, जो संस्कार बने हैं वो हमें खत्म करना है। और 21 जन्मों के लिए जमा करना है।
क्यों सेवा करते हैं? क्यों सत कर्म हम करते हैं, क्यों हम तन-मन-धन लगाते हैं, 21 जन्मों के लिए जमा करना है। उसके लिए बाबा उसका मल्टीप्लाई करके देगा। एक जन्म की सेवा, एक जन्म का तप और 21 जन्मों का भाग्य मल्टीप्लाई बाबा करेगा। पर करना तो हमें है ना, बीज हमें बोना है, कदम हमें उठाना है। तो ये मोस्ट इम्र्पोटेंट टाइम है कि जितना हम निराकारी स्थिति की साधना करेंगे तो इस देह में रहते भी देह भान से न्यारे रहेंगे। सिर्फ मैं आत्मा हूँ इतना नहीं, मैं आत्मा इस देह से न्यारी हूँ। क्योंकि मेन तो अटैचमेंट देह से हो गया ना! तो देह में रहते हर क्षण देह से कर्म करते हुए, हर क्षण देह भान से मुझे न्यारा रहना है। तो ये प्रैक्टिस करनी है।