एक शब्द अभी तक मनुष्यों के ज़हन में इस कदर बैठा हुआ है कि जब कभी स्वार्थ की बात आती है तो हमको परमार्थी बनना चाहिए, स्वार्थी नहीं। सभी को लगता है कि स्वार्थ शब्द हमारे लिए निरर्थक है, लेकिन आज हम थोड़ा-सा इस शब्द की महत्त्वता के बारे में कुछ गहरी जानकारी के साथ इसका प्रयोग भी करेंगे और इसके लिए पहले से हमारी जो मान्यता बनी हुई है उसको ठीक भी करेंगे। स्वार्थ शब्द को लोगों ने इस कदर से लिया कि हमें सिर्फ अपने बारे में ही सोचना चाहिए। जबकि हमें सिर्फ अपने बारे में न सोच के दूसरों के बारे में ज्य़ादा से ज्य़ादा सोचना चाहिए। दूसरों को उठाने की कोशिश करनी चाहिए। दूसरों की सेवा करनी चाहिए। अपने बारे में जो सोचता है वो स्वार्थी है। ऐसी-ऐसी मान्यतायें, ऐसी-ऐसी बातें लोग करते रहते हैं। लेकिन जब इस ज्ञान की थोड़ी गहरी समझ हमें मिली तो पता चला कि आत्मा अपने जिस शरीर में रहती है अगर वो अस्वस्थ है उदाहरण के लिए ले लेते हैं अगर वो शरीर अस्वस्थ है तो उस शरीर के द्वारा हम सेवा कैसे कर पायेंगे!
अगर मुझे सेवा अच्छे से करनी है किसी की तो सबसे पहले शरीर का स्वस्थ होना बहुत ज़रूरी है। जब शरीर स्वस्थ होगा, जब शरीर के अन्दर बल होगा तभी तो मैं अच्छे से कोई कर्म कर पाऊंगा! क्योंकि साधन अच्छा होगा तो निश्चित रूप से साधना भी अच्छी ही होगी! लेकिन हम सभी दुनिया में जो पहले से मान्यतायें बनी हुई हैं कि नहीं-नहीं सबसे पहले आप कैसे खा सकते हैं, आप कैसे पानी पी सकते हैं, अगर घर में बड़ा सदस्य जब तक न खाये तो! लेकिन उस समय की जो मान्यतायें थीं आपने देखा तो नहीं था ना! वो लोग कुछ ऐसी चीज़ सुबह तो ले लेते होंगे ना, जो दिनचर्या में शामिल नहीं है। भोजन की बात अलग है लेकिन यहाँ तो शुरुआत ही भोजन से होती है। सबको फल नहीं मिल सकता, सबको जूस नहीं मिल सकता, सबको नारियल पानी नहीं मिल सकता। सबको सब चीज़ें नहीं मिल सकती जो पहले थीं। आज व्यक्ति की स्थिति-परिस्थिति कहो लेकिन आज के हिसाब से अगर मेरे को तकलीफ है, मेरे को ठीक नहीं लग रहा है, मेरे को किसी बात में डिस्टर्बेंस हो जाती है सुबह-सुबह या शुगर लेवल बढ़ जाता है तो उस समय मुझे कुछ न कुछ खाना चाहिए। पानी पीना चाहिए ताकि मैं अपने शरीर को मेन्टेन कर सकूं। लेकिन यहाँ भी अगर हम परवाह करने लग जायेंगे तो ये कहाँ की समझदारी है। पहले बीमार हो फिर जाके उसके ऊपर काम करो ये समझदारी तो नहीं कही जा सकती ना! समझदारी तो वो है कि मैं अपने आपको इतना ज्य़ादा हर पल, हर क्षण सही रखूं ताकि मैं दूसरों की सेवा कर सकूँ।
स्वार्थ का अर्थ परमात्मा ने हमें इतना अच्छा बताया कि अपने स्व के अर्थ में टिकना। स्व को अर्थ देना बेसिक्ली(मूल रूप से)। आधारभूत का मतलब ये हुआ कि स्व को अर्थ देना, स्व को सम्मान देना, स्व का मान रखना। स्व माना यहाँ तो आत्मा है लेकिन आत्मा के साथ शरीर भी जुड़ा हुआ है, तो सबसे पहले परमात्मा ने आकर आत्मा को स्वस्थ किया। और स्वस्थ करने का तरीका बताया कि तुम्हारे अन्दर जो भी गुण हैं उन गुणों का चिंतन जितना अधिक से अधिक होगा उतना तुम्हारा स्व शक्तिशाली होगा, स्वस्थ होगा और सुन्दर भी होगा। वैसे भी आपका शरीर पंच तत्वों से निर्मित है। तो इसको भी बीच-बीच में जिस-जिस चीज़ की ज़रूरत है वो अगर आप देते जाआगे तो वो भी स्वस्थ होगा। जब दोनों चीज़ें एक साथ स्वस्थ होंगी तो आप अपने परिवार का भी ध्यान रख पायेंगे। समाज में भी जो आपको कहना है वो कह पायेंगे, सोच पायेंगे, बोल पायेंगे। लेकिन उन मान्यताओं से हमें बाहर निकलने की बात इसलिए बार-बार कही जा रही हैं क्योंकि वो उस समय के हिसाब से थीं,उस समय आप नहीं थे। अभी के हिसाब से, समझ के हिसाब से ये ज़रूरी है कि स्वार्थ का सही मतलब समझा जाये। स्वार्थी होना अच्छी बात है। स्वार्थी जो होगा सच में स्व के अर्थ को समझेगा, स्व को सम्मान देगा, स्व के साथ जियेगा वो परमार्थ अच्छा कर पायेगा, वो दूसरों की सेवा अच्छी कर पायेगा।
जैसे पहले राजाओं, महाराजाओं के अन्दर एक मान्यता थी कि राजायें-महाराजायें पहले नौकरों को भोजन खिलाते थे। अपने एक-एक जो भी काम करने वाले थे उनको भोजन खिलाते थे। कारण, ताकि वो संतुष्ट हो जायें। और तब जाके दूसरों की सेवा करेंगे, दूसरों को भोजन खिलायेंगे तो अच्छे मन से खिलायेंगे। यहाँ मैं परेशान हूँ, तड़प रहा हूँ, डिस्टर्ब हूँ तो दूसरों की सेवा कैसे कर सकता हूँ! इसलिए बहुत ज्य़ादा ज़रूरी है कि हमें स्वार्थी इस अर्थ में बनना चाहिए। समझ के बनो कि जिससे आपको बल मिले और आपसे लोगों को बल मिलना शुरू हो जाये। तो इस तरह से जीवन की एक नई शुरुआत हो जायेगी। इसलिए स्वार्थी होना ज़रूरी है आज के समय में। स्वार्थी का वो मतलब नहीं है जो आजतक हमने समझा है। उसका रियल, उसका असली अर्थ अब जानकर उस अर्थ के साथ आप आत्मा को भी स्वस्थ करें, शरीर को भी स्वस्थ करें, समाज को भी स्वस्थ करें, अपने परिवार को भी स्वस्थ करें, देश को भी स्वस्थ करें और पूरे विश्व को स्वस्थ करें।