मन-बुद्धि की स्वच्छता और एकाग्रता ही है वरदान प्राप्त करने का आधार

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दुनिया में अगर वरदान प्राप्त करना होता है तो अपना मस्तक झुकाना पड़ता है। लेकिन हमको वरदान लेना है तो हमें क्या करना है? बाबा ने भिन्न-भिन्न मुरलियों में यह स्पष्ट किया है कि वरदान लेने के लिए, वरदान अनुभव करने के लिए हमारा मन और बुद्धि आधार है। उसके लिए एक तो हमारा मन एकाग्र होना चाहिए। एकाग्रता से कोई भी चीज़ बुद्धि में डालो तो धारण हो सकती है। हमारा मन अगर एकाग्र नहीं है हलचल में है तो हम वरदान सुनेंगे, बाबा हमें वरदान देगा, सुनने में बहुत अच्छा लगेगा लेकिन अन्दर उसका फल मिले, मेहनत न करनी पड़े। वरदान लिफ्ट का काम करते हैं। सुनना अलग चीज़ है, स्मृति स्वरूप बनना अलग चीज़ है, इसमें सिर्फ अटेन्शन देने की ज़रूरत है। तो वरदान के लिए मन की एकाग्रता चाहिए। दूसरा बुद्धि हमारी क्लीन और क्लीयर हो। अगर बुद्धि में ज़रा भी सफाई नहीं है और क्लीयर नहीं है तो वरदान मिल नहीं सकता। भोलानाथ को अगर राज़ी करना है तो उसकी सहज विधि है, सच्चाई और सफाई। सच्चाई और सफाई, सच्ची दिल से जो भी अपनी कमज़ोरी है उसे महसूस करें। कुछ न कुछ तो सभी में कमज़ोरी है। पुराने संस्कार, जिसको हम नेचर कह देते हैं। उस नेचर को भले हम दूसरों से छिपायें वो बात दूसरी है, बाबा के आगे स्पष्ट हो। बाबा को अपना दिलाराम समझ कर महसूसता से, मिटाने चाहती हूँ, इस दृढ़ता से सुनाओ। ऐसे नहीं बाबा को सुना दो ये मेरी कमज़ोरी है, आप मिटा दो। बाबा कहता है मैं मदद तो करता हूँ, पर मिटाना तो आपको ही पड़ेगा। महसूसता और दृढ़ता से संकल्प करें कि मुझे इस कमी को समाप्त करना ही है, बाबा आप मुझे मदद करें मैं करके दिखाऊंगी। यह दृढ़ता तो हमको ही धारण करना पड़ेगा। सच्चाई और सफाई से हम बाबा को अपना बना सकते हैं। वो संस्कार जो मोटे-मोटे तो खत्म हो गये हैं। सूक्ष्म रूप के संस्कार पुरुषार्थ में गैलप नहीं करने देते हैं। जो मैं बुद्धि से करना चाहूँ, बुद्धि और कहाँ भटके नहीं उसको कहा जाता है तीव्र पुरुषार्थ। हर साल हम बाबा से वायदा करते हैं कि अभी हम करके ही दिखायेंगे। अभी अपने आप से पूछूं, जो बाबा से पिछले साल वायदा किया वो प्रैक्टिकल हुआ है? जिसको हम सूक्ष्म संस्कार व नेचर कहते हैं, वो खत्म हुआ है? तो वरदान प्राप्त करने आधार है- मन और बुद्धि हमारी क्लीन-क्लीयर होनी चाहिए। वरदान में तो बाबा कोई न कोई शक्ति देता ही है। तो वरदान में ली हुई शक्तियां हमारे जीवन का आधार होना चाहिए। जिस समय हमको जिस शक्ति की आवश्यकता है, उस समय वो शक्ति काम आये। बाबा ने वरदान दिया है कि सब बच्चे मेरे राज़े बच्चे हो। आप आत्मा मालिक हो इन कर्मेन्द्रियों की। हम राजयोगी हैं, प्रजायोगी नहीं। तो बाबा ने पहला वरदान स्वराज्य अधिकारी भव कादिया है। वो वरदान जिससमय चाहिए उसी समय काम में आता है? मन-बुद्धि संस्कार कन्ट्रोल में हैं? हमारा मन और बुद्धि क्लीन और क्लीयर है? बाबा ने कहा मैं तो हरेक बच्चे को नशे में देखना चाहता हूँ! कोई पूछे कि भगवान कहाँ रहता है, तोअप फलके से कह सकें कि भगवान मेरे दिल में रहता है। उसको और कोई जगह ही नहीं अच्छी लगती है। तो यह नशे से कह सकते हो ना? अगर आपके मन में रावण की चीज़ है, तो वहाँ बाबा कैसे रहेगा! इतनी हमारी दिल साफ, पुराने संस्कार से मुक्त होनी चाहिएतब हम कह सकेंगे कि बाबा से जो वरदान मिला वह स्वरूप में समाया है और समय पर काम में आता है। पेपर ज्य़ादातर साथियों और जिज्ञासुओं से ही आता है। पेपर होना ज़रूरी भी है। जिनसे कनेक्शन है, उनसे ही पेपर होता है। अगर वरदान प्राप्त करना है तो उसके लिए चेकिंग होनी चाहिए। अपने कमज़ोर संस्कार, चाहे नाम मात्र हों, बड़े रूप में नहीं हों तो भी वरदान भले सुनने में अच्छा लगेगा लेकिन काम नहीं आयेगा। हमारा सद्गुरु इतना भोला है जो पोस्ट में भी वरदान भेज देता है। फिर भी काम नहीं आयेगा। तो वरदान, शक्तियां, गुण सब जीवन में धारण करना है, इसमें एक भी मिस न हो। एक भी मिस किया तो धोखा मिल जायेगा। अगर आलस्य है, डोन्टकेयर करते हैं, समाने की शक्ति नहीं है, तो हमारे अन्दर जो कमियां हैं वो हमको धोखा दे देंगी। तो अभ हमें सर्व शक्तियों का वरदान लेना है, सर्वगुण सम्पन्न बनना है। हम मास्टर सर्वशक्तिवान हैं, बाबा ने सर्वगुण सम्पन्न देवता पद की प्राप्ति कराई है। हमारे जीवन में सब चाहिए। अगर मर्यादा से हम कम हैं तो हम समान और सम्पन्न नहीं बन सकेंगे। ब्रह्मा बाप ने कितनी मर्यादायें जीवन में धारणा की, कितनी सेवायें की। लास्ट दिन तक भी कितने पत्र लिखे। कोई दिनचर्या लास्ट दिन तक भी मिस नहीं की। लास्ट रात्रि को क्लास कराकर बाबा ने अव्यक्त रूप धारण किया। समान बनना माना, गुण और शक्तियां मेरे में पूरी-पूरी धारण हों। तो अमृतवेले से लेकर रात्रि तक जो भी श्रीमत है। उसी प्रमाण हमें चलना है। मुरली भी विधिपूर्वक सुननी है। मर्यादायें भी विधि पूर्वक पालन करनी हैं। हमें मर्यादा पालन करने के लिए भी वरदान हैं। वरदान को स्वीकार करके उसे स्वरूप में लाना है, तो यह चेक करो। सिर्फ वर्णन नहीं करो, स्वरूप बनकर दिखाओ। तो जैसे बाबा हम बच्चों से चाहता है, वैसे हम बनकर दिखायें। अभी गोल्डन चांस है। जैसे मम्मा का एक ही शब्द था, बाबा का कहना और मेरा करना। बाबा के मुख से जो निकला वो मुझे करना ही है, होना ही है। ऐसा निश्चय प्रैक्टिकल लाइफ में हो। हम लोगों को भी मदर-फादर को पूरा फॉलो करना ही है। यह भगवान का वरदान है, कोई महात्मा का नहीं। इस एक एक वरदान में कितनी ताकत भरी हुई है। वो ताकत समय पर हमें काम आये, इसीलिए ही तो मिली है। इसके लिए मन की एकाग्रता, दृढ़ता और बुद्धि की क्लीननेस और क्लीयरनेस चाहिए। वो हम सब चेक करें और चेंज करें। दूसरा चेंज में सहयोग दे सकता है लेकिन फिर भी चेंज खुद को ही करना पड़ेगा।

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