जिस बात का नियम बन जाता है, नियम का पालन करते रहो तो उसका भी बल जमा होता रहता है। भक्ति में भी कहानियां हैं कि कोई नियम को पालन करने वाले बड़े पक्के, आंधी हो या तूफान। बाबा ने जो नियम बना के दिये हैं, उसी आधार पर हमारी जीवन है। हमारी यह ईश्वरीय फैमिली है, सबसे फ्रेंडशिप है, उसमें कुछ भी मिक्स नहीं है तो दुआयें जमा होती हैं। ज़रा-सा भी देहभान की बांस वाला इन्द्रसभा में बैठ नहीं सकता। ज़रा भी देहभान की बदबू न हो। स्वर्ग में तो पीछे की बात है, अभी तो इन्द्रप्रस्थ में रहते हैं जहाँ भगवान वर्षा करते हैं, हरा-भरा करने के लिए, कांटों को फूल बनाने के लिए। बरसात पडऩे से मौसम चेंज हो जाता है, ऑटोमेटिक फूल खिलने लग जाते हैं। सुन्दर बगीचा बन जाता है। कांटे तो अभी हैं ही नहीं। इतना न्यारापन। फिर एक-दो को आप समान बनाना नहीं पड़ता है, आपेही बन जाते हैं। जो ऐसा बनता है उसके वायब्रेशन से, मित्रता भाव से, सच्चाई से, प्रेम से बन जाते हैं। अपने आप वृद्धि होती जाती है। फिर हरेक कहता है- यह लाइफ मुझे अच्छी मिली है, भाग्य से मिली है। बाबा ने कितना दिया है, कभी उसे बैठकर, खोलके देखो तो सही। ज्वैलरी भले पहनों नहीं कभी खोलके देखो तो सही। किसी को मुख से कुछ दान नहीं किया तो कैसे पता चलेगा कितना है आपके पास। चलते-फिरते अन्दर से जो भावना है, बाबा ने हमको जितना दिया है वह औरों को देना है। दाता ने इतना दिया है जो देख करके खुश होते हैं। सारे दिन में मेरे से औरों को कितनी खुशी मिली? और मैं ही खुश न रही तो क्या किया? खुशी दी नहीं, चलो खुश तो रहूँ। बाबा सेकण्ड में कांटा निकाल कर इतनी शक्ति देता है, जो चेहरा चमक जाता है। चेक करो क्या अन्दर कांटा है, जो चेहरा मूंझा रहता है? मेरे में कोई देह भान की या पुरानी बातों की बांस न रहे। खुशबू हेल्दी बनाती है, सवेरे बगीचे में जाओ, थोड़ी सैर करके आओ। बाबा ने टाइम भी हमारी पढ़ाई का ऐसा फिक्स किया है जो सारा दिन माइंड हैप्पी रहे। अपने को मुस्कुराना सिखाने के लिए, अमृतवेला करने के पहले अपना चेहरा देखो फिर अमृतवेला करने के बाद देखो। अन्तर्मुखता से अपना चेहरा दिखाई देता है। बाह्यमुखता से औरों को देखते हैं। जितना अन्तर्मुखता से अपने को देखेंगे बाबा आपको देखेगा। नहीं तो बाबा आपको देख रहा है और आप दूसरों को देख रहे हो। इधर-उधर देखने वाला बाबा को नहीं देखता है, अपने को नहीं देखता है। बाह्यमुखता माना सब बातें जानने की इच्छा। अभी तो समझते हैं न्यूज़ ज़रूरी है, बाबा हमको कहता था न्यूज़ पढऩे का मतलब? बाबा पढ़ता था सेवा के लिए न कि अन्दर न्यूज़ समाने के लिए। सबसे बड़ा न्यूज़ पेपर है हमारी मुरली। सारे 84 जन्मों की कहानी का न्यूज़ पेपर है ये। सन्तुष्टता का सीक्रेट, सन्तुष्ट वो होगा जिसकी नेचर रिच(मूल्यवान) होगी। जो गरीब होगा वो सन्तुष्ट कैसे रहेगा। जो सन्तुष्ट नहीं होगा उसकी वाणी, चेहरा, दृष्टि कैसी होगी? खुद से सन्तुष्ट नहीं है, औरों को सन्तुष्ट करना तो पहाड़ लगता है। खुद सन्तुष्ट रहे, कारण औरों का निकालता है, ये ऐसा है ना। अरे भगवान ने सन्तुष्ट रहने का खज़ाना दे दिया है, वो खोलके नहीं देखते हैं, पता नहीं कहाँ गुम हो जाता है। मेरे पर मेहरबानी बाबा की है, जिसको बाबा ने इतना खज़ाना दिया है। और भी सब खुश रहें यह मेरी भावना है। दूसरा जिसको अन्दर कोई इच्छा नहीं होती है वो सन्तुष्ट रहता है। अच्छा बनने की इच्छा भले हो। अच्छा माना बाबा जितना अच्छा। बाबा कहाँ! शिवबाबा कहाँ! हाँ उन जैसा बनना अच्छा है। एक है विदेही, दूसरा है स्नेही। विदेही माना बुद्धि की बीजरूप स्थिति। बीज ही लाइट माइट रहने का पड़ा है।लाइट रहने की माइट बाबादेता है, मैं उसकी सन्तान हूँ। और मैं कहूँ सन्तुष्ट नहीं हूँ… जो बिचारा भारी है वो असन्तुष्ट है। अगर सदा हल्का है तो सन्तुष्ट है, सन्तुष्ट है तो हल्का है। सोचने वाला भारी है, क्यासोचे क्या कमी है। आपको कुछ चाहिए तो ले लो ना। मेरा कुछ कम नहीं होगा। गीत है ना ले लो दुआयें माँ बाप की, गठरी उतरे पाप की। अगर मैं वो दुआयें नहीं लेती हूँ तो पाप की गठरी भी नहीं उतरती है। तो कभी सिर दर्द होता है, कभी भारी होता है। बाबा की दुआ से गठरी उतर गयी तो सिर हल्का हो गया, तो सन्तुष्ट हो गयी। कितना भी किसी के पास है, मैं क्या करूँगी। बाबा हम बच्चों के लिए स्वर्ग बना रहा है, मुसाफिर होकर यहाँ आया है, हम उनके सामने बैठे हैं, वो हमें पढ़ा रहा है, और हमें झुटके आ रहे हैं! खुशी में चेहरा चमकता नहीं है! वो हमें मुक्ति जीवनमुक्ति का वर्सा दे रहा है। मुक्ति के बगैर जीवनमुक्ति का सुख अनुभव नहीं होता है। तो अपनी जीवन ऐसी हो जो अनेकों को प्रेरणा देने लायक हो। अन्दर से उदासी के कोई भी कारण को लेकर दु:खी होना, अपने भाग्य बनाने का समय गंवाना, बड़ा खतरे की घण्टी है। अपना समय नहीं गंवाओ। बाबा कारण खत्म कर देगा, पर हम अपना समय सफल करें। समय सफल तब होगा जब सेवा करते समझेंगे कि ये सेवा पर्सनल मेरी नहीं, भगवान की है। सेवा में ज़रा भी अभिमान न आये, जो सेवा की उससे हड्डियाँ मजबूत हो गयी। याद क्या है? याद में और कोई याद नहीं आता है। उनको मेरी याद भले आये, बाबा को याद करने के लिए। सेवा है, दु:ख किसका चला जाये, याद है, दु:ख मेरे पास न आ जाये। याद कभी दु:ख आने नहीं देगी और सेवा है किसी के पास दु:ख आया हुआ चला जाये। दुनिया में है दु:ख अशान्ति, यहाँ है सुख-शान्ति।