चतुर्थी के अर्थ के साथ जीते हैं…

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दुनिया में जितनी भी समस्याएं हैं उनकी शुरुआत हमारे शरीर के दो अंगों से होती है। एक आँख, दूसरा कान। ये दो इनपुट डिवाइसेज़ हैं जिससे हमारे शरीर का हर एक अंग प्रभावित होता है। शारीरिक और मानसिक बीमारियां पनप जाती हैं।

शरीर के हर एक अंग का अपना महत्व है, और हर एक अंग का एक-दूसरे के साथ जुड़ाव भी है। समानता और असमानता के साथ अगर हर एक अंग काम न करे तो शरीर की यांत्रिकी रुक जायेगी। वैसे ही आप सब को भी पता है कि दुनिया का कोई भी वैज्ञानिक पहलू इस बात के साथ ताल्लुक नहीं रखता कि ऐसा भी कोई मानव होगा जिसका धड़ मनुष्य का और सिर किसी जानवर का हो। यह एक प्रतिकात्मक पहलू है जिसका हमारे जीवन के साथ बहुत गहरा कनेक्शन है। इस दुनिया में एक बात कही जाती है कि सुबह-सुबह अच्छे का मुँह देखकर निकलना चाहिए ताकि हमारा कार्य अच्छा हो। और जब थोड़ा भी बुरा हो तो हम कहते हैं कि पता नहीं सुबह किसका मुँह देख लिया। इस भाव को हम समझते हैं। दुनिया में जितनी भी समस्याएं हैं उनकी शुरुआत हमारे शरीर के दो अंगों से होती है। एक आँख, दूसरा कान। ये दो इनपुट डिवाइसेज़ हैं जिससे हमारे शरीर का हर एक अंग प्रभावित होता है। शारीरिक और मानसिक बीमारियां पनप जाती हैं। तो क्या हम इन दोनों अंगों को और अंगों के साथ जोड़कर कुछ नया नहीं निकाल सकते! कहा जाता है कि जिस प्रकार पेट में ज्य़ादा कुछ चला जाये जो हमारे पेट के लिए ज़रूरी नहीं है तो उसमें समस्या उत्पन्न हो जाती है। उसी प्रकार कहा जाता है कि पेट में समाने की ताकत होती है माना पचाने की ताकत होती है। लेकिन पचा भी वो वही पाता है जो उसके लायक हो। नहीं तो थोड़ा भी अगर पेट के मुआफिक नहीं होगा तो अपच हो जाएगी। इसलिए गणेश जी के पेट को सबसे बड़ा दिखाया जाता है। दुनिया की सारी ऐसी बातें जिससे किसी का मन खराब हो या मन दु:खी हो, उस बात को अगर हम पहले ही समा लें या अपने अंदर ही पचा लें तो वहां विघ्न आने से बच जायेगा। इसलिए सबकी बातों को पचा लो। दूसरा, गणेश जी को दिखाते हैं कि उनका एक दांत बाहर निकला हुआ होता है अर्थात् वो एक दंत वाले हैं। लेकिन खाने के दांत अंदर होते हैं। बाहर का निकला हुआ दांत इस बात का प्रतीक है कि मैं आप सबके साथ हूँ लेकिन अंदर से डिटैच हूँ। इसलिए लोग कहते हैं कि हाथी के दांत दिखाने के कुछ और, और खाने के कुछ और। गणेश जी के कान को बहुत बड़ा दिखाया जाता है। कहा जाता है कि अगर कोई किसी के खाने में ज़हर घोल दे तो वो बच सकता है लेकिन अगर कोई किसी के कान में ज़हर घोल दे तो वो बच नहीं सकता। इसीलिए हमेशा ऐसे संग से, ऐसी बातों से हमेंबचना है जो हमारे जीवन में ज़हर घोल दें। आँखें हाथी की सबसे छोटी होती हैं और झुकी होती हैं, मतलब वो स्वयं को देखता है। और दूसरी एक बात कही जाती है कि हाथी हर किसी को उसकी ऊँचाई से डबल देखता है। ऐसे ही हम सभी को हर किसी को ऊँचा उठाना है। किसी के भी प्रति दुर्भावना रख उसको नीचे न गिराएं। हमेशा ऊँचा देखने से हमारे अंदर एक अच्छी भावना पैदा होती है। और हमेशा गणेश जी को विघ्न-विनाशक कहते हैं या सिद्धि-विनायक कहते हैं। तो देखो हम निर्विघ्न या विघ्न-विनाशक कब बनेंगे जब श्रेष्ठ सुनेंगे, ऊँचा देखेंगे, सबकी बातों को पचा लेंगे, सबसे डिटैच रहेंगे तो ऐसे ही हमारे जीवन में विघ्न नहीं आयेंगे। हम हमेशा निर्विघ्न रहेंगे। अत: सिद्धि-विनायक, विघ्न-विनाशक गणेश हम सबके एक मार्गदर्शक के रूप में हम सभी के अंतरमन में विराजमान हैं। बस जागृति से उसको जगाओ क्योंकि ऐसा बच्चा आज भी कोई स्वीकार नहीं कर सकता। सिर्फ तस्वीरों तक ही ये रूप सीमित है। इसलिए उसे अपने जीवन में अपनाने से पता चलेगा कि गणेश वास्तव में हमारे जीवन का एक अंग है और उस अंग को जीवन-संगिनी बनाकर चलें तो निरंतर हम विघ्नों से बचे रहेंगे। तो आओ, इस गणेश चतुर्थी पर हम सभी ये संकल्प लेते हैं और निर्विघ्न बनने की राह पर आगे बढ़ते हैं।

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