अपने आपको देखना चाहिए कि मेरे में क्या विशेषता और योग्यता है जिससे कि मैं अधिक से अधिक सेवा कर सकता हूँ। हम शुरू से जो कर रहे हैं वही करते रहें, जहाँ बैठे हैं वहीं बैठे रहे- इसका अर्थ है हमारे जीवन में प्रगति नहीं है। इसका नाम सन्तुष्टता नहीं है।
बाबा का यह महायज्ञ सारे विश्व को शान्ति देने वाला है। स्वयं रुद्र का रचा हुआ है। ऐसे यज्ञ का जो मूल कुण्ड है, स्थान है उसके हम ब्राह्मण हैं। इस महायज्ञ में रहने वाले सब ब्राह्मण अपना सब कुछ स्वाहा किये हुए हैं। उनका अपना कुछ भी नहीं है। यज्ञ में भी यही कहते हैं कि यह अग्नि के लिए है, मेरा नहीं है; यह जल के लिए है, मेरा नहीं है इत्यादि। वैसे हमारा भी कुछ नहीं है, जो कुछ भी है वह बाबा का है। यह भावना हमारी रहे कि हम वो ब्राह्मण हैं जो हथियाला बाँधे हुए, तिलक लगाये हुए हैं, तो हमारी स्मृति में रहेगा कि हमारा क्या कत्र्तव्य है। सारे विश्व को हमें बाबा का सन्देश देना है। इसलिए हरेक को यह याद रहना चाहिए कि मुझे भी इस ईश्वरीय सेवा की जि़म्मेवारी लेनी है। अपने आपको देखना चाहिए कि मेरे में क्या विशेषता और योग्यता है जिससे कि मैं अधिक से अधिक सेवा कर सकता हूँ। हम शुरू से जो कर रहे हैं वही करते रहें, जहाँ बैठे हैं वहीं बैठे रहे- इसका अर्थ है हमारे जीवन में प्रगति नहीं है। इसका नाम सन्तुष्टता नहीं है। यह तो अपने आपको तसल्ली देना है कि जो है वो ठीक है, जितना है उतना ठीक है। कोई कहता है कि काहे को झंझट में पडऩा, मुझे जितना मिला है, उतना करते चलें।
एक आदमी आम बेचता था ठेला लेकर। बेचता रहा, बेचता रहा वर्षों तक। किसी ने कहा, भाई इतने वर्षों से तुमको देख रहा हूँ, ठेले में ही आम बेच रहे हो। आगे और काम नहीं करने का है क्या? वह कहता है, और क्या काम करूँ? मैं तो यही काम जानता हूँ। उसने कहा, ठीक है, तुम यही काम करो लेकिन इसी काम में आगे तो बढ़ो। वह पूछता है, क्या आगे बढ़ँू? उसने कहा, पैसे इक_ा करके अपने व्यापार को बढ़ाओ। इससे तेरे नीचे कई लोग काम करेंगे, जगह-जगह पर तुम्हारी दुकानें होंगी। तुम एक बड़े व्यापारी हो जाओगे। यह ठेला लेके ऐसे ही घूमता रहेगा क्या गली-गली में सारी उम्र? वो कहता है ठीक है, मेरे आदमी हो जायेंगे, दुकानें हो जायेंगी, पैसा होगा फिर और क्या होगा? उसने कहा, तुम बड़ा बनेगा, सेठ कहलायेगा? उसने कहा, फिर क्या होगा? वैसे पूछता गया। आखिर उसने बोला, तुम सुख से रहोगे। तब ठेले वाले ने कहा, अरे भैया, सुख से मैं अभी भी रहता हूँ। उसी सुख के लिए इतने सारे झंझट में क्यों पडऩा है? फिर व्यापार बढ़ गया तो फुर्सत कहाँ मिलेगी? अभी इस ठेले से ही मैं सुखी हूँ, मैं जहाँ खड़ा हूँ वहीं ठीक हूँ।
बड़ा होने के लिए कुछ करना पड़ता है। हरेक में कई विशेषतायें हैं। यह पक्की बात है। मैं देखता हूँ, हरेक में विशेषतायें हैं, लेकिन हम उनको ठीक ढंग से प्रयोग में नहीं ला रहे। बाबा का हरेक बच्चा बहुत बुद्धिशाली है, प्रतिभाशाली है। हम अपनी योग्यता से कुछ न कुछ सेवा करें। यह ख्याल रखें कि अपनी प्रतिभा को किसी न किसी सेवा में प्रयोग करते चलें। बाबा ने कहा है कि रोल और गोल को याद रखो। गोल तो सबका एक ही है, देवी या देवता बनने का लेकिन रोल हरेक का अलग-अलग है। अभी का रोल तो ठीक है लेकिन आगे का तो सोचो। जीवन में कुछ एम तो होना चाहिए कुछ करने का!