पवित्रता की पराकाष्ठा का यादगार ‘भाई दूज’

0
487

मारा सम्मान कब होगा, जब हमारे अंदर पवित्रता की पराकाष्ठा होगी। पवित्रता की पराकाष्ठा का अर्थ है जो चारों तरफ से प्रकाशमान हो, जिसके अंदर एक भी अंधकारमय स्थिति न हो, जिसको सब मानें, जिसको सब चाहें, जिसके लिए पूरा समाज एकमत हो, सबके दिल में उसके लिए प्यार हो, उसका ही तो राज्याभिषेक होना चाहिए। और राज्याभिषेक की ही निशानी हमारे एक अति विशिष्ट त्योहारों में भाई दूज का त्योहार है। जिसमें एक बहन अपने भाई को टीका करती है या टीका लगाती है, जिसे राज्य-भाग्य का तिलक कहा जाता है। अब यहां भी कितना सुंदर सामंजस्य है कि एक बहन ही भाई को राज्य तिलक दे रही है। और किसी के साथ इसको नहीं जोड़ा गया। तो कितना सुंदर इसका आध्यात्मिक रहस्य निकलकर आ रहा है कि जब तक पवित्रता की ऊँचाई, उसकी लम्बाई, उसकी चौड़ाई, उसकी गहराई अर्थात् वो सबको अति ऊँची दृष्टि से देखे, सबको पवित्र देखे, ये पवित्रता की ऊँचाई है। कोई उसके सामने आए, चाहे कितने लम्बे समय तक वो दुव्र्यवहार करे, उसके साथ सही सम्बंध न हो, फिर भी व्यक्ति का उसके प्रति भाव न बदले, ये उसकी लम्बाई है। और कहा जाता है कि जब हम बहुत दिनों तक किसी के साथ रहते हैं तो छोटी-छोटी बातों को लेकर, छोटे-छोटे स्वभाव-संस्कार को लेकर हम बाद में परेशान होने लग जाते हैं। तो वहां हम थोड़ी-थोड़ी अपवित्रता को अपनाते हुए उसे दिल में इस बात को जगह दे देते हैं, तो चौड़ाई का अर्थ यहां ये है कि चाहे कुछ भी हो जाये लेकिन हर तरह से उसको स्वीकार करना,चारों तरफ से उसको स्वीकार करना। यह पवित्रता की चौड़ाई है। और कोई उसके लिए कितनी भी बातें बनाए लेकिन आपके अंदर उसकी गहराई इतनी जबरदस्त है, आपके अंदर थोड़ा भी भाव नहीं बदल रहा है, चाहे पूरा समाज और संसार उसके खिलाफ हो, फिर भी आप उसके लिए गहराई से प्रेम, सुख और शांति चाहते हैं, तो ये उसकी गहराई है।
तो तिलक ऐसे तो नहीं दिया जा सकता ना! जब तक सब कुछ हमारे अंदर न आ जाये तब तक इन बातों से हम उपराम नहीं हो सकते और राज्य-भाग्य हमको नहीं दिया जा सकता। इतनी पवित्रता है हमारे अंदर? अगर है तो निश्चित रूप से हम वो राज्य-भाग्य का तिलक, जि़म्मेवारी का ताज लेने के अधिकारी हैं। सिर्फ एक परंपरा के रूप में तिलक लगवाना ज्य़ादा दिन तक शोभेगा नहीं। क्योंकि आत्मा के अंदर आज भी इतनी गहराई से सारे विकार भरे हुए हैं कि हर कोई, हर किसी को, हर तरह से स्वीकार करने को राज़ी नहीं है। इसी चीज़ का यादगार वहां दिखाया गया कि जब रामचन्द्र जी रावण पर विजय प्राप्त करके अयोध्या लौटे तो पूरे राज्य ने उनके सम्मान में दीपावली का त्योहार मनाया और उसके बाद उनका राज्याभिषेक किया गया। अब राम के राज्य में तो और लोग भी तो होंगे ना, और राम के साथ भी कुछ विशेष लोग थे, लेकिन फिर भी राम राज्य कहा जाता है, क्यों कहा जाता है क्योंकि राम ने रामत्व को सबके अंदर देखा, सभी को समान दृष्टि से देखा, समान भाव से देखा। प्रजा का पालन राजा का प्रथम कत्र्तव्य समझा। भावना भी सबके लिए समान, प्रेम और खुशी के साथ भरपूर रहने के बाद ही किसी को राज्य-भाग्य दिया जाता है, वो राम के अंदर दिखाया गया।
तो हम भी अगर चाहते हैं कि कलियुग रूपी अंधकारमय परिवेश से निकलकर सतयुग रूपी परिधान को पहनें तो उसके लिए हमें भी इन सारे गुणों और विशेषताओं को एक साथ समेटकर अपने अंदर समाना होगा। और उसको लम्बे समय तक अभ्यास में लाना होगा। तब जाकर लम्बे समय का राज्य-भाग्य हमारे पास आयेगा। तो इस भाई दूज पर कुछ ऐसे संकल्पों के साथ जीवन की नई ऊँचाइयों को पवित्रता के माध्यम के साथ छुएं, इसी आश के साथ भाई दूज की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें