जो ‘पवित्र-मूर्त’आत्मा है, उसके सामने ये प्रलोभन, दुनिया के प्रलोभन आते हैं, तो कहीं न कहीं हमारी पवित्रता विचलित होती है। और व्यर्थ संकल्प चलते हैं, काश ये मिल जाये तो बहुत अच्छा। सेवा बहुत अच्छी कर सकेंगे, ये अच्छा होगा, वो अच्छा होगा। तो बहुत कुछ हम कर सकेंगे। तो पवित्रता प्रभावित हो गयी।
जैसा कि पिछले हर अंक में हम जानते आ रहे हैं, पढ़ते आ रहे हैं रामायण के हर किरदार को आध्यात्मिक अर्थ सहित, तो इसी तरह आज भी हम आगे बढ़ते हैं और जानते हैं…
ये दैहिक आकर्षण की माया आती ज़रूर है। और कई बार वो प्रभावित करने का प्रयत्न करती है। हमें साथी बना लो कोई बात नहीं, ज्ञान में मिल के चलेंगे। कई कुमारों के सामने ये बात आती है, कुमारियों के सामने भी ये बात आती है, कि भाई सेन्टर पर रहना मुश्किल है, लेकिन शादी करके ज्ञान में मिल करके चलेंगे। ये शूर्पणखा के वश हो गये। हो गये कि नहीं हुए? तो वो सबसे पहले तो राम के पास, ज्ञानी तू आत्मा के पास गई तो राम ने तो कहा कि — मेरे साथ तो सीता है। तो बाबा भी कहते हैं —’ज्ञान में जिन आत्माओं ने पवित्रता की प्रतिज्ञा की है, वो हिलती नहीं हैं’। वो धारणा को भंग करने की कोशिश करती है ऐसी ‘शूर्पणखायें’ ये भी माया है। ये रावण नहीं है। अभी तक रावण की एंट्री नहीं हुई है, ये माया ही है सारी। और इस तरह से जो दैहिक आकर्षण में फँसे, वो गये।
कुछ समय पहले बाबा की मुरली आई थी कि जब ऐसी दैहिक आकर्षण की बातें आती हैं, तो लक्ष्मण ने भी क्या किया शूर्पणखा को अपमानित कर दिया। उसका नाक ही काट दिया। तो जो धारणा में पॉवरफुल है, वो उसका नाक हटा देते हैं, नाक काट देते हैं, यानी अपमानित कर देते हैं। तो इसीलिए जो कहा कि इस माया को भी जीतना है। ‘ब्राह्मण जीवन’ देखो रामायण पूरी ब्राह्मण जीवन है ना! फिर उसके बाद जैसे ही उसका अपमान किया, तो वो जाती है किसके पास? अपने भाईयों के पास। ‘खर और दूषण’। ‘दूषण’ माना दुष्टता। फिर वो दुष्टता के साथ सामने आती है। ‘खर’ माना अभिमान के साथ। उसके अभिमान को चोट लगी तो दुष्टता को लेकर, तो ये भी माया का स्वरूप है जो दुष्टता का व्यवहार आरम्भ कर देते हैं। या कैसे भी करके प्रभावित करने का या खत्म करने के लिये कई प्रकार की परीक्षाओं से गुज़रना पड़ता है। राम-लक्ष्मण ने ज्ञान की शक्ति से, धारणा की शक्ति से उनको भी जीत लिया, तो फिर रावण की एण्ट्री होती है, शूर्पणखा जाती है किसके पास? रावण के पास। कि मेरे अपमान का बदला ज़रूर ले। मेरी इज्जत का, तेरी इज्जत का ये सवाल है। तो इसीलिए तब ये रावण की एण्ट्री होती है। लेकिन रावण भी सीधा नहीं आता है। सबसे पहले मारीच को भेजता है और मारीच ने क्या किया? स्वर्ण हिरण का रूप लेकर वो सामने आता है, और जिसे देखकर सीता प्रभावित हो गयी। अब ‘स्वर्ण हिरण’ कौन-सा है ब्राह्मण जीवन में? ब्राह्मण जीवन में स्वर्ण हिरण है ‘प्रलोभन’। और किसको उसने कहा कि मुझे ये स्वर्ण हिरण चाहिए? राम को ही कहा। किसलिए? मैं जब वापस जाऊँगी चौदह साल पूरा करके, तो माताओं के लिए ये उपहार लेकर जाऊँगी। उसके चमड़ी का ब्लाउज बना देंगे। मुझे अपने लिए नहीं चाहिए सीता ने कहा।
तो राम ने भी क्या कहा, ‘ठीक है लाकर देता हूँ’। भावार्थ यह है कि जब ज्ञानी तू आत्मा के सामने भी, जो ‘पवित्र-मूर्त’आत्मा है, उसके सामने ये प्रलोभन, दुनिया के प्रलोभन आते हैं, तो कहीं न कहीं हमारी पवित्रता विचलित होती है। और व्यर्थ संकल्प चलते हैं, काश ये मिल जाये तो बहुत अच्छा। सेवा बहुत अच्छी कर सकेंगे, ये अच्छा होगा, वो अच्छा होगा। तो बहुत कुछ हम कर सकेंगे। तो पवित्रता प्रभावित हो गयी। इसलिए बाबा कई बार कहते हैं कि ‘व्यर्थ या निगेटिव सोचना’ ये भी एक प्रकार की अपवित्रता है। यानी इस प्रलोभन के वश होकर व्यर्थ चिन्तन चलाना, ये चाहिए, वो चाहिए; ये होगा तो बहुत अच्छा होगा, ब्राह्मण जीवन में ये तो ज़रूरी है। मुझे अपने लिए थोड़े चाहिए? सेवा के लिए चाहिए।
आज की दुनिया में सबसे बड़ी प्रलोभन वाली चीज़ कौन-सी है? मोबाइल। अपने लिये थोड़े चाहिए, सेवा के लिए चाहिए। उससेहम कितनों की सेवा कर सकेंगे, कितनी अच्छी-अच्छी क्लासेज सुन सकेंगे। और हम भी किसको कहते हैं? राम को कहते हैं, शिव बाबा को कहते हैं। बाबा और कुछ नहीं चाहिए बस एक अच्छा वाला मोबाइल दिला दो। तो शिव बाबा(राम) भी मुस्कुराता है कि देखो ये बच्चे फँस गये। और इसीलिए कहता है अच्छा ठीक है लाके देता हूँ। तो इस प्रकार रामायण के अन्दर मारीच तक हर एक माया है। और इसीलिए जब उस माया में फँसे तो शिव बाबा हमसे दूर हुए। कैसे दूर होते हैं? क्योंकि जब-जब ये प्रलोभन आये तो प्रलोभन के विषय में ही विचार चलने लगे, तब बाबा भूल गया। बाबा की याद भूल गयी। इस प्रकार ऐसे प्रलोभनों में जब हम फँसते हैं तब ‘राम’ हमसे दूर होते हैं।