वहाँ बैठने से, वहाँ के वायब्रेशन्स में मन शांत होने लगता है। और दो ही चीज़ों की विशेष ज़रूरत होती है मन में शांति और खुशी। जहाँ ये दो चीज़ होने लगती हैं तो वहाँ मानसिक रोग ठीक होने लगते हैं।
मानसिक रोगों को बढ़ाने का एक बहुत बड़ा कारण दिखाई देता है, ज्य़ादा सोचने की आदत। इस आदत के पीछे कुछ प्रैक्टिकल कारण भी होते हैं। एक गृहणी के परिवार में सास-ससुर, बच्चे सभी समस्याओं में हैं। दोनों बुज़ुर्ग हैं सास-ससुर, उनको बीमारियां लगी हैं। उनकी सेवा भी इस माँ को करनी पड़ती है। पैसा भी कम है। हर तरह से विघ्न इनको घेरते जाते हैं। तो अच्छे से अच्छा मनुष्य भी बहुत चिंतित होगा ही। ऐसी बहुत सारी समस्यायें किसी को कैंसर का रोग हो गया, डॉक्टर्स ने बता दिया ब्रेन कैंसर है और चौथी स्टेज पर है। अब परिवार भी ज्य़ादा सोचने लगता है। वो व्यक्ति भी ज्य़ादा सोचने लगता है। चिंतित हो जाता है कि मेरा क्या होगा। अनेक तरह के विचार, मेरे बच्चों का क्या होगा, मेरे परिवार का क्या होगा, मेरे बिज़नेस का क्या होगा, अनेक तरह के विचार मनुष्य को परेशान करने लगते हैं। और हमें इस सत्य को भी जान लेना चाहिए कि अगर हम बहुत चिंताओं में जीते हैं, इस तरह की परेशानियों में जीते हैं तो परेशानियां बढ़ जाती हैं। जो घर के और भी लोग हैं अगर वो भी निगेटिव होंगे, चिंतित होंगे तो उनके भी कमज़ोर वायब्रेशन्स सारे घर में फैल जायेंगे; और इसका इफेक्ट उस बीमार व्यक्ति पर अवश्य आयेगा।
बहुत सारे युवक आज हम देख रहे हैं परीक्षाओं में, कॉम्पिटिटिव एग्ज़ाम में सफल नहीं होते, फिर बहुत सोचते हैं अपने करियर को लेकर। और कंपटीशन देने से पहले ही उनके मन की स्पीड ज्य़ादा होती है तो कंसंट्रेशन होता नहीं। इसलिए भी एग्ज़ाम में सफल नहीं होते हैं। लेकिन आजकल का युवक इस बात के लिए तैयार नहीं है, युवक मेरी बात को गलत न लेना, इतना मेच्योर नहीं है कि वो अपने भले-बुरे का समझ ले। वो तो सोचते हैं कंप्यूटर का युग है, फोन का युग है हमें व्हाट्सएप से, फेसबुक से, ट्वीटर से बहुत सारी चीज़ें, बहुत सारी इन्र्फोमेशन इक्_ी करनी हैं। नॉलेज बढ़ेगी, ये एक विचार। और दूसरा विचार कईयों में ये व्यसन बनकर आ गया है। बहुत बुरा व्यसन कि रात के 2 बजे तक लैपटॉप पर फिल्में देख रहे हैं, कुछ और-और कर रहे हैं। माँ-बाप सोचते हैं कि पढ़ रहे हैं। फिर नींद अच्छी नहीं आती। गंदी फिल्म देख ली तो नींद में वही-वही चलती रहती है, नींद अच्छी नहीं होती और ये मानसिक रोगों का बहुत बड़ा कारण युवकों में बढ़ता जा रहा है।
अब युवकों को सावधान होना चाहिए। हर चीज़ का प्रयोग संयमित, कन्ट्रोल रूप में रहना चाहिए। कोई भी चीज़ हो आपको दूध पीना है, आपको फल खाना है, आपको कोई अच्छी चीज़ खानी है उसे आप हद से ज्य़ादा खाने लगो तो उसका बुरा इफेक्ट हो ही जायेगा। हर चीज़ पर कन्ट्रोल तो रखना ही पड़ता है। नेचर क्योर वाले भी सिखाते हैं कि इतना फल ही खाना चाहिए। इतने बजे ही खाना चाहिए, तो हर चीज़ में संयम की बहुत बड़ी आवश्यकता है। फोन पर भी आपको रहने की ज़रूरत है, लैपटॉप की भी आपको ज़रूरत है। पढ़ाई उसपर हो रही है, कई काम उसपर हो रहे हैं संयमित। अब ऑफिस के सारे काम लैपटॉप पर ही हो रहे हैं, कंप्यूटर पर ही हो रहे हैं, उसका जो रेडिएशन है वो ब्रेन पर बुरा असर डालता है। तो एक ऐसी दुविधा में पहुंच गया है कि उसे उसपर काम भी करना है और उसकी बैड एनर्जी ब्रेन पर इफेक्ट कर रही है। दोनों चीज़ें हो रही हैं। न छोड़ सकते और न ही हमेशा यूज़ कर सकते। इस कारण से मानसिक रोग बहुत बढ़ते जा रहे हैं।
तो हम कैसे इस ज्य़ादा सोचने की आदत को कन्ट्रोल करें। बहुतों के बहुत सारे केस सामने आते हैं। इसका कारण हम ज्य़ादा सोच रहे हैं, इस कारण परेशान हो रहे हैं हम बहुत ज्य़ादा। ऐसे हज़ारों कारण हैं जो मनुष्यों के संकल्पों की स्पीड को तेज़ कर रहे हैं। और जब संकल्पों की स्पीड तेज हो जाती है तो ब्रेन की शक्तियां कमज़ोर पडऩे लगती हैं। क्योंकि उसको काम ज्य़ादा करना पड़ रहा है ना! अब ब्रेन को ज्य़ादा काम करना पड़ेगा तो अब उसको ब्लड भी ज्य़ादा चाहिए। वो भी नहीं मिलेगा। और ब्रेन अगर किसी और स्थिति में आ गया तो एंग्ज़ाइटी। जो चिंता का बहुत गहरा रूप, जिसको मानसिक रोग कहा जाता है। और फिर इसके लिए डॉक्टर के पास जायेंगे। अब डॉक्टर्स क्या करें, ज्य़ादा सोच रहे हैं, चिंतित हो रहे हैं, दवाई खा लो। उससे सोचना कम हो जायेगा, ब्रेन डल होने लगता है। क्योंकि मन की तो कोई गोली है नहीं। ठीक है ब्रेन का फंक्शन थोड़ा-सा स्लो डाउन हो जायेगा, लेकिन मन तो फिर वैसे ही सोचने लगेगा कुछ समय के बाद। हमें मेडिसिन्स की ओर जाने से पहले सोच लेना चाहिए कि हमें ऐसे स्थान पर जाना चाहिए जहाँ पर सुन्दर विचार मिलें। जहाँ से हमारे मन को खुराक मिले। जहाँ हमारी चिंताओं का, ज्य़ादा सोचने का समाधान मिले और वो है ईश्वरीय ज्ञान।
हम सब ये बहुत सुन्दर कार्य कर रहे हैं। बहुत लोग आते हैं मानसिक रोगों से जुड़े हुए, और हम उन्हें ज्ञान और राजयोग की विधि सिखाते हैं और मैंने देखा 90 प्रतिशत लोग बिल्कुल ठीक हो जाते हैं। कोई 21 दिन में, कोई 40 दिन में, किसी को बहुत ही ज्य़ादा हो तो तीन मास में बिल्कुल ठीक हो जाते हैं। मन खुश रहने लगता है। ज्य़ादा सोचने की आदत पर भी कंट्रोल हो जाता है। वहाँ बैठने से, वहाँ के वायब्रेशन्स में मन शांत होने लगता है। और दो ही चीज़ों की विशेष ज़रूरत होती है मन में शांति और खुशी। जहाँ ये दो चीज़ होने लगती हैं तो वहाँ मानसिक रोग ठीक होने लगते हैं। तो इसके लिए राजयोग और ईश्वरीय ज्ञान को लेना बहुत आवश्यक है।